‘एक आश्रय से दूसरे में आकर,
मैं एक बंधन से मुक्त हो जाता हूँ
यह मेरी मुक्ति है |
बार –बार एक दास्ता से दूसरी में कम या ज्यादा
आजाद होते हुए उतनी देर में मैं बना लूँ एक दुनियाँ अपने भीतर और अपने बाहर तक पहुँचा दूँ ताकि नष्ट न हो |
और जब दोबारा एक बार घर बदलूँ ,
वह दुनियाँ मेरी कुछ बड़ी हो गई हो|’’
---रघुवीर सहाय
मैं एक बंधन से मुक्त हो जाता हूँ
यह मेरी मुक्ति है |
बार –बार एक दास्ता से दूसरी में कम या ज्यादा
आजाद होते हुए उतनी देर में मैं बना लूँ एक दुनियाँ अपने भीतर और अपने बाहर तक पहुँचा दूँ ताकि नष्ट न हो |
और जब दोबारा एक बार घर बदलूँ ,
वह दुनियाँ मेरी कुछ बड़ी हो गई हो|’’
---रघुवीर सहाय