लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

सोमवार, 29 फ़रवरी 2016

 शहर की जिंदगी में संबंधों के उपसर्ग और प्रत्यय अर्थहीन हो गए हैं। 
 समझ ही नहीं, जिंदगी के साथ संवेदनापूर्ण साझेदारी भी जरूरी है।

गुरुवार, 25 फ़रवरी 2016

 कविता
'जीवन' में  'मैं '
-शोभा जैन

आदमी 'जीवन' जीता हैं 'मैं' में
'जीवन' अभाव पूर्ति से अधिक कुछ नहीं
अपने भीतर के मनुष्य और ,
विश्व  के बीच एक गहतर सम्बन्ध
और उसकी  अभिव्यक्ति भी नहीं
उसके चिंतन के क्रम में
जीवन की मौलिक उपादेयता
 की एक झलक भी नहीं
जो बदल जाती हैं
 समाज के बदलने के क्रम में
सहसा  हुई घटना
बदल  जाती जाती हैं  कुछ दिनों में
आई गई बात के स्वरुप में
क्षण  भंगुर जन्मी संवेदनाये
अखबार के पहले पन्नें से शुरू
और अंतिम पर खत्म हो जाती
बचा रहता केवल 'मैं'
जो कभी जाता ही नहीं
जबकि उस 'मैं' के पीछे
छिपे हैं जीवन के
 अघटित रहस्यों
की श्रृंखला
अपने आप से कतराने का सच
चल चित्र पात्रों में अपनी
पहचान खोजने  का समय
मन बहलाने के झूठे आयाम
किसी चित्र नुमा संगीत के टुकड़े
कुछ खोये  हुए सुख के पल
कुछ समझदारी की बातें
जीवन के कटुक सवाल
जिनसे बचकर भागता 'मैं'
मनोरंजन को मानता तनाव मुक्ति का साधन
ऐसे अयथार्थ से प्रभावित 'मैं'
सतत रहता उस विचित्र मनोरंजन में
जो रहस्यमय हैं उस असंतोषजनक जीवन में
अपने सम्पन्न अस्तित्व और उसके अनुभवों
में बिना खतरे के पलायन करता 'मैं'
दूसरे पात्रों में अपनी अपूर्ण जीवन
को पूर्ण करने की लालसा
या फिर किसी प्रेक्षागृह के
अँधेरे से एक   रोशन मंच पर
आँखे गड़ाए उस 'मैं 'से 'मुक्त'
होकर 'मुग्ध' हो जाते हैं
जबकि वो केवल रंगमंच हैं
उस एक रात का, यथार्थ नहीं,
सम्पूर्ण जीवन का
मनुष्य नितांत अपने से
कुछ अधिक होना चाहता हैं
 जीवन केवल 'मैं' में जीना चाहता हैं
वो मैं जो वास्तव में अस्तित्वहीन हैं
जो भीड़ के साथ चले जा रहा हैं
अपने एक 'अलग व्यक्ति' होने पर
उसे संदेह हैं या संतुष्ट नहीं
ओरो से अलग दिखना उसे नीरस कर देता हैं
अपनी व्यक्तिक जीवन की
आंशिकता से वो जीवन की पूर्णता
की और ढहना चाहता हाँ
अर्थ गर्भ से निकला तर्क संगत विश्व
में अपने व्यक्तित्व की क्षण भंगुर
अकस्मात् सीमा रेखाओं में
अपने को नष्ट कर देने के खिलाफ विद्रोह करता हैं
केवल उन्ही से सम्बन्ध
जोड़ना चाहता हैं जो उसके 'मैं' से
कही ज्यादा हो
जो उसके भीतर हैं वो छद्म रहे
किन्तु उसके बाहर अविनाभावी  हो
उसका 'मैं' आसपास की दुनियां को
अपने भीतर खींचकर
अपना बना लेने को लालायित हैं
किन्तु अपने भीतर के सच
आत्म सात नहीं कर सकने
की असमर्थता उसे बाहर झाँकने के लिए
धकेलती हैं
उसके भीतर का डर
उसे बहार के लिए आमंत्रण देता हैं
वह केवल विज्ञानं और तर्क से
अपने 'मैं' भरे जीवन के सुदूर नक्षत्र पुंजो
को विकसित कर लेना चाहता हैं
अणु की अतलांत गुत्थियों में
प्रविष्ट करना चाहता हैं
अपने सिमित 'मैं' में
सामूहिक अस्तित्व को जोड़ना चाहता हैं
जाने क्यों अपने भीतर के व्यक्ति को
सामाजिक बनाना चाहता हैं
नहीं रचना चाहता अपनी अलग रचना
अपने अस्तित्व सोच विचारों के साथ
नहीं रखना चाहता स्वयं से निजता
फिर भी जीता हैं 'मैं' में
स्वयं से निजता साहस मांगती हैं
क्यों नहीं वो खोजता स्वयं में
केवल एक 'व्यक्ति' खोखलेपन में जीता जीवन ]
 झूठे मैं के मद में डूबा अस्तित्वहीन जीवन की
गाड़ी में भागता हरदम तलाशता
मनोरंजन के आयामों में अपने
जीवन का सुख
क्यों नहीं खोजता वो अपने भीतर
एक संभावना
जो उसके भीतर छिपी पड़ी हैं
उसके 'मैं' की आड़ में या
सामाजिक होने के अतिरेक में
कही गुम हो  हैं
उपनयस के नायक बनने के लालसा
या रंग मंच का महानायक बनने का बेकाबू
उन्मादी रुझान उसे अपने ही भीतर छिपी
सार्वभौम मौलिक उपादेयता से दूर कर रहा हैं
अपनी भोगवादी प्रवृत्ति
उस मनोरंजन में संतुष्टि नहीं देगी
 अपने 'मैं ' से तादम्य स्थापित करने का साहस
नहीं जूटा पाता। ..
बल्कि अपने से दूर हटता
स्वयं से दुरी बनाता
यथार्थ की नंगी ताकत को
 काबू  रखने जोखिम लेता
निः संदेह -मैं का यथार्थ
भयावह हैं द्वंदात्मक हैं
किन्तु उन्मुक्त स्वतंत्रता
भीतर से ही आती हैं
बाह्य तर्कवाद से नहीं
या थोथे दिखावे और
नाटकीय रंगमंच से भी नहीं
आयाम जीवन नहीं
बल्कि वो कभी कभी
बन जाते हैं साधन
जीवन से सुदूर करने के
अपने 'मैं' से दूर करने के
दूसरों में अपना व्यक्तित्व जीने के
अपना अस्तित्व खोने के
अपने 'व्यक्तिगत' होने से परे
'व्यक्ति' होने से भी कोसो दूर कर देते हैं ये
क्षणिक मनोरंजन में खोजते हैं
अपने जीवन का यथार्थ
उसके पात्रों में अपनी छवि
जो थियेटर के बाहर आते ही
दू कर देती हैं अपने भरम को
लुभावनी सामयिक मुग्धावस्था ही
कमोवेश 'मनोरंजन' का स्वभाव हैं
उस सुख का देहावसान हैं जो
हम जे सकते हैं अपने व्यक्ति होने में
अपने ही अस्तित्व के साथ
अपने वास्तविक 'मैं' के भीतर
जीवन के प्रश्नों के प्रत्युत्तर के साथ
पूंजीवादी इस समाज में
अस्तित्व का हनन मानव का
बड़ा ह्रास हैं जो दिखाई नहीं देता
या पारदर्शी नहीं
हम समझ ही नहीं पाते
 अस्तित्व साधित जीवन के लिए
बुद्धि और भावना
में संतुलन कितना आवश्यक हैं
भावना- बुद्धि के चरम प्रयत्नो से प्रेरित करती हैं
वहीँ बुद्धि- हमारी भावना  शुद्धिकरण
किन्तु हम उलझे रहते हैं ऊपरी परतों में
झंझटो में देखा देखि में
अपने हेटर देखना ही विस्मृत कर देते हैं
भूल जाते हैं जीवन संभावनाओं से भरा पड़ा हैं
अपने भीतर खोजने का विलम्ब
हमें 'मैं' से दूर करता हैं
धकेलता  हैं उस 'मैं' में
जो यथार्थ हैं ही नहीं
लोकाचारों में स्वयं को डुबोना
उसे स्वयं स दूर कर देता हैं
कभी कभी वो ये भी भूल जाता हैं
की वो हैं क्या
उसका जन्म क्यों हुआ
सबसे आसान जीवन का चुनाव ही
उसे भीड़ का हिस्सा बना देता हैं
तब खो बैठता हैं वो अपने भीतर के 'व्यक्ति' को
और मद में जीता अपने 'मैं' में
जो वास्तव में उसका अपना रहा ही नहीं।










बुधवार, 24 फ़रवरी 2016

बस एक पल...........
---शोभा जैन
जीवन, जेसे
हर रोज एक नया सूरज,
नयी रौशनी
नए अहसास,
नए पल,
कुछ चिरस्थायी
कुछ क्षणिक...
हर रोज एक नयी जिन्दगी
जीते हैं हम
सच-
जीवन एक यात्रा ही तो हैं
ट्रेन मैं मुसाफिर बन के
कुछ ऐसे हमराही बन जाते हैं
जिनकी अमीट यादो को हम
जीवन भर का साथ बना लेते हैं
कितनी अजीब बात हैं
जीवन के इस सफ़र की
दो अजनबी जब ट्रेन मैं
बिना कुछ कहे साथ बैठते हैं
तो निश्चित ही
कुछ अनकहे शब्द
वहाँ जन्म ले लेते हैं
जो जोड़ देते हैं एक दूसरे को
उस पल के लिए….
दो परिचित.........
अजनबी बन जाते हैं
जब शब्दों के बिना साथ हो…
जेसे उस रिश्ते मैं
सफ़र की थकान सी
महसूस हो रही हो
हर शब्द
जीवन की,
एक भोगी हुई
सच्चाई कहता हैं
कोई पल
कभी
किसी के लिए
नहीं रुकता
हम जीवन जीते हैं
बस उन पलो में ....
मेरा एक सवाल..
क्या आपके
जीवन का
बस एक पल
किसी की
पूरी जिन्दगी बन सकता हैं ???


.........................................................

सोमवार, 22 फ़रवरी 2016

'भूख' से ज्यादा 'धर्म' पर बहस करना कितना सार्थक हैं ........और बहस का सार्थक न होना और भी निराशाजनक हैं
'भूख' से ज्यादा 'धर्म' पर बहस करना कितना सार्थक हैं। और बहस का कोई निष्कर्ष न निकल पाना और भी निराशानजनक हैं ..
 मानवता के ह्रास का एक बड़ा कारण चरित्र का दोहरापन है और कई बार तो चरित्र के विचलन को ही आधुनिकता का पर्याय मान लिया जाता है क्योंकि सरप्लस पूँजी ने मानव के सबंधों को सिर्फ़ धन-संबंधों में ही बदलने का कार्य किया है और सुख की झूठी परिभाषा की है।

रविवार, 21 फ़रवरी 2016

जन्म तिथि -आधुनिक साहित्य के प्राण श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जी  21 फ़रवरी सन 1896 

हिन्दी कविता के अमर-स्वर, माँ वाणी के प्रिय पुत्र, माँ सरस्वती के हर आराधक के कुल-गुरु महाप्राण निराला को उनके जन्मदिवस पर प्रणाम!  सम्पूर्ण हिन्दी साहित्य जगत महाप्राण का ऋणी है! उनके चरणों में नत होते हुए मैं सभी साहित्यिक मित्रों को निराला जयंती की हार्दिक बधाई देती  हूँ।

भवानीप्रसाद मिश्र स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी काव्य जगत की गांधीवादी परम्परा के बड़े हस्ताक्षर हैं। उनकी रचनाओं में गांधीवाद, प्रकृति के प्रति स्पृहा और ग्राम्य जीवन की मोहक झांकी देखी जा सकती है। 31 वीं पुण्यतिथि के अवसर पर भवानी बाबू को नमन है।  उनकी सुप्रसिद्ध कविता सतपुड़ा के घने जंगल, जिसे पचमढ़ी के जंगलों में प्रवेश करने से पूर्व मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग ने अंकित किया है। यह मध्यप्रदेश के सपूत को याद करने का एक अच्छा तरीका तो है ही, साथ ही पचमढ़ी के जंगलों के काव्यात्मक रेखांकन के माध्यम से कवि तथा प्रकृति के सौंदर्य से पर्यटकों को लुभाने का एक अनूठा प्रयास भी है।

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016

शब्द भाषा का जीवन होते हैं उनका कोई विकल्प नहीं--- शोभा जैन

'भूख' से ज्यादा 'धर्म' पर बहस करना कितना सार्थक हैं। ........
'साहित्य' दुःख के आंसुओं में आनंद की अंतरधारा बनता हैं और सुख के क्षणों में उत्सव

एक प्रश्न ---- क्या हर लेखक बिक्री के लिए लिखता हैं,,,,,,,,,
दु:ख झेलकर, संघर्ष से निकल कर "मुक्त" हो जाना और अपनी मुक्ति में सबको सहभागी बनाने की चेष्टा ही संभवत: साहित्य की शाश्वता का रहस्य है - हरेक से जुड़ने और हर जीवन के भीतर से "तिर" आने की अदम्य इच्छा ही साहित्य का उद्देश्य है।साहित्य से जुड़े साहित्य को जीवन से जोड़े --शोभा जैन
भावना के सारे रिश्तों में आर्थिक स्वतंत्रता की निर्णायक भूमिका रही हैं। महिलाओं की सामाजिक स्वतंत्रता उनकी आर्थिक स्वतंत्रता पर आधारित हैं और यह एक निर्णायक स्तम्भ हैं जिसे परोक्ष रूप से स्वीकारा जाता हैं प्रत्यक्ष नहीं  स्वयं महिलाओं द्वारा भी । शोभा जैन

भाषा में शिष्टता --  शोभा जैन
अपनी भाषा में शिष्टता को शामिल करे। बिना शब्दों के संवाद सम्भव नहीं पर शब्दों की अभियक्ति उसके अर्थ में जान डाल देती हैं अगर शिष्ट शब्दों का प्रयोग हो तो और भी अधिक सम्मानजनक बात हैं जिसका अभाव दिखाई दे रहा हैं हर कोई तेहश में हैं दैनिक भाषा में दिन-ब-दिन बढ़ती अश्लीलता, बौद्धिक दिवालियेपन का द्योतक है। पश्चिमी साहित्य तो इस गर्त में समा ही रहा है, भारतीय "आधुनिक समाज" की दैनिक भाषा में विदेशी गालियाँ इस तरह से घर कर रही हैं कि उनके बिना वाक्य पूरा होता ही नहीं ....मेने गत कुछ माह में अच्छे श्रेणी के उच्च वर्ग शिक्षित लोगो को इसका उदाहरण बनते देखा हैं गालियाँ अंग्रेजी में हो या हिंदी में अपशब्द की गिनती में ही आएगी। इसलिए कृपया अपने शब्दों के प्रति सतर्कता बरतें कभी कभी वो आपके व्यक्तित्व का परिचायक बन जाते हैं और कभी -कभी आपका व्यक्तित्व उन्ही के आधार पर बन जाता हैं जब नित प्रतिदिन ऐसे शब्दों का इस्तेमाल होने लगे।
ये हमारे समाज की दुर्भाग्यपूर्ण प्रवृत्ति हैं की ये ''जो आप आज हैं उस पर विचार नहीं करता ,किन्तु आप कल क्या थे ये उनकी चर्चा का विषय रहता हैं'' अक्सर वो किसी के सफलतम बदलाव को उसके असफल बीते कल के साथ अपने नीरस,अचल वर्तमान के साथ बैठा नहीं पाते . उन्हें शायद इस बात का आभास हो जाता हैं वो जो कल था वो आज नहीं हैं.... पर हम तो जहाँ से चले थे आज भी वहीँ हैं और यही बात उनकी कुंठा का कारण बनकर किसी सफल व्यक्ति के जीवन के बदलाव को सहजता से स्वीकार्य होने से रोकती हैं जिसके चलते सफल व्यक्ति को आलोचनाएँ ज्यादा मिलती हैं शुभकामनाये कम या फिर देर से.... बहुत कम लोग होते हैं जो आपके बीते कल के निराशाजनक प्रदर्शन साथ आपके आश्चर्य में डाल देने वाले सफल, आशावादी 'वर्तमान' में आपके साथ खुश हो अक्सर ऐसे लोगो को शुभचिंतक कहा जाता हैं जिनका सदा अभाव पाया जाता हैं। ।
शोभा जैन
"दुख सबको माँजता है
स्वयं चाहें
मुक्ति देना वह न जाने
पर जिन्हें वह माँजता है
उन्हें यह सीख देता है...
कि सबको मुक्त रखें।.."
"अज्ञेय"
शब्द भाषा का जीवन होते हैं उनका कोई विकल्प नहीं--- शोभा जैन

बुधवार, 17 फ़रवरी 2016

भावना के सारे रिश्तों में आर्थिक स्वतंत्रता की निर्णायक भूमिका रही हैं। महिलाओं की सामाजिक स्वतंत्रता उनकी आर्थिक स्वतंत्रता पर आधारित हैं और यह एक निर्णायक स्तम्भ हैं जिसे परोक्ष रूप से स्वीकारा जाता हैं स्वयं महिलाओं द्वारा भी । शोभा जैन 
ये हमारे समाज की दुर्भाग्यपूर्ण प्रवृत्ति  हैं की  ये ''जो आप आज हैं उस पर विचार नहीं करता ,किन्तु आप कल क्या थे ये उनकी चर्चा का विषय रहता हैं''  अक्सर वो किसी के सफलतम बदलाव को उसके असफल बीते कल के साथ अपने नीरस,अचल  वर्तमान के साथ  बैठा नहीं पाते  . उन्हें शायद इस बात का आभास हो जाता हैं वो जो कल था वो आज नहीं हैं....  पर हम तो जहाँ से चले थे आज भी वहीँ हैं और यही बात उनकी कुंठा का कारण बनकर किसी सफल व्यक्ति के जीवन के बदलाव को सहजता से स्वीकार्य होने से रोकती हैं जिसके चलते सफल व्यक्ति को आलोचनाएँ ज्यादा मिलती हैं शुभकामनाये कम या फिर देर से । शोभा जैन

लिखने की 'सार्थकता' और 'सार्थक' लेखन लिख पाना दोनों एक साथ होना किसी उपलब्धि से कम नहीं।
शोभा जैन
आलेख-  भाषा में शिष्टता -- लेखिका शोभा जैन
अपनी भाषा में शिष्टता को शामिल करे। बिना शब्दों के संवाद सम्भव नहीं पर शब्दों की अभियक्ति उसके अर्थ में जान डाल देती हैं अगर शिष्ट शब्दों का प्रयोग हो तो और भी अधिक सम्मानजनक बात हैं जिसका अभाव दिखाई दे रहा हैं हर कोई तेहश में हैं दैनिक भाषा में दिन-ब-दिन बढ़ती अश्लीलता, बौद्धिक दिवालियेपन का द्योतक है। पश्चिमी साहित्य तो इस गर्त में समा ही रहा है, भारतीय "आधुनिक समाज" की दैनिक भाषा में विदेशी गालियाँ इस तरह से घर कर रही हैं कि उनके बिना वाक्य पूरा होता ही नहीं ....मेने गत कुछ माह में अच्छे श्रेणी के उच्च वर्ग शिक्षित लोगो को इसका उदाहरण बनते देखा हैं गालियाँ अंग्रेजी में हो या हिंदी में अपशब्द की गिनती में ही आएगी। इसलिए कृपया अपने शब्दों के प्रति सतर्कता बरतें कभी कभी वो आपके व्यक्तित्व का परिचायक बन जाते हैं और कभी -कभी आपका व्यक्तित्व उन्ही के आधार पर बन जाता हैं जब नित प्रतिदिन ऐसे शब्दों का इस्तेमाल होने लगे।

मंगलवार, 16 फ़रवरी 2016

आलेख -
 आप विवाह क्यों कर रहे है......
[ कम से कम आधुनिकता की दौड़ में विवाह को समझोते की परिभाषा और अनगिनत विकल्पों के रूप में न गिना जाय समझौते की इति विवाह-विच्छेद या तलाक में होती है.ऐसा मेरा मानना हैं ।  ]
लेखिका --शोभा जैन

क्या आपकी उम्र विवाह की हों  गयी हैं इसलिए या फिर माता-पिता परिवार का दबाव आप पर हैं क्योकि दोनों ही परिस्थिति में विवाह संतुष्टि प्रद सफल होने सम्भावनाये कम ही प्रतीत होंगी। या फिर आपको ऐसा प्रतीत होता हैं की आप अपने जीवन में अकेले हैं और उस अकेलेपन को दूर करने के लिए किसी इंसान के साथ जीवन बिताना चाहते हैं तब भी शायद आप इस पैरामीटर पर खरे न उत्तर पाओं क्योकि उस इंसान की भी अपनी कुछ जरूरते और कारण होंगे और उसकेम प्रति जिम्मेदारिया होंगी पर आपकी वजह शायद उनका निर्वहन न कर पाये इस वजह से सिर्फ  अकेलेपन को दूर करने का कारण भी विवाह के लिए उचित नही या मुझे  फिर आपको  ऐसा लगता हैं की मुझे किसी भी प्रकार के फाइनैंशली सुपोर्ट की आवश्यकता हैं इसलिए मुझे इस व्यक्ति से विवाह कर लेना चाहिए। या फिर माँ अकेली हैं बहु आ जाएगी तो उन्हें सहारा मिल जायेगा। भावनाओं का अपना अलग स्थान हैं पर भावनाओं में समझदारी ही भावनाओं को सही निर्णायक मोड़ दे सकती हैं। कही आप विवाह इसलिए तो नहीं करना चाहते की  आपने कुछ जाने- अनजाने में ऐसी गलतियां कर ली हैं जिनको छिपाने या फिर उन पर पर्दा डालने या फिर अपने आप को सही साबित करने के लिए विवाह ही एक मात्र विकल्प बनता हैं। इस वजह से आप विवाह करने पर विवश हैं। उपरोक्त सभी कारण विवाह करने के कारण बन जाय लेकिन सफल विवाहित जीवन जीने के लिए बहुत मुश्किल प्रतीत होते हैं।
    विवाह एक व्यक्ति के साथ जीवन भर का सुखमय सन्तुष्टिमय आनंदमय साथ होता हैं जिसके प्रति आप प्रेम, सहानुभूति,सहनशीलता  समझ और समझदारी , प्रगाढ़ मित्रता, के साथ निभाये जाने का चरम पाते   हैं। जिसमे वजह से ज्यादा जरुरी 'जरूरत' होती हैं वो जरुरत जो ता -उम्र बनी  रहने वाली हैं उसमे कभी उबाऊपन नहीं हैं हर दिन कुछ नया। ''उसकी पूर्ति न होने में ही उसका सुख हैं''.[इसे समझे कुछ चीजो की जरूरतें ही जीवन भर साथ रहने का कारण बनती हैं ]...   जरूरत हर दिन उस इंसान की उस रिश्ते की बानी रहे। अक्सर ऐसे इंसान से विवाह करे या तो दोनों की जरूरते एक जैसी हो या फिर दोनों की अलग- अलग जरूरतों की पूर्ति दोनों के पास हो लेकिन जीवन भर के लिए। क्योकि जीवन तो आपको जीना हैं उसके साथ हर अच्छे बुरे समय के साथ लेकिन उसके सुखों और दुखो का लाभ- हानि आपके साथ -साथ आपसे जुड़े लोगो को भी प्रभावित करता हैं  इसलिए विवाह करवाने वाले से ज्यादा आवश्यक जिसे विवाह करना हैं ये निर्णय उसे अपने स्वांकलन के आधार पर करना चाहिए की मैं विवाह क्यों करना चाहता हूँ और मैं इसे निभाने में कितना कहाँ  तक सक्षम हूँ खुशियाँ पाने के लिए [जिम्मेदारियों के रूप में ] कीमत तय कर ले  ।  दरअसल विवाह करना कोई नियम  या प्रावधान नहीं हैं...  लकिन जब इसमे आपको संतुष्टि मिलती हैं तो आपका धर्म कहता हैं की आप दूसरों को भी खुशियाँ दे जो आपके पास होगा वही आप दूसरों को दे पायंगे जो आपने महसूस किया वही आप दूसरों में महसूस करने की ताकत रख पाएंगे इसलिए पहले स्वयं अपने विवाह में संतुष्टि खोजें फिर दूसरों को सलाह दे समझाइश दें। इसके साथ- साथ सलाह पाने वाला भी स्वयं का परीक्षण अवश्य करे सवालों के कटघरे में खड़े होकर की विवाह क्यों।  सिर्फ सामाजिक और पारिवारिक दबाव और उम्र  में इजाफा या फिर एक -दूसरे का उपभोग करने की लालसा विवाह करने का कारण तो बन सकती हैं किन्तु सन्तुष्टिप्रद विवाहित जीवन को  जीवित रखने का कारण नहीं बन सकती। विवाह जीवन की किसी एक वजह को पूरा करने के लिए उठाया जाने वाला इतना बड़ा कदम कदापि नहीं हो सकता। उसके पीछे  बहुत बडे  और अहम  कारण होने चाहिए जिनका सामाजिक  तौर पर आवश्यकता द्वितीयक हो पर व्यक्तिगत स्तर पर प्राथमिकताओं में कारण प्रथम हो  कम से कम आधुनिकता की दौड़ में विवाह को समझोते की परिभाषा और अनगिनत विकल्पों के रूप में न गिना जाय  हो ऐसा मेरा मानना हैं  समझौते की इति विवाह-विच्छेद या तलाक में होती है.। लेखिका --शोभा जैन  

रविवार, 14 फ़रवरी 2016

अपनी सोच को किसी पर भी केंद्रित रखा जाए पर परिधि में पूरा परिवार रखें तो प्रेम का उदात्त रूप बचा रह सकता है ।

'प्रेम' वैलेंटाइनडे का मोहताज नहीं............
शोभा जैन
'प्रेम' जिसके जीवन में हैं किसी भी रूप में उसके हृदय की धरती पर अनाम मीठे और अनूठे फलों का पराग टपकता हैं.... और उसकी गंध से उसकी रूह महती हैं जिंदगी ही नहीं कायनात का जर्रा -जर्रा जैसे धड़कने लगता हैं.... चारों और मुलायम रौशनी का समंदर लहराने लगता हैं और राहों में ख्वाब आगे -आगे चलने लगते हैं जीवन के कई उद्देश्य नजर आने लगते हैं और 'प्रेम' का एहसास कभी- कभी आपका मार्गदर्शक भी बन जाता हैं। निः संदेह प्रेम अंधेरे जीवन में पूर्णता का एहसास हैं जो किसी रिश्ते का मोहताज नहीं। न ही किसी विशेष दिवस का। यह तो हर रिश्ते में या बिना रिश्ते के भी जिया और निभाया जा सकता हैं। ईश्वर सभी को इस अनुभूति से नवाज़े और जीवन की खूबसूरती को महसूस करने का अवसर प्रदान करे। सच्चा प्रेम भावनाओं में निहित मार्गदर्शन और जीवन का सही दिशा निर्देशन करने का एक सटीक उदाहरण हैं जिसका अन्त नहीं वो इंसान के मरणोपरांत भी जीवित ही रहता हैं अनुभूति में, कभी उसके द्वारा लिये गए निर्णयों के रूप में ,कभी -कभी स्वयं एक रचना बनकर। इसलिए प्रेम को अपने जीवन का आदर्श समझे , आदर्श दूसरों के लिए मिसाल बनते हैं समाज के लिए प्रेरणा और स्वयं के लिए सकारात्मक पहल के साथ जीने का उद्देश्य।प्रेम वैलेंटाइनडे का मोहताज नहीं। 

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2016

प्रेम के कितने रूप ... 
लेखिका --शोभा जैन
आलेख प्रेम दिवस के उपलक्ष में ---हालाँकि प्रेम को किसी दिवस में बांधा नहीं जा सकता वो तो हर दिन, हर पल, हर क्षण, स्वछंद स्वतंत्र और सदैव उन्मुक्त रहता हैं किन्तु ये आलेख वर्तमान परिप्रेक्ष्य से प्रेरित आपके लिए एक बार अवश्य पढ़े.....
इंसान के जीवन का सबसे खूबसूरत एहसास सबसे संवेदनशील क्षण और कोमलता का पर्याय 'प्रेम' ही होता हैं जो अब रूमानी किस्से कहानियों के बजाय अपराध की दुनियां में दस्तक देता दिखाई दे रहा हैं। यह कैसा प्यार है जिसमें छिपी नृशंसता नित-नए कीर्तिमान बनाने को आतुर रहती है शायद इसे अब उत्पीढन तंत्र का से सम्बोधित करना गलत नहीं होगा ।प्रेम के अर्थ और परिभाषाये ही बदल चुकी हैं प्रेम शायद इंसान की जरूरत हैं लेकिन उपभोग के रूप में या फिर एक व्यवसायी हथकंडा बनकर उसकी वास्तविकता को समझना कितना मुश्किल कर दिया हैं सच हैं ये की हमारे सभ्य समाज में आज ये चिंता की लकीरें खींचता चला जा रहा हैं। प्रेम की छद्मता में क्या हैं जानना बेहद कठिन हैं या फिर प्रेम की वर्तमान परिभाषाये कहती हैं सब जान लिया हैं इंसानी भावनाओं-संवेदनाओं के कुंद हो जाने या पतन की पराकाष्ठा के सिवा क्या कहा जा सकता है--- ''इंसान आहत होने के लिए प्रेम पाना चाहता हैं या फिर वो आहत हैं'' इसलिए दोनों के बीच का फर्क ही वास्तविक प्रेम की सही परिभाषा दे सकता हैं ! प्रेम-त्रिकोण, इकतरफा प्रेम, अवैध संबंधों के शक और जाने कौन -कौन से संदेह आदि के कारण पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका के एक-दूसरे की जान लेने जैसे जघन्य अपराधों की यह सूची लगातार लंबी होती जा रही है किसी को अपराधी साबित करने के लिए प्रेम का मामला उसके साथ जोड़ दिया जाय तो शायद तथ्य और भी मजबूत हो जाय अब यही प्रतीत होता हैं एक बाजारी शब्द बनाकर रख दिया हैं 'प्रेम'को ।प्रेमी-प्रेमिका के बीच ईर्ष्या-द्वेष में परिणत हो जाना सहज मानवीय भावात्मक दुर्बलता बेशक हैं , किन्तु इसके हत्या तक पहुंच जाना किसी भी तर्क की समझ से परे हैं हमारे भारतीय हिंदी साहित्य में प्रेम को जितनी खूबसूरत पंक्तियों दोहों में कवियों ने पिरोया हैं उनसे प्रतीत होता हैं वो वास्तव में उनके अनुभव प्रेम को लेकर ऐसे रहे होंगे क्या इसका अर्थ हम ये समझे की उस समय का प्रेम अनुभूति भरा खूबसूरत एहसास देता था और वर्तमान का प्रेम हमें सिर्फ शिक्षा देता हैं....... अब न तो ऐसे दोहे बन पाते हैं न चौपाइयां शायद एक आलेख या सीख की कुछ लाइने जरूर प्रेम ख़त्म नहीं हो रहा हैं परन्तु उसके जो रूप निकलकर सामने आ रहे हैं वो प्रेम की गहराई, प्रेम के प्रति आस्था और प्रेम की ऊंचाइयों के प्रति नीरसता का सन्देश समाज को भेज रहा हैं आज वर्जनाओं में शिथिलता, शिक्षा के प्रसार, सूचना-संचार की व्यापकता और समाज में चौतरफा खुलापन बेशक आया हो, परन्तु यह खुलापन प्रेम में साथी की भावनाओं-जरूरतों-विवशताओं का सम्मान करने के उच्च तकाजों तक नहीं पहुंच पाया है और वर्तमान समय जिसे परिस्थितियों का अतिरेक कहा जाता हैं उस सम्मान तक पहुंच पाना और भी मुश्किल बना देता हैं ।समाज विज्ञानी, कानूनविद उच्च पदासीन और अपराधशास्त्री अपराधों के बढ़ते ग्राफ पर तो खूब चिंता जताते हैं मगर प्रेम-संबंधों के बीच अपराधों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत महसूस नहीं करते उनके लिए ये सिर्फ भावनाओं की आवृत्ति या फिर पुनरावृत्ति महज़ हैं जो कभी भी कही भी समय के वशीभूत होकर आसामान्य स्थिति पैदा कर देती हैं शायद उनके लिए ये विचार विमर्श का मुद्दा नहीं हैं क्योकि इससे किसी भी ंप्रकार का आर्थिक या देशव्यापी संकट नहीं हैं इसीलिए ‘तू मेरी नहीं तो किसी और की भी नहीं’ जैसी मानसिकता से पोषित प्रतिशोधी विषधर फन फैला कर प्रिय को ही डसने पर उतारू हो जाते है। निः संदेह आज भी हमारे भारतीय सभ्यता और संस्कृति में युवक युवती के सहज प्रेम की स्वीकृति पारिवारिक तौर पर नदारत हैं स्वीकार्यता के इस अभाव से पैदा दबाव से भी प्रेमपाश में बंधे युगल कभी खुद मौत को गले लगा लेते हैं तो कभी प्रिय की ही जान ले बैठते हैं अंततः परिणाम 'प्रेम' को मिलता उसके हिस्से का महान दुःख प्रेम की इस तरह की दुर्गति और अपराधोन्मुख होने की प्रवृत्ति के विषय में हम सबको उसी संवेदन शीलता और भावनात्मकता से विचार विमर्श कर इसे सामाजिक संकट के एक बड़े रूप का मुद्दा समझना होगा ठीक वैसे ही जैसे हम आर्थिक स्तर पर वैश्विक संकट को गंभीरता से लेते हैं ।मानवीय संवेदनाओं और भावनाओं का इस कदर लहूलुहान होना जीवन मूल्यों के हिफाजत न रहने का एक उदाहरण बनता जा रहा हैं । इसलिए जब तक इंसान हैं तब तक प्रेम तो रहेगा ही अब उसके रूप का निर्धारण हमारी प्रवृति ही करेगी ये भी तय हैं अतः कबीर की उन पंक्तियों को चरितार्थ होने में सहयोग करे ‘प्रेम गली अति सांकरी जामें दो न समाय’ कहा था अर्थात हम दो नहीं एक निष्ठ होकर रहे एकनिष्ठता ही प्रेम की सटीक पहचान हैं। भारत जेसे अनुभूति परक देश में 'प्रेम' का निर्मम रूप मुझे कतई स्वीकार्य नहीं और शायद आपको भी ।धन्यवाद --शोभा जैन

कहीं ऐसा तो नहीं तथाकथित आधुनिक होने के भरम में हम कुछ ऐसी बातों को अपना रहे हैं या फिर अपनी जीवन शैली में शामिल कर रहे हैं, जो हमारे लिये अनिवार्य तो कदापि नहीं किन्तु स्टेटस सिम्बोल अवश्य बन सकती हैं। पारिवार के साथ बैठकर जरा विचार कीजिये। शोभा जैन

बुधवार, 10 फ़रवरी 2016

आलेख - संतुष्टि 
लेखिका -शोभा जैन 

पुरुषों की तुलना में महिलायें अपने  जीवन से ज्यादा असंतुष्ट रहती हैं। उनकी असंतुष्टि को समझ पाना आज भी एक जिज्ञासा का विषय बना हुआ हैं दरअसल उन महिलाओं को भी अक्सर शिकायती मोड़ पर पाया गया जिन्हे अपने पतियों या पिता द्वारा भरपूर सुविधाये और और संपन्न जीवन दिया गया सम्पन्नता का संतुष्टि से सीधा सम्बन्ध न हो पर विपन्न लोगो के जीवन में असंतुष्टि का कारण अक्सर सम्पन्नता का न होना ही होता हैं सीधे तौर पर कहे तो वो सिर्फ इसलिए असंतुष्ट हैं क्योकि उनके पास अधिक सुख सुविधाएँ नहीं हैं और वे तुलनात्मक  रूप से स्वयं में हींन भावना से ग्रसित होकर अपने जीवन से असंतुष्ट रहती हैं किन्तु  जिनके पास सबकुछ हैं वो क्यों असंतुष्ट हैं भई ... ... दरअसल जो हमारे पास हैं अक्सर हम उसकी कद्र करने के बारे में सोचते विचारते नहीं हैं उसे सिर्फ भोगते या फिर जीते चले जाते हैं इसलिये उसमे सृजन की प्रक्रिया का समावेश नहीं पाता फिर बाहर भटकते हैं तलाशते हैं अपनी कभी न पूरी होने वाली असंतुष्टि की पूर्णता बाहर  की नवीनता क्षणिक सुख देगी पर जीवन का आनंद जो आपके पास हैं उसमें नवीनता लाने में ही मिलेगा ये सत्य हैं
निः संदेह ये समय परिस्थितियों के अतिरेक का समय हैं पर हर बार परिस्थितियों का नाम लेकर हम अपने परिश्रम से हाथ झटक ले ये कहाँ का न्याय हैं
                                इसलिए महिलाओं से मेरा विशेष आग्रह हैं अपनी असंतुष्टि को ख़त्म कर ये खोजे की हम चाहते क्या हैं और उसके लिए हमें क्या करना होगा क्या हम अपना दायित्व और श्रम देने को तत्तपर हैं या सिर्फ पुरुष को बलि का बकरा बनाकर उनसे जीवन भर नाखुश रहने की शिकायते करने के लिए ही बने हैं सोचे गहराई से आपको चाहिए क्या और उसे पाने के लिए आप कितना एफर्ट लगाने को तैयार हैं बैठे -बैठे तो ईश्वर भी आपकी संतुष्टि का समाधान नहीं कर सकता हर समस्या का समाधान सिर्फ और सिर्फ हमारे पास होता हैं बस जरूरत हैं एक बार आत्मचिंतन करने की स्वयंसे बातें करने की शिकायत करना अन्तिम विकल्प नहीं हैं दुनिया का शायद ही ऐसा कोई काम होगा जिसके लिए इंसान शिद्त  से प्रयास करे और वो सफल न हो शुरआत  असफलता से ही होगी ये तय हैं पर आपका धैर्य उसे निः  संदेह असफल करके ही छोड़ेगा इसलिए अपने जीवन से शिकवे शिकायतों  दौर अब खत्म करों जो आपके पास हैं  उसमें  सृजन का रास्ता खोजो स्त्री वैसे भी सृजन का पर्याय हैं बस उसे उसी की परिभाषा में ढलने दो निर्माण करना पुरुष का दायित्व हैं सृजन करना स्त्री का कर्तव्य जब दोनों अपने अपने काम को बखूबी निभाएंगे तो जीवन में सिर्फ संतुष्टि हो होगी इसके सिवा कुछ भी नहीं। 

मंगलवार, 9 फ़रवरी 2016

आलेख - अभिव्यक्ति और स्वतंत्रता
 शोभा जैन

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सबसे ज्यादा दुरूपयोग में आने वाला शब्द है... हमको समझाया जाता है कि भारत एक लोकतंत्र है. हमारा लोकतांत्रिक संविधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है. लेकिन संविधान प्रदत्त यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सही स्थान, सही व्यक्ति, और सही समय का निर्धारण नहीं करती ये हमें ही निर्धारितं करना होता हैं इसका उपयोग इंसान को इंसानो से जोड़ने के लिए होना चाहिए टुकड़े करने के लिए नहीं कृपया अपने शब्दों का चयन बेहद सतर्कता से करे और उन्हें अभियक्त सही तरीके से ....
आलेख.
प्रमोशन या डिमोशन
लेखिका -शोभा जैन
हम सभी के जीवन में अक्सर ऐसे मोड़ आते हैं जब हमें अपने निर्णयों को बदलने या फिर उनमे फेर बदल करने का अवसर मिलता हैं किन्तु हम अक्सर जोखिम के भय से उस अवसर को भुना नहीं पाते अगर ऐसा सच मैं हैं तो फिर जीवन भर जो आपकेँ पास हैं उसे सर्वश्रष्ठ मानकर जिए न की उसमे शिकवे शिकायते खोजकर उर वर्तमान को भी जहन्नुम सा बना दे कभी कभी बदलाव की जगह फेर बदल करके भी जो हम चाहते हैं वैसा जीवन पा सकते हैं किसी वस्तु का स्थानांतरण करना सहज प्रतीत होता हैं किन्तु परिवर्तन अकेला नहीं आता उसके साथ अनायास ही आने वाली चीजो को हम नहीं स्वीकारते हमें सिर्फ वही चाहिए जो हम देखना चाहते हैं बीस यही हमारे अवसाद और तनाव का कारण बन जाता हैं हमें ये बात मानकर चलना चाहिए की सृष्टि में 'नियति' नाम की एक शक्ति काम करती हैं हम सब उसी के इर्द गिर्द अपनी रचनाये रचते हैं बदलावों के साथ स्वयं का व्यवस्थापन ही जीवन हैं संबंधों के अर्थ में ये बात विशेष कारगर हैं हर रिश्ते में समय के साथ थोड़े थोड़े बदलाव होने चाहिए updation उदाहरण -- जब एक लड़की विवाह होकर नए परिवार में प्रवेश करती हैं तब वो पत्नीऔर नवोदित बहु के किरदार में आती हैं उस समय का जीवन कुछ अलग होता हैं जब वो मातृत्व की और अग्रसर होती हैं तब उसका जीवन कुछ अलग होता हैं जब वो अपने बच्चो का विवाह करती हैं तब उसका अनुभव कुछ अलग होता हैं किन्तु अगर वो तीनो की स्थितियों में प्रथम वाले जीवन को जीने की अपेक्षा रखे [नवोदित बहु ] तो शायद वो जीवन भर अपने विवाह से नाखुश ही रहेगी यही बाते पुरुषों पर भी समानता से लागु होती हैं समय के बदलाव के साथ उनकी जिम्मेदारिया सोच और विचारों में भी परिवर्तन होना आवशयक हैं यही परिवर्तन हमें हमारे वर्तमान का आनंद लेने के लिए प्रेरित करता हैं..हमें प्रमोशन के मोड़ पर काम करना चाहिये न की डिमोशन पर ये बात सिर्फ नौकरी मैं ही नहीं जीवन में भी लागु होती हैं ....प्रमोशन का अर्थ परिवर्तित जीवन में सकारत्मक प्रवेश ....

बुधवार, 3 फ़रवरी 2016

मेरी दृष्टि-- में शब्दों का हेर फेर साहित्य नहीं हैं ..शोभा जैन 

मंगलवार, 2 फ़रवरी 2016

क्या ये सत्य हैं -----संत्रास, व्यर्थता बोध, अवसाद, खालीपन और इस तरह की तमाम अनुभूतियों के बीच आज हम जी रहे हैं. ..... इसे अपने भीतर अक्सर महसूस करते हैं पर स्वीकारते नहीं। शोभा जैन 
-जिंदगी गुजारने के लिए आधारभूत /मूलभूत सुविधाओं का होना आवश्यक हैं परन्तु जीवन जीने के लिए........ ? एक उम्मीद का होना, संवेदनशीलता का होना, भावनाओं का होना,सामाजिक जीवन में पारदर्शिता, तमाम दुःखों, शिकायतों, गलतियों और विरोधाभासों के बावजूद किसी इंसान के साथ का होना। क्योकि अगर मनुष्य योनि ली हैं तो ये सब तो जीवन से जुड़ेगा ही... पर भरपूर सुविधाओं या विलासिता से भरा जीवन 'जीने' के लिए भी उपयुक्त हो ये आवश्यक नहीं क्योकि संतुष्टि तो प्रतिकूलताओं में जीत हासिल करके ही मिलती हैं सुविधाये सिर्फ़ समय व्यतीत करने का साधन बन सकती हैं जीवन जीने का नहीं ।। शोभा जैन

 समय, समाज और भावनाओं की दखलअंदाजी के बगैर शोषण, विद्रोह और प्रेम की स्थितियां नहीं बनती।  शोभा जैन

सोमवार, 1 फ़रवरी 2016

                              लघु कहानी - सेल्समेन




 
हर रोज की तरह वो आज भी घर से निकला मार्च का महिना चिलचिलाती धुप में सुबह ९ बजे सड़क और आसमान की तपन में जेसे कोई फर्क नहीं था उपर से लेकर नीचे तक आग बरस रही थी अपनी मोटर साईकल पर  एक कप चाय पीकर अपना सेल्समेन वाला बैग हाथ में लिया और चल दिया अपनी इंशुरेंस पालिसी के सुविधाजनक और फायदेमंद प्लान समझाने के लिये हर रोज की तरह आज भी उसे अपने बॉस का प्रेशर था कम से कम दो पालिसी उसे लानी ही थी महीने के अंतिम दिन और मार्च की क्लोजिंग चल रही थी कुछ लोगो के नाम और पाते की लिस्ट लिये वो निकल पड़ा था डोर टू डोर मार्केटिंग कर जीवन बीमा की पालिसी करने ,लोगो के जीवन को सुरक्षित करने के लिये जबकि वो खुद हर रोज एक असुरक्षा से भरा जीवन जी रहा था...

    शहर की हर तरह की चोडी सकरी गलियों से गुजरता हुआ पते ढूढता हुआ आज वो एक ऐसे शख्स के यहाँ पंहुचा जिसका घर एक बहुत ही पाश मतलब महंगी कालोनी में था घर की बनावट और सुन्दरता उसे अंदर ही अंदर दे रही थी इस बात के लिये की शायद वो यहाँ से खाली हाथ न जायगा  सीडियां चदकर वो  बैल बजाता हैं और इंतजार करने लगता हैं किसी के पट खोलने का..... वो घर कालोनी के बाकि घरों में सबसे सुंदर था उसे पता मिलते ही जेसे ही उसकी नजर उसके घर की तरफ पडती हैं तो उसके अंदर जो आत्मविश्वास जगता हैं उसे आज  अपने टारगेट पुरे होते नजर आने लगे फिर धीरे धीरे सोचता  कम से कम एक छोटी सी पालिसी तो मिल ही जाएगी ....इतना बड़ा आदमी लग रहा हैं इतना बड़ा मकान बनाया हैं तो मुझे जरूरतमंद समझकर ही एक पालिसी ले लेगा शायद इसी सोच के साथ वो फिर से बैल बजाता हैं अबकी बार अंदर से एक कुत्ते के भोंकने की आवाज आती हैं उसे फिर महसूस होता हैं एक कुत्ता भी पाल रखा हैं एक इन्सान की मदद तो कर ही देगा हैं ...उस वक़्त उस घर के बाहर खड़ा होना ही उसे उसके अंदर के विशवास को  पुख्ता कर रहा था इस उम्मीद के साथ की आज वो यहाँ से कम से कम एक पोलिसी तो लेकर ही जायेगा शायद छोटी नहीं बड़े अमाउंट की ही मिल जाय इतने बड़े आदमी का जीवन बीमा भला कोन नही करना चाहेगा
         इतनी देर में एक काम वाली बाई घर का दरवाजा खोलती हैं जिसने एक पुरानी सी साड़ी मराठी पल्ले के साथ पहन रखी थी अपनी कमर में खुसी हुई साड़ी को निकलती हुई थोड़ी ड्योडी चडातेहुए उसने पुचा क्या काम हैं किससे मिलना हैं आपने अपॉइंटमेंट  लिया हैं क्या पहले.... उस सेल्स मैन ने जवाब दिया- मैं जिस काम के लीये आया हूँ उसमे अपॉइंटमेंट लेने की आवश्यकता नहीं पडती क्या में घर के मुख्य सदस्य से मिल सकता हूँ बिना रुके उसने ये सवाल पुचा.... काम वाली बाई को लगा ये कोई परिचित ही लगता हैं तभी ऐसा बोल रहा हैं पर पहले कभी इसको इस घर में नहीं देखा उसने उसे उपर से नीचे तक आश्चर्य भरी नजरो से देखा और कहा रुको में बुलाती हूँ किसी को ...काम वाली बाई अंदर गयी इतनी देर में उस सेल्स मैन ने घर का पूरा मुआयना कर लिया उसे घर के अंदर की खूबसूरती भा गयी उसे लगा इस घर में आना ही मेरे लिये सोभाग्य की बात हैं उस घर की दीवारों पर लगे फोटो फ्रेम जिसमे पूर्व  प्रधानमंत्री इन्द्रागांधी के साथ किसी बुजुर्ग की तस्वीर लगी थी उसे लगा ये तो किसी मंत्री का घर हैं.... बड़े- बड़े झूमर और सुंदर कालीन उसे अंदर ही अंदर यहाँ तक पहुचने के लिये अपने आप को शगौरवान्वित करवा रहे थे ..... उसे गर्व महसूस हो रहा था की उसके पास इतने बड़े- बड़े  लोगो की नाम और पते हैं और वो उनके घर जा सकता हैं घर के  अंदर पहुचने के बाद उसे पालिसी बेचने से ज्यादा महत्वपूर्ण उस घर के सदस्य से मुलाकात होना उसके लिये ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया था उसे लगा इतने बड़े आदमी से मैं फेस टू फेस मिल लू यही काफी हैं मेरे लिये मैं कुछ अच्छे रिफरेन्स ही ले लूँगा बड़ा आदमी हैं तो जान पहचान भी बड़े बड़े लोगो से ही होगी
    उसने मन ही मन अपनी बातचीत की रुपरेखा बना ली थी इतनी देर में घर के अंदर से एक 13 साल का बच्चा बाहर आता हैं फुटबाल खेलते हुए उसे आश्चर्य से देखकर पूछता हैं आपको किस्से मिलना है सेल्समैन उसकी और बड़े प्यार से देखकर कहता हैं आपसे ही मिलने आया हूँ बच्चा स्तब्ध होकर बोला मुझसे...... क्यों क्या काम हैं में तो आपको जानता भी नही मम्मा को बुलाऊँ क्या सेल्फ मैन ने जवाब दिया नहीं बाई अंदर गयी हैं बुलाने.. आप आओ मुझसे बातें करो आपना नाम बताओ बच्चा बोला वेदांश चौहान  सेल्फ मैन बोला बहुत ही आचा नाम हैं तुम्हारा किसने रखा... बच्चे नें जवाब दिया दादाजी और पापा ने ....बच्चे ने पूछा आप क्या करते हो सेल्फ मैन ने जवाब दिया मैं दूसरों के जीवन की सुरक्षा करता हूँ बच्चा बोला मतलब आप आर्मी से हैं सेल्स मैन बोला नहीं उससे भी बड़ा काम आर्मी वालों को भी मैं सुरक्षा दे सकता हूँ बच्चा बोला अच्छा आप ऐसा क्या करते हैं मेरे पापा आर्मी में हैं आप उनको भी सुरक्षित कर देंगे वो अभी बहुत दिनों बाद यहाँ आये हुए हैं छुट्टियाँ लेकर आप उनसे जरुर मिलना सेल्स मन सोचता हैं ये किसी आर्मी वाले का घर हैं बहुत सख्त मिजाज व्यक्ति होगा और अपने जीवन की परवाह किये बिना जीवन जीने वाले लोग यहाँ रहते हैं जीवन बीमा पालिसी क्या लेंगे ये तो जान की परवाह ही नहीं करते पालिसी तो गयी काम से.....थोडा निराश हो जाता हैं  पर मिलूँगा जरुर.... कम से कम आज के दिन एक अच्छे इन्सान से मुलाकात होगी यही जुड़ेगा मेरी लिस्ट में यही मेरी उपलब्धि होगी वेरना रोज कोन से अच्छे लोग मिलते ही हैं....
     इतनी देर में बाई आ जाती हैं वो पूछती हैं दीदी कह रही हैं आज तो पापा ने किसी को भी टाइम नहीं दिया था फिर आप कहाँ से आये हो अपना कार्ड दे दो और टाइम लेकर आना ऐसा बोला हैं दीदी ने ...
   सेल्स में थोडा निराश हो गया उसे लगा मेरा यहाँ तक आना व्यर्थ न चला जाय अगर मेने इनको अपना कार्ड दे दिया तो मुझे ये मार्केटिंग बॉय समझ कर टरका देंगे वेसे भी बाहर बोर्ड लगा था कृपया सेल्फ मैन बैल न बजावे  मुझे एक सेल्स मन की हेसियत से नहीं एक अच्छे इन्सान से मिलने आया हूँ यही सोचकर आज मिलकर ही जाना हैं वो जवाब देता हैं आर्मी ऑफिसर यहाँ आये हुए हैं मैं उनसे ही मिलने आया था वो कुछ ही दिनों में चले जायेगे फिर दोबारा पता नहीं उनसे कब मुलाकात होगी उनसे मिलना मेरा सोभाग्य होगा  प्लीज़ आप मुझे एक बार उनसे मिलवा दीजिये मैं बहुत दूर से आया हूँ मेरे पास अभी अपना कार्ड नहीं हैं
  बाई थोडा आश्चर्य से उसे देखकर रूकती हैं फिर  जवाब देती हैं रुको..... मैं अंदर से पुच कर आती हूँ इतनी देर में सेल्स मन बच्चे से फिर बातें करने लगता हैं पूछता हैं आपके घर में सबसे बड़ा कोन हैं बच्च्क जवाब देता हैं मेरे दादाजी निर्भय सिंह चौहान सेल्स मन ने पूछा वो क्या करते हैं बच्चे ने जवाब दिया कुछ नहीं वो बस सब काम ठीक  से करते हैं या नहीं यही ध्यान रखते हैं सेल्फ मन ने पूछा वो अभी हैं घर पर बच्चा बोला नहीं आज नहीं हैं बाहर गए हैं कल आयेगे सेल्स मन ने पुच ओर कोन कोन हैं आपके परिवार में बच्चा बोला दादाजी के बाद मेरे पापा विभय सिंह चोहान जो आर्मी मैं हैं वो अभी घर पर ही हैं उन्हें बुलाऊ क्या सेल्स मन ने कहा नहीं रहने दो बाई गयी हैं बुलाने बच्चा बोला आपको किस्से मिलना था वेसे .....सेल्स मन ने बड़े प्रेम भेरे मन से जवाब दिया मुझे सभी से मिलना हैं एक आर्मी ऑफिसर की फॅमिली केसे जीवन जीती है उनके क्या ख्याल होते हैं वो केसे अपने और अपनों के जीवन की परवाह किये बिना जीवन जीने के लिये प्रेरित होते हैं यही देखना और समझना और जानना था मुझे और कुछ नहीं .......बच्चा सोच में पढ़ जाता हैं कुछ समझने की कोशिश करता हैं फिर कहता हैं अच्छा आप न्यूज़ पेपर में काम करते हो क्या सेल्स मैन बोला नहीं तो आपको ऐसा क्यों लगा बच्चा बोला आपने ही तो अभी कहा की आप जानना चाहते हो की आर्मी वाले केसे जीवन जीते हैं कुछ दिन पहले भी कोई दादाजी से मिलने आया था और उनका इंटरव्यू लेकर गया अगले दिन उसे पेपर में छाप दिया सेल्स मैन को लगा हैं तो कोई दमदार पार्टी मिडिया वालों का भी आना जाना हैं यहाँ.... चलो जो भी हैं मिलकर ही जाता हूँ इस अवसर को मैं खोने नहीं दूंगा ....
   कुछ देर बाद बाई आती हैं और कहती आप बैठो भैयाजी आ रहे हैं सेल्स मैन को ख़ुशी होती हैं की कम से कम उसे बैठने को कहा गया  मतलब कुछ समय तो बातचीत का उसे मिल ही जायेगा बाई अंदर से पानी का गिलास ट्रे में रखकर लाती हैं उसे वहां पानी पीना भी बहुत गर्व महसूस करवा रहा था उसे मन ही मन लग रहा था पालिसी हो न हो आज का दिन मेरा सफल ही कहलायेगा मुझे एक आर्मी आफिसर से मिलने का मौका मिलेगा अंदर ही अंदर उसके मन में प्रसन्नता के फुल खिल रहे थे 15 मिनट इंतजार करने के बाद एक लम्बा चोर्डे कद वाला हट्टा कट्टा सावले रंग का 3९ वर्ष का नोजवान अंदर से निकल कर आता हैं जिसे देखकर सेल्स मन उठकर उससे हाथ मिलने के लिये हाथ आगे बढ़ता हैं गुड मोर्निग सरकहकर संबोधन देते हुए कहता हैं इट्स माय प्लेजर तो मीट विथ यू ...नोजवान उस बच्चे का पिता और आर्मी आफिसर होता हैं वो मुस्कुराकर कहता हैं थैंक यू सो मच यंग मैन मैं आपसे इंतजार करवाने के लिये माफ़ी चाहता हूँ दरअसल बिना समय लिये कोई मिलने कबी आता नहीं हैं इस वजह से आपको तकलीफ हुई और यहाँ इंतजार करना पड़ा .... सेल्स मन उसकी उदारता और इतना सहज व्यवहार देखकर सोच में पढ़ जाता हैं इतना बड़ा आदमी होकर भी मुझसे माफ़ी मांग रहा हैं मैं इससे पालिसी की बात तो करूँगा ही नहीं ये उनका अपमान होगा और मेरी नासमझी .....
   आर्मी ऑफिसर पूछता हैं कहिये मैं आपके लिये क्या कर सकता हूँ सेल्स मैन इस तरह के शब्द सुनकर भोचक्का रह जाता हैं उसे इतना हार्दिक और  उदारता से परिपूर्ण  व्यवहार अपेक्षित नहीं था इसलिए वो थोडा हिचकिचा जाता हैं दूसरा उसे अब अपने विषय से हट कर भी बात करनी थी वो यहाँ पालिसी के बारे में कोई अत नहीं करना चाहता था उसने जवाब दिया सर मैनेआर्मी ऑफिसर्स के बारे में काफी सुना और पढ़ा हैं पर अब तक मुझे  रूबरू किसी से मुलाकात करने का सोभाग्य प्राप्त नहीं हुआ आपका पता मुझे कहीं से मिला इसलिए आपका कीमती वक़्त लेने आज आ गया क्षमा चाहता हूँ अगर मेरी वजह से आपको कोई भी तकलीफ हुई हो क्योकि मैं बिना समय लिये यहाँ आ गया जो आप जेसे व्यक्ति के लिये गलत हैं आर्मी ऑफिसर ने जवाब दिया कोई बात नहीं हमको भी अपने जीवन की वास्तविकता कभी कभी दिल खोलकर कहने का मोका मिलता हैं इसे बताने में कोई पाबन्दी या कोई सख्ती नहीं बरतनी चाहिए सच तो यही हैं हम भी अपने घर परिवार से बहुत दूर रहते हैं मैं आज पूरेडेढ़ साल के बाद अपने घर आ पाया हूँ सिर्फ फ़ोन और ईमेल के जरिये ही परिवार के होने का आभास होता हैं कल किसी ने देखा नहीं हैं कब कहाँ कोन सी ड्यूटी देनी पढ़ जाये कोन सी ड्यूटी जीवन की अंतिम बन जाय इसलिए मेरी कोशिश यही रहती हैं जब भी कोई मुझसे समय लेता हैं मैं अपना उसे देने मैं कभी पीछे नहीं हटता बल्कि अंदर से एक ख़ुशी होती हैं की मेरे अलावा मेरे  परिवार के बारे में सोचने वाले और जानने वाले भी हैं ये सिर्फ मेरा परिवार ही जानता हैं की उन्होंने खुद को यहाँ रहकर ही जीवन ही हर जंग के लिये तैयार कर लिया हैं में तो वहां जाकर जंग लड़ता हूँ ये सब मेरा इन्तजार करके अपने आप से हर दिन जंग लड़ते हैं मेरे पिताजी और दादाजी भी आर्मी ऑफिसर थे ये मेरे दादाजी की ही तस्वीर लगी हैं मेरे बेटे को जन्म से ही कैंसर हैं उसका जीवन कितने दिनों का हैं मैं नहीं जानता पर वो हर दिन अपने जीवन की जंग लड़ रहा हैं मेरी पत्नी वास्तव में सबसे बड़ी आर्मी ऑफिसर हैं जो इन सबको और मुझे संभालती हैं मैं तो सिर्फ अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाने की कोशिश करता हूँ
सेल्स मन की आंखे द्रवित हो जाती हैं वो मन ही मन सोचता हैं  मैं अपने जीवन में इतने अच्छे इन्सान और इतने समर्पित परिवार से भी कभी मिलूँगा ये मैने कभी सोचा नहीं था सेल्स मन अपनी आंखे पोछते हुए कहता हैं सर,आज का दिन मेरे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण दिन हैं आज अगर मैं यहाँ नहीं आता तो शायद अपने जीवन की एक बहुत बड़ी अनुभूति खो देता आर्मी ऑफिसर मुस्कुराकर कहता हैं यही जीवन हैं सबकी अपनी अपनी ज़िम्मेदारियाँ हैं और उनको निभाने के तरीके हैं कमाता खातादुनियाँ का हर इन्सान हैं बस मेरी नोकरी कमाने के साथ साथ देश को सुरक्षा भी देती हैं यही फर्क हैं आपमें और मुझमे अरे आपने बताया नहीं आप क्या करते हैं अचानक आर्मी ऑफिसर पूछता हैं सेल्स मैन कुछ कहता इससे पहले आर्मी ऑफिसर बाई को आवाज लगाकर चाय नाश्ता लेन के लिये कहता हैं इतना कहते ही ऑफिसर का फ़ोन बजने लगता हैं वो सेल्समन से कहता हैं स्कुज़मी एक कॉल हैं सेल्समेन थोडा हल्का होकर कहता हैं या sure .....
     जेसे ही आर्मी ऑफिसर फ़ोन पर बातें करने लगता हैं सेल्फ मन मन ही मन सोचने लगता हैं की मैं इन्हें अपना असली काम बता उ या नहीं अगर मैनेइन्हे बता दिया की मैं पोलिसी का काम करता हूँ तो ये जिस इमानदारी और भावनात्मकता के साथ मुझे बात कर रहे हैं नहीं करेंगे और मुझे समझ जायेंगे की असल में मैं पोलिसी के लिये ही यहाँ आया हूँ क्या करूँ क्या काम बताऊँ अगर ऐसा कोई काम बता दिया जिसके बारे में मुझसे इन्होने कुछ पुच लिया तो क्या जवाब दूंगा मैं इतने अच्छे इन्सान को खोना नहीं चाहता कुछ तो सोचना ही पड़ेगा
  इतने में ऑफिसर की फ़ोन पर बात ख़त्म हो जाती हैं और वो sorry कहते हुए फिर अपनी बात कहता हैं आपने बताया नहीं आप की जॉब में हैं सेल्स मैन ने थोडा हिचकिचाते हुए कहा मेरी किराने की दुकान हैं आर्मी ऑफिसर ने कहा very गुड मतलब आप जॉब में नहीं हैं आपका बिज़नस हैं वो भी बारह महीने चलने वाला very nice सेल्स मेन ने ये प्रतिक्रिया भी अपेक्षित नहीं की थी की उसकी किराने की दुकान को इतना महत्वपूर्ण माना जायेगा
   इतने मेंचाय नाश्ता आ जाता हैं ऑफिसर कहते हैं लीजिये आप सेल्स मन थैंक यू कहकर चाय का कप अपने हाथ में लेता हैं अआर्मी ऑफिसर उसे बिस्किट भी लेने के लिये कहते हैं अरे लीजिये ये खास बिस्किट हैं सरहद से लाया हूँ खासतौर पर अपने परिवार के लिये और आसपास वालो के लिये आप भी टेस्ट कीजिये सेल्स मन कहता हैं सर अब तो लेना ही होगा सेल्स मन सोचता हैं मैं कहाँ बीमा पालिसी के बारे में सोच रहा था आज में इतने बड़े ऑफिसर के घर पर उसके साथ चाय नाश्ता ले रहा हूँ उनके  जीवन और परिवार  के बारे ,में जान रहा हूँ यही क्या कम हैं सेल्स मन के लिये  कभी कभी एक अच्छे से  इन्सान मिलना एक बड़ी पोलिसी मिलने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता हैं टारगेट तो हर महीने मिलेंगे पर ऐसे लोग हमेशा नहीं मिलते


शोभा जैन