लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

सोमवार, 17 अप्रैल 2017

नीतिशतक में हमें यह जानने को मिलता है कि ‘इस जगत में निम्न (नीच) प्रकृति के लोग विघ्न-बाधाओं के भय से कोई कार्य आरम्भ ही नहीं करते हैं; मध्यम श्रेणी के लोग किसी कार्य को आरम्भ तो करते हैं, किन्तु विघ्न (या परेशानी) के आ जाने पर, वे उस कार्य को अधूरा ही छोड़ देते हैं; तथा श्रेष्ठ पुरुष बार-बार विघ्न के आने पर भी अपने कार्य को अधूरा छोड़ते नहीं; वे उसे पूर्ण (करके ही विश्राम ग्रहण) करते हैं |’
प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचै: प्रारभ्य विरमन्ति मध्या: |
विघ्नै: पुनः पुनरपि प्रतिहन्यमाना: प्रारब्धमुत्तमजना न परित्यजन्ति ||
|| भर्तृहरि, नीतिशतक २७||

शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

नशा आपरेशन .............

नशा आपरेशन।।।।।।

संस्कृत में एक सूक्ति है ---अति सर्वदा वर्जयेत शराबखोरी जैसी देश की भीषण समस्या पर यह सूक्ति सबसे अधिक सही सिद्ध होती है | पूर्ण नशाबंदी के लिए के लिए युद्ध स्तर पर कार्यरत होने की नितांत आवश्यकता है | शराब ‘ शब्द अरबी भाषा का शब्द है और इस का मतलव होता है बुरा पानी . ‘शर’ अर्थात बुरा और ‘आब ‘ का अर्थ पानी | स्वतंत्रता  के ६९  वर्षों  बाद भी सरकार सफलतापूर्वक शराबबंदी लागू नहीं कर सकी है कुछ राज्यों को छोड़ दें तो । शराबबंदी के खिलाफ राजस्व के घाटे का भय  तो कभी आमदनी बढ़ने से विकास की गति तीब्र होने का लालच दिया जाता है ।मुट्‌ठी भर लोग ही बचे हैं जो नशाबंदी के विरुद्ध जोरदार आवाज या कोई कदम उठाने की क्षमता रखते हों ।क्योकि इसमें पुरुषों की अपक्षा महिलाओं की भागीदारी अधिक रहती हैं | केंद्र सरकार ने जनता से कालाधन मुक्त भारत के वादे के अनुसार नोटबंदी का ऐलान किया तो वहीं बिहार सरकार ने महिलाओं से किए अपने वादे के अनुसार पूरे प्रदेश में शराबबंदी का फैसला किया।शराबबंदी की मूल वजह प्रदेश में घरेलू हिंसा ,असहजता आदि को खत्म कर समाजिकता को बढ़ावा देना है। शराबबंदी के बाद से बिहार सरकार को करीब 4000 करोड़ का वार्षिक रूप से घाटा हो रहा है मगर परोक्ष रूप से देखे तो प्रदेश में शराबबंदी के बाद से सड़क दुर्घटना, मारपीट आदि की घटनाओं में कमी तो आई ही है। साथ ही गरीब वर्ग के लोगों की जिंदगी में राहत भी लाई है जो कि एक फायदे का सौदा है। नितीश कुमार जी  का यह कदम अभिनन्दनीय है  बिहार में शराब का प्रयोग बंद कर दिया गया है  यह कदम किसी भी सरकार के लिए आसान नहीं है . इस कदम से उन शराबी तथा शराब के विपणन से लाभ लेने वाले सारे लोगों का प्रारंभिक विरोध सरकार को झेलना पड़ेगा और कहीं न कहीं यह आज बिहार में परिलक्षित हो रहा है | शराब शारीरिक,मानसिक,नैतिक और आर्थिक दृष्टि से मनुष्य को बर्बाद कर देती है . शराब के नशे में मनुष्य दुराचारी बन जाता है , वहीँ चेहरा जो शराब पिने से पहले प्यारा आकर्षक ,प्रसन्न , विचारशील लगता रहता है वही शराब के आदि होने पर घृणास्पद,निकृष्ट,खूंखार,असंतुलित ,अनियंत्रित और वासनात्मक भूखे भेड़िये के सामान लगता है.
यह सभी जानते हैं की शराब हमारे देश में घरेलु हिंसा,सड़क दुर्घटना और लीवर तथा किडनी सम्बंधित बिमारियों की सबसे बड़ी वजह है. शराब गृहस्थियां बर्बाद कर देती है. शराब युवा को अकाल मृत्यु की ओर अग्रसर करता है. शराब मस्तिष्क के संचार तंत्र को धीमा कर दुर्घटनाओं का कारण बनती है, और धीरे -धीरे मनुष्य कि सोचने कि शक्ति को ख़त्म कर देती है. शराब एक मनोसक्रिय ड्रग है,जिसमें अबसादकीय का प्रभाव होता है. एक उच्च रक्त अल्कोहल सामग्री को सामान्यतः क़ानूनी मादकता माना जाता है,शराब के रोगियों में 27 प्रतिशत मस्तिष्क रोगों से 23 प्रतिशत पाचन-तंत्र के रोगों से ,26 प्रतिशत फेफड़ों के रोगों से ग्रस्त रहते हैं.शराब से जितने राजस्व की प्राप्ति होती है उससे ज्यादा धन खर्च तो शराब के कारण होने वाले दंगे -फसाद ,लड़ाई-झगडे,दुष्कर्म की रोकथाम,दुर्घटनाओं की रोकथाम,कानून व्यवस्था बनाए रखने,कार्य क्षमता की हानि,कार्य दिवसों की कमी के कारण सकल घरेलु उत्पाद में होने वाली कमी ,जेल व्यवस्था और शराब के कारण होने वाली बिमारियों की रोकथाम व उपचार पर खर्च हो जाता है.
               हमारे प्रधान मंत्री जी बिहार के मुख्यमंत्री की तरह या जिस तरह उन्होंने स्वयं गुजरात में बन्द करवायी थी उसी तरह कठोर कदम उठाकर शराब मुक्त देश घोषित करना चाहिए .उनके इस कदम से फिर से हमारा भारत सुसंस्कृत होकर ऋषि मुनि के देश हो जायेग .देश के हर नागरिक सफलता की सोपान पर चढ़ जायेगा ,देश के हर मानव पवित्र आचरण यानी क्लीन हैबिट का बन जायेगा .

                                                 ------                                       -कुछ पत्र पत्रिकाओं का समीक्षात्मक संकलन ..
आज स्त्री-विमर्श की चर्चा हर ओर सुनाई पड़ रही है। महादेवी ने इसके लिए पृष्ठभूमि बहुत पहले तैयार कर दी थी। सन्‌ १९४२ में प्रकाशित उनकी कृति ’श्रृंखला की कड़ियाँ’ सही अर्थों में स्त्री-विमर्श की प्रस्तावना है जिसमें तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियों में नारी की दशा, दिशा एवं संघर्षों पर महादेवी ने अपनी लेखनी चलायी है।
महादेवी वर्मा की कवितओं में मन की गहनतम अनुभूतियों की अभिव्यक्ति मर्मस्पर्श रूप में हुई है। प्रेम और श्रृंगार के भाव को मर्यादित तरीके से व्यक्त किया गया है।गीतों में तो लगता है महादेवी के मन की पीड़ा स्वतः बह पड़ी है। मानो यह पीड़ा एक ऐसी दीपशिखा है जो उनके मन में निर्धूम जला करती है और जिसकी खुशबू का अहसास हर पाठक करता है, क्योंकि यह पीड़ा केवल महादेवी की न होकर हम आप सबकी हो जाती है।