लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

शनिवार, 27 अक्तूबर 2018

                                                       मानवीय संकेतकों की खोज है ........

अब प्रतिदिन सुबह साड़े सात  से आठ  बजे के मध्य 'सड़क की स्वच्छता' के जश्न का गीत गुनगुनाती नगर निगम की गाड़ी निकलती है| घर के बाहर का यह श्रव्य और दृश्य  दिनचर्या का अब हिस्सा बन चुका है इत्तेफ़ाक से उसी वक़्त मेरे सामने प्रतिदिन अखबार के पन्ने होते है जिसमें मन की अस्वच्छता के साथ  निर्ममता को ठीक उसी समय पढ़ती हूँ मेरे मन मस्तिष्क का अंतर्द्वंद तब प्रारंभ हो जाता है  जब बाहर जीत का जश्न बज रहा है और भीतर से मानवता को को शर्मसार कर देने वाली ख़बरें पढ़ी जा रहीं हैं |सूचनाओं ने अब हमें सजग सावधान बनाना बंद कर दिया है |  हम भारतीय जश्न को लम्बे समय तक जीते है और मौजूदा और भावी चुनोतियों, जिम्मेदारियों के प्रति लचीले हो जाते हो | मिडिया अब इतने शातिर हो चुके की लम्बे अरसे से उनके उपभोक्ता लक्ष्य या शिकार, हम स्वयं अब चलता फिरता पुर्जा बन गए है | अब हम सभी इनके आदि होते जा रहें है आदमी के निर्मम चरित्र का रोज एक उदाहरण हमारे सामने परोसा जा रहा है |ऐसा कुछ भी नहीं बचा यहाँ तक की प्रकृति और अन्य प्राणी भी नहीं जिसे अपने पन्नों पर कैद कर अखबार ने  न बेचा हो |  समकालीन समय में निरंतर विरल और क्षीण होती जा रही मानवता, मौजूदा परिदृश्य के प्रति प्रतिरोध पैदा करने की चेष्टा कर रही है इस आग्रह के साथ की इस विषय को शासन व्यवस्था(सरकार ) से न जोड़े क्योकि शासन व्यवस्था को राजनीतिक कार्यप्रणाली से फुर्सत ही नहीं | यह पूर्णतः 'संवेदशीलता' का विषय है और राजनीती का संवेदनशीलता से  दूर -दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं |यह केवल  प्रचार प्रसार का समय नहीं, हम केवल सूचनायें संप्रेषित कर रहें है जानलेवा हादसे और मरने वालों के आंकड़े अख़बार और चेनलों के लिए गडरिया बन चुके है | जिन्हें नाना प्रकार से छील कर मरोड़कर निचोड़ा जाता है और अगली सुबह नीरस छिलकों की तरह किसी कूड़ेदान में फेक दिया जाता है अगली 'जूसी स्टोरी' के लिए| गंभीर दायित्व बोध का निर्वहन केवल प्रचार प्रसार तक सीमित नहीं|  युद्धस्तर पर परिणाम भी सामने आने चाहिए | एक जीत का जश्न गीत जीवन भर गाने से भावी पीढ़ी का गौरवान्वित इतिहास निर्मित नहीं होगा |बहस तभी सार्थक होती  है जब सार्थक परिणाम निकलते है | पुरस्कारों की हड़बड़ी में तटस्थ भाव और गम्भीता से विमुख होते जा रहे, हमें घोषणाएं नहीं चाहियें, न ही मूल्यों पर प्रहार करने वाली सूचनाएं हमें निर्णायक मोड़ के साथ एक  सार्थक सहज जीवन चाहिए जो मानवता से सराबोर हो | जिसमें मनुष्य, मनुष्य के भय से अकम्पित हो |  मुक्तिबोध ने लिखा है ----मैं अपनी सार्थकता से खिन्न हूँ
विष से अप्रसन्न हूँ
इसलिए कि जो है उससे बेहतर चाहिए
पूरी दुनिया साफ करन के लिए मेहतर चाहिए।
     इस आलेख का उद्देश्य किसी की भावनाओं को आहत करना नहीं है किन्तु इस निर्ममता भरे समय में  मानवीय संकेतों की खोज अवश्य है.. 

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