लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

सोमवार, 28 मई 2018

जब कोई स्त्री रचनाकार बिना औरतपन के दबाब को महसूस करे पुरुष सत्ता को चुनौती देती है तब वह अनुमान से नहीं अनुभव से लड़ती है।

रविवार, 20 मई 2018

कुछ संकल्प तत्काल पूरे न हों तब भी मन की गहराइयों में बने ही रहते हैं--शोभा जैन 
‘‘यह भी मनुष्य का स्वभाव ही है—वह नितान्त भिन्न परिवेश में धीरे-धीरे कुछ तालमेल बिठा ही लेता है। 

बुधवार, 16 मई 2018

"शब्द" मुफ्त में जरूर मिलते है, लेकिन यह शब्दो के चयन पर निर्भर करता है कि उसकी कीमत मिलेगी या चुकानी पड़ेगी ।-शोभा जैन 

शनिवार, 12 मई 2018

क्या स्त्रियां ऐसे पुरुष को नहीं जानना चाहतीं, जो उनका चेहरा पढ़ ले, जिनके सामने वे अपना स्त्री होना भूल जाए और सिर्फ यह याद रखे कि वो एक जीती-जागती मनुष्य भी है आकांक्षाओं और इच्छाओं से लबालब. ...

शुक्रवार, 11 मई 2018

हमारे अपने भीतर बहुत कुछ ऐसा पनप रहा है जो हमें धीरे-धीरे विनष्ट कर रहा है। कुरेद रहा हैं यह बरबसता हमें कहाँ ले जा कर छोड़ेगी नहीं पता |हमें पहले अपने आपको बचाना है बाहरी ताकतों से तो बाद में भी निपट लेंगे।---शोभा जैन 

रविवार, 6 मई 2018

कोई भी कालखंड अपनी संवेदनशीलता अगले कालखंड मे नहीं पहुंचाता। वह बस अपनी संवेदना की बौद्धिकता को वहाँ पहुंचाता है। संवेदना के माध्यम से हम हम रहते हैं जबकि बौद्धिकता हमें कोई और बनाती है। बौद्धिकता हमें बिखेरती है और यह इसीलिए है कि जो हमें बिखेरता है, वही हमारे बाद बचता है। हर युग अपने उत्तराधिकारी को वह देता है जो उसके पास नहीं था।