लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

रविवार, 25 सितंबर 2016





ज़िन्दगी के इस रण में 
खुद ही कृष्ण और 
खुद ही अर्जुन बनना
पड़ता है
रोज़ अपना ही सारथी 
बनकर जीवन की
महाभारत को लड़ना
पड़ता है ।

शुक्रवार, 16 सितंबर 2016



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प्रभाकर श्रोत्रिय

प्रभाकर श्रोत्रिय की छवि
जन्मदिसम्बर 19, 1938 (आयु 78 वर्ष)
जावरामध्य प्रदेशभारत
उपजीविकाहिन्दी साहित्यकार, आलोचक तथा नाटककार
भाषाहिन्दी
राष्ट्रीयताभारतीय






हिंदी के प्रसिद्ध सम्पादक/आलोचक/लेखक प्रभाकर श्रोत्रिय नहीं रहे। .वर्ष २०१५ सितम्बर माह में विश्व हिंदी सम्मेलन में विश्व स्तर पर सम्मानित होने वाले विश्वभर  के  ३४  साहित्यकारों में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले साहित्यकारों में से एक नाम डॉ॰ प्रभाकर श्रोत्रिय का भी था  प्रभाकरजी जी  का जन्म १९ दिसम्बर १९३८ (मध्यप्रदेश) के जावरा में हुआ  वे   हिन्दी साहित्यकार, आलोचक तथा नाटककार थे ।इन्होंने अपनी उच्च शिक्षा विक्रम विश्वविद्यालयउज्जैन से प्राप्त की और बाद में एम.ए. करने के बाद वहीं पर प्राध्यापक हो गए । इसके पश्चात इन्होंने पी.एच.डी. और डी.लिट्. की उपाधि भी वहीं से अर्जित की।   हिंदी आलोचना में प्रभाकर श्रोत्रिय एक महत्वपूर्ण नाम है पर आलोचना से परे भी साहित्य में उनका प्रमुख योगदान रहा , खासकर नाटकों के क्षेत्र में। उन्होंने कम नाटक लिखे पर जो भी लिखे उसने हिंदी नाटकों को नई दिशा दी। पूर्व में मध्यप्रदेश साहित्य परिषद के सचिव एवं 'साक्षात्कार' व 'अक्षरा' के संपादक रहे  एवं विगत सात वर्षों से भारतीय भाषा परिषद के निदेशक एवं 'वागर्थ' के संपादक पद पर कार्य करने के साथ-साथ वे भारतीय ज्ञानपीठ नई दिल्ली के निदेशक पद पर भी कार्य कर चुके हैं। वे अनेक महत्वपूर्ण संस्थानों के सदस्य रहे हैं।


प्रकाशित कृतियाँ


साहित्य के क्षेत्र में प्रभाकर श्रोत्रिय बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे । साहित्य की लगभग सभी विधाओं में इन्होंने सफलतापूर्वक लेखन कार्य किया । आलोचनानिबंध और नाटक के क्षेत्र में इनका योगदान विशेष उल्लेखनीय है।
  • आलोचना- 'सुमनः मनुष्य और स्रष्टा', 'प्रसाद को साहित्यः प्रेमतात्विक दृष्टि', 'कविता की तीसरी आँख', 'संवाद', 'कालयात्री है कविता', 'रचना एक यातना है', 'अतीत के हंसः मैथिलीशरण गुप्त', जयशंकर प्रसाद की प्रासंगिकता'. 'मेघदूतः एक अंतयात्रा, 'शमशेर बहादूर सिंह', 'मैं चलूँ कीर्ति-सी आगे-आगे', 'हिन्दी - कल आज और कल'
  • निबंध-'हिंदीः दशा और दिशा', 'सौंदर्य का तात्पर्य', 'समय का विवेक', 'समय समाज साहित्य'
  • नाटक- 'इला', 'साँच कहूँ तो. . .', 'फिर से जहाँपनाह'।
  • प्रमुख संपादित पुस्तकें- 'हिंदी कविता की प्रगतिशील भूमिका', 'सूरदासः भक्ति कविता का एक उत्सव प्रेमचंदः आज', 'रामविलास शर्मा- व्यक्ति और कवि', 'धर्मवीर भारतीः व्यक्ति और कवि', 'समय मैं कविता', 'भारतीय श्रेष्ठ एकाकी (दो खंड), कबीर दासः विविध आयाम, इक्कीसवीं शती का भविष्य नाटक 'इला' के मराठी एवं बांग्ला अनुवाद तथा 'कविता की तीसरी आँख' का अंग्रेज़ी अनुवाद प्रकाशित।
इसके अलावा साहित्यिक जगत उन्हें प्रखर सम्पादक के रूप में भी जानता है। वे ‘वागर्थ’, साक्षात्कार‘ और ‘अक्षरा’ जैसी प्रमुख साहित्यिक पत्रिकाओं के लंबे समय तक संपादक रहे । भारतीय ज्ञानपीठकी पत्रिका ‘नया ज्ञानोदय’ के वे लंबे समय तक संपादक रहे ।

पुरस्कार और सम्मान


  • अखिल भारतीय आचार्य रामचंद्र शुक्ल पुरस्कार (उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान),
  • आचार्य नंददुलारे वाचपेयी पुरस्कार (मध्य प्रदेश साहित्य परिषद),
  • अखिल भारतीय केडिया पुरस्कार,
  • समय शिखर सम्मान (कान्हा लोकोत्सव, 1991),
  • श्रेष्ठ कला आचार्य (मनुवन, भोपाल, 1989),
  • अखिल भारतीय रामवृक्ष बेनीपुरी पुरस्कार (बिहार सरकार),
  • अखिल भारतीय श्री शारदा सम्मान (म.प्र. के हि.सा. एवं संस्कृतिन्यास देवरिया) एवं
  • माधव राव सप्रे पत्र संग्रहालय का रामेश्वर गुरु साहित्यिक पत्रकारिता पुरस्कार।
  • मित्र मंदिर कोलकाता सम्मान 1998,
  • सारस्वत सम्मान 2002 ।

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