लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

गुरुवार, 22 फ़रवरी 2018


आलेख -

हमारे आसपास अच्छे या सही लोग ?


एक अच्छा इंसान होना सृष्टि में सकारात्मक उर्जा का विस्तार करने जैसा है |किन्तु एक अच्छा इंसान होना और दूसरों के लिए अच्छा होना दोनों पृथक पृथक है |ये जरुरी नहीं की जो अच्छा इन्सान हो वो दूसरों के लिए भी अच्छा हो|प्रायः देखा जाता है लोग अपने से जुड़े लोग चाहे वो पारिवारिक हो या सामाजिक जीवन में, सभी के साथ व्यवहार कुशलता बरतते दिखाई पड़ते हैं |उनका लक्ष्य यही होता है की वे सबके लिए अच्छे बने रहे इसी के चलते वे उन बातों पर अक्सर अपनी व्यक्तिगत राय नहीं रखते जिनसे या तो वे असहमत होते है या जो उन्हें सही नहीं लगती| वे कभी निजी तौर पर कुछ  कह नहीं पाते|गलत होने के बावजूद भी बुरा लगने या संबंधो में खटास आने के भय से वे कभी सही का साथ दे ही नहीं पाते |ऐसे लोगों को अक्सर किसी भी विमर्श का हिस्सा बनना तो पसंद होता है किन्तु निष्कर्ष में उनकी भागीदारी शून्य होती है |ऐसे लोग केवल भीड़ का हिस्सा हो सकते है किसी के भी विपरीत हालातों में एक अच्छे सलाहकार नहीं|क्योकि सही लोग संतुलित और थोड़े कठोर होकर सही बात रखते है उन्हें अपनी छवि के ख़राब होने की असुरक्षा नहीं रहती |अक्सर हम देखते है कठोरता को सभी सहजता से स्वीकार नहीं पाते फिर वो मित्र हो बच्चे हो या कोई और |अच्छे लोग हमेशा मनभावन बातें करेंगे किन्तु सही लोग कठोरता के साथ एक सार्थक निष्कर्ष भी देंगे इसलिए जीवन में अच्छे इंसान से कहीं अधिक सही इंसान का होना जरुरी है सही इंसान विपरीत परिस्थितियों में एक शिक्षक की तरह मार्गदर्शक बन सकता है |

संपर्क -idealshobha1@gmail.com/9977744555



लघु कथा -छोटे छोटे भ्रम
छोटे -छोटे भ्रम
शहर की सबसे व्यस्ततम सड़क पर चलते- चलते अचानक एक दिन उसकी चप्पल टूट गई  |जैसे ही उसे इस बात का आभास हुआ उसके भीतर एक डर ने प्रवेश करना शुरू कर दिया पहले उसने इधर उधर देखा कुछ देर इस भ्रम में रहा की अब आसपास से गुजरने वाले लोग उसका मजाक उड़ायेंगे वह अपने मन के इस भ्रम और  लोगों की काल्पनिक सोच को गलत साबित करने के लिए कुछ देर अपने पैरों को चप्पलों से चुपचाप घसीटता आगे चलता रहा |नजरे छुपते छुपाते आखिर इस भ्रम में वो कब तक चलता की सब उसे ही देख रहे हैं ? उसने जैसे तैसे हिम्मत कर अपने आसपास नजरे दौड़ाई उस पूरी सड़क पर वाहनों की भरपूर आवाजाही थी रास्ता गाड़ियों के हार्न से गूंज रहा था |साथ ही जगह -जगह पैदल चलने वालों की भीड़ भी थी जो जैसे तैसे रोड़ क्रास कर सड़क के उस पार जा रहे थे कुछ वहीँ रुककर सिटी बसों का इन्तजार कर रहे थे किन्तु इस व्यस्ततम समय में भी उसे यही लग रहा था की लोग उसकी टूटी चप्पल को न सिर्फ देख रहे हैं बल्कि शायद उसी के विषय में बातें कर रहें हैं |कुछ अनजाने चेहरों से उसकी नजरे जब टकराती तो उसका यह भ्रम उसे सच ही प्रतीत होने लगता |जीवन में अक्सर ऐसा ही होता है जब भी कोई मनुष्य अपने स्वभाव स्वास्थ्य चाल ढाल या व्यवहार में थोड़ा आसाधारण या असामान्य सी स्थिति में हो जाता है तब वह सोचता है सभी लोग उसे ही देख रहे है उसी के सम्बन्ध में बातें कर उसका उपहास कर रहें हैं |अक्सर दूसरों के मन को लेकर उपजने वाले  छोट- छोटे भ्रम और भय की स्थिति हमें समस्याओं और असामान्य स्थिति से उबरने उसका समाधान खोजने से रोकती है| क्योकि अक्सर जीवन में हम  छोटे –छोटे भ्रम पाल लेते हैं और उसी में जीते है |अगर हम असामान्य हालातों में सिर्फ और सिर्फ शांत मन से अपने विवेक से काम करें तो न सिर्फ दूसरों की प्रतिक्रिया का भय हमसे कोसो दूर होगा बल्कि हम किसी भी समस्या का सार्थक समाधान भी खोज पाएंगे |

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मंगलवार, 20 फ़रवरी 2018

मेरे व्याकुल मन अब तू दर्द भरा कोई गीत न लिख,
प्रीत निभा ले सबसे पर दिल पर कोई मीत न लिख।
जीवन की बिसात पर सब रिश्ते मोहरों से लगते हैं,
हार को अब हार न लिख,और जीत को जीत न लिख।।

रविवार, 4 फ़रवरी 2018

जीवन का लक्ष्य क्या है? यह प्रश्न तो बहुत सीधा-सादा मालूम पड़ता है। लेकिन शायद इससे जटिल और कोई प्रश्न नहीं है। और प्रश्न की जटिलता यह है कि इसका जो भी उत्तर होगा वह गलत होगा। इस प्रश्न का जो भी उत्तर होगा वह गलत होगा।ऐसा नहीं कि एक उत्तर गलत होगा और दूसरा सही हो जाएगा। इस प्रश्न के सभी उत्तर गलत होंगे। क्योंकि जीवन से बड़ी और कोई चीज नहीं है जो लक्ष्य हो सकें। जीवन खुद अपना लक्ष्य है।
लोग कहते हैं कि बचपन के दिन बड़े सुख के दिन थे। कैसी अजीब बात है, अगर जीवन विकसित हो रहा है तो बुढ़ापे के दिन सबसे ज्यादा सुख के दिन होना चाहिए। बचपन के दिन क्यों? बचपन तो थी शुरुआत, बुढ़ापा है पूर्णता, तो दिन होने चाहिए सुख के बुढ़ापे के। अगर जीवन बड़ा है तो आनंद बढ़ना चाहिए। लेकिन हम सारे लोग तो गीत गाते हैं बचपन के कि बड़े खुशी के दिन थे। और हमारे कवि-कविताएं लिखते हैं कि बड़े सुख थे बचपन में।