लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

रविवार, 30 दिसंबर 2012

ओरत का अस्तित्व ............

मेरे कुछ फेस बुक मित्रो ने मुझे massages किये वे मित्र जो शायद मेरे लेखो को निरंतर पड़ते आये हैं उनका कहना हैं की मेने "दामिनी "जेसी इतनी बड़ी दुर्घटना पर अपने कोई विचार नहीं रखे जबकि शायद दुनिया के सभी फेसबुक users अपने -अपने तरीके से कुछ न कुछ कह रहे हैं आज मेने अपने उन सभी मित्रो के सवालो का जवाब सार्वजनिक रूप से दे रही हूँ की इस निर्मम घटना के बारे मैं लिखने मैं मेरे हाथ कांप रहे हैं मैं खुद एक तरह से स्तब्ध रह गयी हूँ इन 30 years मैं पहली बार मुझमे क्रिसमस का सेलिब्रेशन और wishes देने का ख्याल भी नहीं आया और न ही नया साल आने की ख़ुशी हैं जहन मैं /
मैं कल से इस बारे मैं लिखने की हिम्मत जुटा रही हूँ हाथ और मन दोनों कांप रहे हैं जेसे खुद के ही परिवार मैं किसी के साथ ये हादसा हुआ हो ओरत किसी भी उम्र मैं सुरक्षित नहीं हैं

रोज न्यूज़ पेपर की सुर्खिया बन जाती हैं बहु बेटिया और बहनों के बलात्कार की खबरे 4 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म कर उसे पत्थर से मार कर पानी मैं फेक दिया गया

'' 4 साल की बच्ची हो या 40 साल की ओरत उम्र दर उम्र ओरत तो असुरक्षा का शिकार हो रही हैं''
मेरे दोस्तों बहुत कम लोग जानते हैं "दामिनी "की हत्या का विस्तार शायद मैं उन बद्किस्मतो मैं से एक हूँ जिसे भी पता हैं की वास्तविकता मैं "दामिनी "का बलात्कार किस तरह से हुआ क्योकि शायद आप सभी लोग मेरी इस बात से कुछ हद तक सहमत जरुर होंगे की बलात्कार से ओरत की आत्मा का अंतिम संस्कार होता हैं और शरीर के चित्ड़े ,न की शरीर मरता हैं दोस्तों हम आप इस बात का अंदाजा भी नहीं लगा सकते की दामिनी के शरीर का इस्तेमाल उसके एक एक अंग को किस तरह रोंदा गया उन वहशी राक्षसों के द्वारा इस बारे मैं मेने जब सुना तो 10 मिनट के लिए मेरी सांसे थम गयी और आँखों से आंसू निकल आये और
मैं क्या कोई भी ओरत इसे सुनकर सदमे मैं आ सकती हैं मुझे जबसे इस घटना के बारे मैं विस्तार पूर्वक पता चला गले से खाना और पानी नहीं उतर रहा .......

"दामिनी " जो आज अख़बार टीवी और हर तरह की मिडिया की खबरों का एक अहम् हिस्सा बन चुकी हैं हर जगह विरोध प्रतिरोध और कही न कही ऒरत के अंदर दहशत भी बनकर उभर रही हैं सिर्फ भाव पूर्ण श्रधांजली अर्पित कर देने से क्या हासिल होगा,कुछ दिनों बाद आई -गई खबर बंनने के अलावा और फिर एक दामिनी को विवश होकर किसी वहशी की भूख शांत करने के लिए खुद को सोपना होगा इससे ज्यादा और कुछ नहीं सिर्फ हंगामा सिर्फ हंगामा हैं कुछ दिनों का /घटनाये हर जगह हो रही हैं हर रोज , हर मिनिट मैं हो रही हैं लेकिन सरकार शायद किसी बड़े नुकसान का इंतजार कर रही थी जो इस दामिनी हत्या कांड से उसे मिला एक बात मेरे समझ मैं नहीं आती इस निर्मम दुर्घटना के घटित होने के बाद सरकार के लिए "ओरत की सुरक्षा करना एक मात्र विकल्प बन गया हैं या जरुरत " दोनों मैं बहुत अंतर हैं इस शर्मनाक और घिनोने हादसे के बाद भी अभी तक 13 दिनों से नियमो कानूनों को बनाने पर विचार कर रही हैं अपराधियों का अभी तक कोई अता -पता नहीं इस लोकतान्त्रिक देश मैं सरकार से इससे ज्यादा और कोई उम्मीद रखना बेवकूफी होगी

दुनिया का हर वो आदमी जिसने इस दुर्घटना को फेस बुक के द्वारा या न्यूज़ पेपर के जरिये पड़ा और सुना और देखा हैं शायद ही ऐसा कोई शख्स होगा जिसकी आँखे भीगी न हो जिसकी रूह न कांपी हो फिर चाहे वो एक लड़की का पिता हो या न हो हर शख्स यही महसूस हुआ की ये शर्मनाक हादसा शायद हमारे ही घर मैं हुआ हैं क्योकि मेरे दोस्तों "दामिनी "तो हर घर मैं होती हैं किसी न किसी रूप मैं" सच कहु दोस्तों इस दुर्घटना ने मेरी अन्दर और शायद मेरे जेसी कई ओरतो के मन मैं ओरत होने का खोफ पैदा कर दिया हैं मुझे डर हैं कुछ समय के बाद कही ऐसा न हो जाय की उम्र के जिस पड़ाव पर आकर एक लड़की को उसके ओरत होने का एहसास होता हैं वो अपने आप को प्रकृति के विरुद्ध चलते दुष्कर्मो का शिकार होने से खुद को बचाने के लिए ओरत होने के एहसास के साथ ही खुद को दफ़न न कर ले ,या अपनी आत्मा का अंतिम संस्कार न कर ले

शायद इस वहशी घटना और इस जेसी होती हर रोज ओरत की निर्मम हत्या और उसकी आत्मा का होता हर रोज अंतिम संस्कार उसे इस बात का एहसास दिलाता हैं ओरत होना एक वरदान नहीं अभिशाप हैं ओरत की रचना ईश्वर ने पूजने और सम्मान करने के लिए की थी लेकिन इन्सान प्रकृति के नियमो के विरुद्ध जाकर इस वरदान को अभिशाप मैं बदल रहा हैं ओरत की कोख से जनम लेने वाला आदमी जीसे इस धरती पर लाने का सारा श्रेय ओरत को ही जाता हैं उसके उस शरीर का ही हिस्सा होता हैं, माँ के शरीर की गर्मी ही उसके जीवन का आधार होती हैं उसे जिस ओरत की प्रकृति ने जीवन दिया वही प्रकृति एक ओरत के लिए अभिशाप बन जाती हैं एक आदमी जानवर से ज्यादा वहशी हो गया हैं रूह कांप जाय एक आदमी इतना भयानक कृत्य भी कर सकता हैं इसे इन्सान की उपमा तो नहीं दी जा सकती

और जहा तक न्याय की बात हैं तो मुझे लगता हैं की वो दिन दूर नहीं जब एक ओरत ही एक ओरत की सुरक्षा करेगी उस वक़्त ओरत सिर्फ शरीर से ओरत होगी क्योकि उसके अंदर की संवेदनाये मार्मिकता और गहनता सुकोमलता सुन्दरता मर चुकी होगी क्योकि उसके जीवन का पहला लक्ष्य स्वयं की सुरक्षा करना होगा न की परिवार और पत्ति के लिए जीना क्योकि मैं सिर्फ "दामिनी "की बात नहीं कर रही हूँ परिवार और पति के साथ भी ओरत महफूज नहीं हैं फिर ये तो delhi और इंदौर की सुनी रातो की तन्हाई बया करती सड़के हैं जिसपर रात 9 बजे के बाद सिर्फ शहर के असामाजिक तत्वों या दारू के नशे मैं धुत नशाखोरो का राज होता हैं उनके रास्ते मैं जो भी आएगा वो उसके साथ यही करेगे या इससे भी बदतर ,

मुझे इस बात को लिखने मैं जरा भी शर्म महसूस नहीं होगी की नशे की हालत मैं निम्न वर्गीय वहशी आदमी अपनी ही बहन बटियो और बहुओ को अपने हवस का शिकार बना सकते हैं उन्हें सिर्फ नशे के आलम मैं ओरत के जिस्म से मतलब होगा फिर वो चाहे किसी का भी क्यों न हो उन्हें सिर्फ अपनी हवस पूरा करने का जरिया चाहिए शायद देश के कुछ हिस्सों मैं घर की ओरते इसका का भी शिकार हैं फिर ये तो दुसरे की घर की इज्जत आबरू हैं

कहते हैं एक इन्सान की जिन्दगी मैं सबसे बड़ी ताकत एक ओरत ही होती हैं वो किसी भी रूप मैं हो लकिन एक ओरत की सबसे बड़ी कमजोरी उसका ओरत होना ही होता इस बात मैं गहराई कितनी हैं एक ओरत ही जानती हैं कवी मथिलीशरण गुप्त जी ने ओरत के लिए सही लिखा हैं
" अबला जीवन हाय तेरी यही कहानी आँचल मैं दूध और आँखों मैं पानी "
ओरत दोनों दशाओ मैं मरती हैं बलात्कार होने के बाद अगर जिन्दा बच गयी तो समाज चरित्रहीनता का आरोप लगा कर एक एक दिन जीना मुश्किल कर देगा वही समाज जिसको बलात्कार होने के बाद अपने बचाव मैं आत्मसमर्पण न करते हुए ओरत शहादत को प्राप्त हो जाना मंजूर हैं वही ओरत महान होगी समाज की नजर मैं जेसे "दामिनी " क्या चरित्र के मानदंडों को, समान रूप से, पुरुष पर लागू करने की आवश्यकता नहीं?

ओरत को ही शायद इस समाज की इसी तस्वीर बदलनी होगी ..उसे खुद ही अपनी सुरक्षा करनी होगी , अपने आप को इस समाज में रहने लायक सक्षम बनाना होगा सरकार समाज न्याय और नियम उसकी सुरक्षा नहीं कर सकते वो सिर्फ श्रधांजलि, सांत्वना दे सकते हैं यहाँ तो बलात्कार होने के भी साबुत देने होते हैं

खेर ये एक ऐसा विषय हैं जिस पर सिर्फ लिखना इस विषय के साथ नाइंसाफी होगी बह्तरी तो तब होगी जब इन पर लिखे लेखो से इन घटनाओ पर अंकुश लगेगा सिर्फ लिखने से आप अपने आपको ही शांत कर सकते हो अपने मन के विचारो को संतुलित कर सकते हो, ओरत को अपनी सुरक्षा का जिम्मा खुद ही लेना हो /चाहे , वो परदे मैं रहकर अबला नारी बन जाय या फिर दबंगता से अपने सम्मान और अस्मिता को बचाने के लिए कुछ भी कर जाये फिर चाहे अपनी जान से ही हाथ क्यों न धोना पड़े, कोई बचाने आएगा इस इंतजार मैं तो सबकुछ लूट जायेगा पता नहीं रक्षक ही भक्षक न निकल जाये 

और शायद इस बात को भी कही न कही नकारा नहीं जा सकता की ओरत के लिए जमाना कभी नहीं बदलता ओरत को हर सदी मैं अपनी सीमाओ और हदों को प्राथमिकता देनी होगी चाहे वह कितने हि उपलब्धिया हासिल कर ले ,कितने भी सफलता को छु ले पर उसे ये कभी नहीं भूलना हैं की वो पहले एक ओरत हैं ,आखिर प्रकृति ने भी कुछ सोच समझ कर ओरत की  शारीरिक रचना को  इतना कोमलांगी उसे बनाया हैं इतना आकर्षक उसकोबनाया हैं जरुर किसी खास उद्देश्य को पूरा करने के लिए ही बनाया होगा अपनी मूल्यवान धरोहर को सहेजना और छुपाना भी उतना ही अनिवार्य हैं/ खुबसूरत वस्तुए बाजार मैं बिकने के लिए ही खुले आम अपना प्रदर्शन कर बेचीं जाती हैं उनकी खूबसूरती का  खुले आम बाजार मैं प्रदर्शन वाजिब हैं/ पर ओरत जिसकी रचना की कुदरत ने इतनी शिद्दत और कशिश  से की हैं की हैं  वो तो फिर एक जीता जागता इन्सान हैं वो बाजार मैं बिकने के लिए अपना प्रदर्शन न कर खुबसूरत वस्तुओ और स्वयं मैं अंतर रखे वरना दुनिया के बाजार मैं खरीदारों की कमी नहीं अपना मूल्य बाजार मैं बिक कर हासिल करना हैं या या इतना अमूल्य बनाना हैं की,  किसी खरीदार की नजर भी न पड़ सके ?क्योकि बाजार तो बिकने वालो के लिए ही होता हैं और इस बाजार मैं अपने को सहेजना ही सुरक्षा की पहली सीड़ी हैं या तो पाश्चात्य सभ्यता को छुने की कोशिश मत करो और हिमाकत की हैं तो सिर्फ कपड़ो मैं क्यों ?किसी भी देश की संस्कृति  वहा के वातावरण परिवेश, विचारो और जीवन शेली के खुले पन पर निर्भेर करते हैं अगर हम अपने देश की प्रकृति और वातावरण और जीवनशेली के विरुद्ध कोई काम करेंगे तो वो सिर्फ हमारे लिए संतुष्टि प्रद होगा लेकिन दुनिया के लिए शायद एक ही शब्द होगा "नुमाइश" और उसमे भी अगर अति नजर आई तो शायद इस तरह के अपराधो का बीज अंकुरित होने लगता हैं प्रकृति के विरुद्ध जब भी कोई काम हुआ हैं उसके परिणाम विनाशक और बरबादिया लेकर ही आये हैं इसलिए प्रकृति के नियमो और रचना के साथ किसी भी रूप मैं छेड़ -छाड़ न करे क्योकि नदी भी जब अपने किनारे तोड़ देती हैं तो परिणाम बाड़ ही आती हैं जिसमे सब बर्बाद हो जाता हैं जब एक नदी के लिए दो किनारे बने हैं उसकी सीमाए निर्धारित हैं तो फिर हम तो इन्सान हैं हमें  इनका उल्लघन करने का कोई अधिकार नहीं 
इस बात मैं भी कोई शक नहीं की ओरत के साथ साथ समाज को भी अपने दायरे और महत्व की गरिमा का ध्यान रखना होगा क्योकि अगर एक ओरत सीमाओ का उल्लंघन कर बरबादियो का शिकार बनती हैं वही कुछ ओरत के ऐसे रूप भी होते हैं 
जहा पुरुष द्वारा त्यागी गयी ओरत और विधवा होकर एकाकी जीवन व्यतीत कर रही हो या दहेज़ की कमी के चलते कुवारी जीवन व्यतीत कर रही होगी तो भी समाज उसे घिनोनी नजरो से देखता हैं और इंतजार करता हैं उसे किसी भी तरह से अपनी हवस का शिकार बनाने, का उसकी विवशताओं के चलते/ मानसिक प्रतारणा के साथ  साथ इन परिस्थितियों मैं ओरत को शारीरिक प्रतारणा का भी ख़ुशी से स्वागत करना पड़ता हैं उसके पास कोई और विकल्प ही नहीं रह जाता /
पर दूसरी तरफ अगर एक पुरुष इस परिस्थिति से गुजरता हैं  जिसकी पत्नी ने उसे त्याग दिया और जिसकी पत्नी की मृत्यु हो गयी ,या घर की ख़राब परिस्थितियों के चलते उसका विवाह नहीं हो रहा हो तब क्या पुरुष समाज की प्रतारणा का शिकार होता हैं क्या उसके चरित्र पर कभी ऊँगली उठती हैं?क्यों नहीं ?क्योकि ओरत को समाज ने कभी नातिक समर्थन नहीं दिया समय दर समय ओरत का अस्तित्व नग्न ही रहाहैं बाँस के रूप मैं एक ओरत को देखना पुरुष को कभी रास नहीं आया ,ओरत की विडम्बना भरी जिन्दगी होती हैं अगर वह घर के बाहर अपना वजूद तलाशे  तो परिवार पति और बच्चो की उपेक्षा से उसे आत्मग्लानी होती हैं लेकिन अगर वह परिवार के हितो के लिए घर मैं ही बैठि रहे तो भी उसके त्याग को सही तरह से न  तो समझा जाता हैं न सराहा न ही सम्मान जनक रूप से देखा जाता हैं छोटी छोटी जरूरतों के लिए उसे पुरुष पर निर्भेर रहना पड़ताहैं वो भी उपेक्षा और तिरस्कार के साथ जिसके फलस्वरूप मानसिक रूप से बीमार होकर अपनी सीमाओ से बिखर जाती हैं और अपने लिए नए रास्ते चुनती हैं वही रास्ते जो प्रकृति के नियमो के विरुद्ध भी हो सकते हैं
मेरा दावा है कि जो लड़का अपने परिवार में, पिता द्वारा, माँ/ बहनों का सम्मान होते हुए देखता हो. जिसने बालपन से माँ, बहनों का स्नेह पाया हो; शिक्षित, शक्तिरूपा माता द्वारा संस्कार और मार्गदर्शन पाया हो- वह कभी भी किसी ओरत के साथ किसी भी तरह के अपराधिक कार्य नहीं कर सकता  
  किसी भी तरह के आंकलन को ओरत के साथ साथ पुरुष पर भी लागू करने की आवश्यकता हैं 


शोभा चौहान 30/dec /2012

रविवार, 16 दिसंबर 2012

माँ

माँ
माँ शब्द मैं छिपा हैं स्रष्टि का सारा सार 
माँ मैं छिपा हैं जीवन का सारा प्यार 
माँ से सुंदर नहीं दुनिया की कोई कृति 
चाँद सूरज नदी हवाए माँ के अंदर बसी 
माँ के दूध मैं अमृत सा जीवन मिलता हैं 
माँ सीने से लगा ले तो सुकून मिलता हैं 
दुःख दर्द भूख प्यास आंसू का आभास हैं 
दुनिया मैं सबसे सच्चा माँ का विश्वास हैं 
माँ की कोई उपमा नहीं होती 
आंसू मेरे गिरते ,और माँ रोती 
माँ वो एहसास जो समय के साथ गहराता हैं 
गलती के परिणामो पर माँ का हर लव्स याद आता हैं 
माँ संवेदना माँ भावना माँ कल्पना माँ मैं सब अपना 
माँ मैं पलता हैं जीवन का हर सपना 
माँ तू दर्द में मुझे सहला देती कराह सुन पसीना पोछ देती 
सपनो को पंख देती होसलो को ऊँचा कर देती 
माँ तेरा वो सुकून देता स्पर्श, कोमल व्यक्तित्व 
तेरी लोरी और थप थपि याद दिलाती मेरा अतीत 
माँ तुझसे अटूट न रिश्ता दूजा 
माँ तू जेसे भगवान की पूजा 
दूध का कर्ज कलम बया नहीं कर पायेगी 
बंद पलकों मैं सिर्फ तू ही सहलाएगी 
एक मैं हूँ जिसे माँ की चिंता नहीं रहती 
एक माँ हैं जिसे मेरे सिवा किसी की चिंता न रहती 
भूली नहीं हूँ अपनी इस गलती के अहसास को 
भुला दिया माँ की सिखाई हर बात को 
माँ एक तू हैं जो हर बार गलतिया माफ़ कर  देती हैं 
न सवाल पूछती हैं, जवाब खुद आप कर  देती हैं 
मेरी गलतिया जो माफ़ी के काबिल नहीं
मेरी गलतिया जिनका कोई साहिल नहीं 
माँ मेरे प्रायश्चित का नहीं कोई छोर 
माँ तुझसे सच्चा रिश्ता नहीं कोई और 

शोभा चौहान 16/दिसम्बर 2012

रविवार, 4 नवंबर 2012

कमल का संग कीचड़ से ........


कमल का संग कीचड़ से 
गुलाब का संग काँटों से
                        कुछ यू हो गया की 
निर्बल का बल बलवान से 
इन्सान पर छल हेवान का 
                        कुछ यू हो गया की 
आशा का संग निराशा से 
उजाले का संग अंधकार से 
                      इसलिए हो गया की 
अच्छाई और बुराई मैं अंतर हो जाये 
अच्छाई छाई रहे और बुराई राइ हो जाय
                      कुछ यू हो जाय 
आरजू पूरी हो पहले चाहो से
हर बाधा हट जाय पहले रहो से ........
                                       शोभा चौहान ..........
                                                                                  



                      

शनिवार, 27 अक्तूबर 2012

जीवन अपना हैं?

जीवन अपना हैं?
हर एक मैं हैं जीने की अभिलाषा ,पर क्या कोई जानता हैं जीवन की परिभाषा ,
जीवन एक एसी पहेली हैं , जेसे ट्रेन मैं मिली कोई सहेली हैं ,
जाने कब उसका मुकाम आजाय जाने कब साथ छोड़ चली जाय,
जीवन जीवो का वो सुखद वन हैं जेसे कुंबले की बाल पर लारा का रन हैं
कभी खुशिया कभी गम हैं सच मैं जीवन बहुत सघन हैं 
यु कहा जाय तो जीवन एक सुखद सपना हैं 
जिसमे तो सारा जहा अपना हैं ,
पर आँख खोलने पर हाथ कुछ नहीं लगना  हैं 
बस खाली हाथ मुह तकना हैं ,
ये सही हैं की जीवन एक सुखद सपना हैं 
ये गलत हैं की वो अपना हैं
शोभा चौहान