लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

शुक्रवार, 9 जून 2017

गांधीजी का मानना था अब तक महिलाओं को पुरूष अपना खिलौना समझते रहें हैं और महिला भी इस भूमिका में संतुष्ट रही है। उन्होने जेवरात कि हथकड़ियों और बेड़ियों कि संज्ञा दी तथा कन्या-विवाह के प्रतिरोध के लिए महिलाओं को आगे आने के लिए कहा। महिलाओं कि भूमिका में गांधी जी कहते हैं- महिलाएं पुरूषों के भोग की वस्तु नहीं हैं, जीवन पाठ पर वे कर्तव्य निर्वाह के लिए संगिनी हैं, मेरा मानना है कि स्त्री आत्मत्याग की मूर्ति है, लेकिन दुर्भाग्य से आज वह यह नहीं समझ पा रही कि वह पुरुष से कितनी श्रेष्ठ है। जैसा कि टाल्सटॉय ने कहा है, वे पुरुष के सम्मोहक प्रभाव से आक्रांत है। यदि वे अहिंसा की शक्ति पहचान लें तो वे अपने को अबला कहे जाने के लिए हरगिज राजी नहीं होंगी। ( यंग इंडिया, 14-1-1932, पृ.19)
स्त्रियों के अधिकारों के बारे में गांधी जी के विचार इस प्रकार थे – “स्त्रियों के अधिकारों के सवाल पर मैं किसी तरह का समझौता स्‍वीकार नहीं कर सकता। मेरी राय में उन पर ऐसा कोई कानूनी प्रतिबंध नहीं लगाया जाना चाहिए जो पुरुषों पर न लगाया गया हो। पुत्रों और कन्‍याओं में किसी तरह का कोई भेद नहीं होना चाहिए। उनके साथ पूरी समानता का व्‍यवहार होना चाहिए।”
''गांधी जी ने महिलाओं के अधिकारों की वकालत करते हुए लिखा है कि अहिंसा की नींव पर रचे गये जीवन की रचना में जितना और जैसा अधिकार पुरुष को अपने भविष्‍य की रचना का है, उतना और वैसा ही अधिकार स्‍त्री को भी अपने भविष्‍य तय करने का है।”

गुरुवार, 8 जून 2017

“देश के बारे में लिखे गये हजारों निबन्धों में लिखा गया
पहला अमर वाक्य एक बार फिर लिखता हूँ
भारत एक कृषि प्रधान देश है
दुबारा उसे पढ़ने को जैसे ही आँखें झुकाता हूँ
तो लिखा हुआ पाता हूँ कि पिछले कुछ वर्षों में डेढ़ लाख से अधिक किसानों
ने आत्महत्या की है इस देश में।”
   ‘(इस आत्महत्या को कहाँ जोड़ूँ’ कविता से)...
                                       ---कवि राजेश जोशी

सोमवार, 5 जून 2017


हमारे दादाजी ने नदी में पानी देखा/
पिताजी ने कुए में/
हमने नल में देखा / 
बच्चों ने बोतल में /
अब उनके बच्चे कहाँ देखेंगे....????
सवाल चिंतन का है।
व्यर्थ बर्बाद न करें पानी !
 जल ही जीवन
इसे स्वच्छ एवं संचित करे