लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

बुधवार, 25 अप्रैल 2018

भीष्म सी प्रतिज्ञा
धृतराष्ट्र जैसा मोह
दुर्योधन सा हठ
द्रोण जैसा छल
शकुनि जैसी चाल 
अर्जुन जैसी ज़िद्द
भीम जैसी जुँग
युधिष्ठर सा धर्म
द्रौपदी जैसा उपहास
कर्ण सी मित्रता
बर्बरीक सी भक्ति
इस दिमाग़ में क्या क्या चलता रहता है
 ऐसा क्या है जो मन को बाँधे रहता है

शुक्रवार, 20 अप्रैल 2018


हम मात्र दिवस मनाते है पितृ दिवस मनाते है १५ मई को अन्तराष्ट्रीय परिवार दिवसहै |

गुरुवार, 19 अप्रैल 2018

कुछ प्रश्न वर्तमान पीढ़ी के जहन में----सम्बंधित है भविष्य से ----शायद अभिभावकों के कुछ काम आ जाए-----
१-प्रेम को लेकर असहज है समाज!
२-विवाह के फैसले पर असमंजस में युवा!
३-देख – भांप कर चुने जीवनसाथी
४-अंतरजातीय विवाह करेंया न करें
५-विवाह कीसफलता के पूर्व आंकलन मुल्यांकन का पेरामीटर क्या
६-कोई भी निर्णय पीढ़ियों में संवाद, ना बन जाय विवाद
७- अविवाहित रहने केक्या परिणाम[स्त्री औरपुरुष दोनों के]
८-लिव इन रिलेशनशीप कहाँ तक कारगर साबित
९ -जीवन के इस अहम निर्णय लेने की योग्यता का क्या पेरामीटर-उम्र,अनुभव,परिपक्वता,या कोई घटना अथवा परम्परा
१०-उपरोक्त फैसले समाज को ध्यान में रखकर ले या अपने वर्तमान औरभावी जीवन को
उपरोक्त के चलते प्रेम और विवाहित संबंधों के नए प्रतिमानों की न सिर्फ खोज हो रही है, बल्कि उन पर नए परीक्षण भी हो रहे हैं। यह दीगर है कि इससे पीढ़ियों में संघर्ष और तनाव उभरने लगा है।------ शोभा जैन
महज निर्णय लेना आवश्यक नहीं,उसका सही समय पर लेना आवश्यक है सही या गलत परिणाम निर्धारित करते है परिणाम परिस्थितियां निर्धारित करती है परिस्थितियाँ आपके निर्णयों के पुनर्चक्र के द्वारा ही निर्मित होती है --- शोभा जैन
समय के साथ- साथ हमारी किन चीजों का विकास हो रहा है इसका पुनरावलोकन होते रहना चाहिए कभी- कभीं सिर्फ शरीर का विकास होता है बुद्धि का नहीं, उम्र का विकास होता है अनुभव का नहीं, डिग्रियों की लम्बी कतारे किन्तु ज्ञान का नाम नहीं, विचारों के आडम्बर बहुत किन्तु उनमे तर्क नहीं, जीवन बहुत जीने को पर अनुशासन नहीं, आधा अधूरा विकास नहीं कहलाता 'संतुलित विकास' का पुनरावलोकन अवश्य होना चाहिए| कहने का अर्थ समयानुसार स्वयं को अपडेट करते रहना | क्योकि मेरा ऐसा मानना है ---'समय- असमय अपने भीतर से कुछ घटाना कुछ बढ़ाना अति आवश्यक हो जाता है |' शोभा जैन
अपनी पुरानी किताबों के लिए कोई योजना है ? नयी कक्षाओं में प्रवेश लेते विद्यार्थियों की पुरानी कॉपी एवं किताबे किसी के लिए बहुमूल्य धरोहर है |आप चाहे तो इतनी कम उम्र में विरासत सोंपने की परम्परा की नीव रख सकते है |------शोभा जैन
स्त्री होने का अर्थ कई 'सवालों के जवाब' किन्तु अभी प्रश्न चिन्ह सी प्रतीत हो रही है |शोभा जैन
ज्यादतर लोग ओढ़ी हुई मानसिकता का शिकार होते हैं । क्या हमने अतिवाद को अनायास ही जन्म दे दिया |शोभा जैन 
हम 'जरूरतों' से अधिक इच्छाओं में जीते है और सबसे अधिक दुखी भी 'इच्छाओं' की वजह से होते है| इस स्रष्टि में ऐसे इंसान बिरले ही होते है जिनकी जरूरतें बहुत सिमित होती है औरसुविधाओं के होने के बावजूद वह अपनी महज सिमित जरूरतों में सदैव संतुष्ट रहते है यही संतुष्टि उनकी स्थाई ख़ुशी का कारण बन जाती है |संक्षेप में--- सुख सुविधाये होने के बावजूद उनका उपभोग न करके स्वयं को संतुष्ट रखना एक बहुत बड़ी उपलब्धि होने के साथ किसी के उत्कृष्ट व्यक्तित्व होने का परिचायक भी है इसे थोडा गहराई से समझे 'इच्छा' और 'जरूरतों' के फर्क को समझना बेहद आवश्यक है | ---शोभा जैन
संमाज और दुनियाँ की जटिलताओं के मध्य आत्मनिर्माण और आत्मपरीक्षण दोनों अनिवार्य हो जाते है |शोभा जैन
स्त्री का आत्सम्मान क्या है प्रश्न का उत्तर स्वयं स्त्री को खोजना चाहिये अक्सर अपने 'ईगो' को आत्मसम्मान समझने लगती है, स्त्री के आत्मसम्मान में कई रिश्तों की भागीदारी होती है वह कभी भी उसे अकेले हासिल नहीं कर सकती जैसे पिता,पति,पुत्र |-शोभा जैन
दुनिया में काम करने के लिए आदमी को अपने ही भीतर मरना पड़ता है. आदमी इस दुनिया में सिर्फ़ ख़ुश होने नहीं आया है. वह ऐसे ही ईमानदार बनने को भी नहीं आया है. वह पूरी मानवता के लिए महान चीज़ें बनाने के लिए आया है. वह उदारता प्राप्त करने को आया है. वह उस बेहूदगी को पार करने आया है जिस में ज़्यादातर लोगों का अस्तित्व घिसटता रहता है..
.- (विन्सेन्ट वान गॉग की जीवनी- 'लस्ट फ़ॉर लाइफ़' से)
वर्तमान पीढ़ी परिवर्तन के दौर से गुजर रही है। जीवनशैली, नैतिक मूल्यों एवं आदर्शों में बदलाव आ रहा है। आज की युवा पीढ़ी विकास एवं आर्थिक उन्नयन के बोझ तले इतनी अधिक दब गई है कि वह अपने पारम्परिक आधारभूत उच्च आदर्शों से समझौता तक करने में हिचक नहीं रही है।--शोभा जैन 
जिसकी कीमत होती है वही तो बिक सकता है। किन्तु जिसकी 'कीमत' हो वह 'कीमती' भी हो ये जरुरी नहीं .....शोभा जैन 
मैंने घरों के दरवाजे पर बैठी भूख लिखी 
चोराहे पर दुर्घटनाग्रस्त लिखी एक बेटी 
फसल पर डाका डालते, लिखे पटेल 
मैने सरकार की लाठी गोली लिखी 
लिखी गाँव की लुटती आबरू .....
तुमने क्या लिखा कवि----
सफ़र की हद है वहाँ तक कि कुछ निशान रहे|
चले चलो के जहाँ तक ये आसमान रहे|
ये क्या उठाये क़दम और आ गई मन्ज़िल
मज़ा तो जब है के पैरों में कुछ थकान रहे|
वो शख़्स मुझ को कोई जालसाज़ लगता है
तुम उस को दोस्त समझते हो फिर भी ध्यान रहे|
मुझे ज़मीं की गहराईयों ने दाब लिया
मैं चाहता था मेरे सर पे आसमान रहे|
मगर सितारों की फसलें उगा सका न कोई
मेरी ज़मीन पे कितने ही आसमान रहे|
वो एक सवाल है फिर उस का सामना होगा
दुआ करो कि सलामत मेरी ज़बान रहे|
राहत...........
ख्यात वरिष्ठ साहित्यकार कृष्णा अग्निहोत्री ने अपने जीवन के अनुभव पाठकों से साझा किए :- " मैंने हमेशा भोगा हुआ यथार्थ ही लिखा "

बुधवार, 18 अप्रैल 2018

सारा क्रोध केवल फेसबुक या ट्विटर पर उकेरने के लिए ही होता है या हमारे समाज प्रेमी मित्र जमीनी लड़ाई भी लड़ रहे है |क्योकि अब तो बेटियों के बलात्कार की खबरे अखबार में छपने वाले हर दिन के राशी फल के जैसी हो गई है |इसकी वजह केवल और केवल आक्रोश का तमाशा करना ढोल पीटना है |जबकि जमीनी लड़ाई के लिए किसी के भी पास समय नहीं सब अपनी दिनचर्या सवारने में लगे है |कुछ तो चिलचिलाती जला देने वाली धूप होने की वजह से घर बाहर नहीं निकल सकते उनका राष्ट्र प्रेम ठंडी छत के नीचे कूलर या एसी के बिना बाहर नहीं आ सकता | बेटियों को संवेदना के परिणाम चाहिए कोरी देश भक्ति नहीं | उन बेटियों की जिनके साथ एसी कोई भी घटना हुई है उनकी तस्वीरे शेयर करने से अच्छा है जिन्होंने ये घिनोने कुकृत्य किये है उनकी तस्वीरे तलाशे शेयर करें |अक्सर हम उन बातों पर ही ध्यान देते है जो हमें करना है जो हमें नहीं करना है उसकी सूची हम कम ही बनाते है |शोभा जैन