लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

सोमवार, 5 मार्च 2018

‘एक आश्रय से दूसरे में आकर, 
मैं एक बंधन से मुक्त हो जाता हूँ
यह मेरी मुक्ति है |
बार –बार एक दास्ता से दूसरी में कम या ज्यादा 
 आजाद होते हुए उतनी देर में मैं बना लूँ एक दुनियाँ अपने भीतर और अपने बाहर तक पहुँचा दूँ ताकि नष्ट न हो |
और जब दोबारा एक बार घर बदलूँ ,
वह दुनियाँ मेरी कुछ बड़ी हो गई हो|’’
     ---रघुवीर सहाय