लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

रविवार, 16 अगस्त 2015

   फेस बुक पर लोकव्यवहार...........


ये विषय फेस बुक पर हमारे व्यवहार और वास्तविक जीवन में हम इन विषयों पर कैसी प्रतिक्रिया करते हैं दोनों के बीच के अंतर को समझते हुए लिखा गया हैं.। ठीक वेसे ही जेसे फेस बुक पर कोई स्टेटस अपडेट करना और उसे फॉलो करना दोनों में बहुत फ़र्क होता हैं क्या जो हम लिखते हैं उसे मानते भी हैं अपनाते भी हैं या सिर्फ़ मित्रो के समक्ष अपनी बुद्धिमानी का प्रदर्शन कर likes बटोरने का प्रयास करते कभी -कभी ये वास्तविक नहीं प्रवचन जेसा प्रतीत होने लगता हैं साथ ही ये भी जानने और समझने योग्य बात हैं की चर्चा, परिचर्चा जिस अभिव्यक्ति के साथ हम फेस बुक पर करते हैं जिन आदरणीय शब्दों का प्रयोग ओपचारिक रूप से हम दूसरो के साथ हम फेसबुक पर करते हैं कुछ विशेष मुद्दो या खास विषय, पर क्या वास्तविक जीवन में भी उतने धैर्य, बुद्धिमानी और व्यवहारिकता से बातचीत कर पाते हैं ? सोशल नेटवर्किंग साइड वर्तमान समय में विचार विमर्श की प्रक्रिया को नवीनता देने के साथ -साथ हर व्यक्ति की अपनी उपयोगिता और महत्व को भी प्रदर्शित कर रही हैं.। जैसे कुछ लोग हर मिनट की जानकारी फेसबुक पर अपडेट करते हैं कुछ लोग दिनों की और कुछ महीनों की। कुछ लोगों के लिए ये सिर्फ मनोरंजन का साधन हैं,कुछ लोगो के लिए ज्यादा से ज्यादा नए -नए लोगो को जानने और उनसे मित्रता करने का उत्साह और खुशी ...                        मतलब 2500 से 3000 तक फ्रेंड लिस्ट होना उनके लिए बेहद गर्व की बात हैं। कुछ के लिए ये सामाजिक रूप से चिर -परिचित या मित्रों के साथ न सिर्फ सूचनाओं का आदान- प्रदान बल्कि अपने सुखद और दुखद अनुभवों को बाँटने का भी एक माध्यम हैं। और कुछ के लिए लोक विमर्श के क्षेत्र में अहम भूमिका निभाने का माध्यम भी जिससे किसी भी स्तर के सामाजिक बदलाव की अपेक्षा भी की जा सकती हैं क्योकि कई बार सामाजिक परेशानियों पर अलग- अलग राय और सलाह और कभी-कभी सहयोग भी मिल जाते हैं। वे लोग जिन्हे हम सिर्फ अपने काम तक ही जानते हैं उनके जीवन के दूसरे पहलू और नए व्यक्तित्व की झलक भी देखने को मिल जाती हैं उनको करीब से जानने का अवसर भी मिलता हैं.। कुछ लोग शायद इसलिए भी की वो जीवन में शायद स्वयं को अकेला महसूस करते हो अपनी खुशियाँ दुःख या उपलब्धियाँ बांटने के लिये उन्हें कुछ अच्छे दोस्तों की जरुरत होती हैं इसलिए भी वो फेस बुक का उपयोग करते हैं इससे ज्यादा और बड़ा कारण उनके लिए नहीं होता ऎसे लोगो की फ्रेंड लिस्ट बेहद छोटी और सलेक्टिव भी होती हैं पर वो खुश रहते हैं उससे । परन्तु फेस बुक पर हम जिन विषयों पर चर्चा परिचर्चा या विमर्श करते हैं और कई बार वाद विवाद भी कर लेते हैं उसके लिए क्या ज़मीन की लड़ाई लड़ने के लिए तैयार रहते हैं या ये सिर्फ फेस बुक स्टेटस अपडेट करने मात्र के लिए हैं ? क्या वास्तविक जीवन में भी हम इन विषयों को लाइक कर गंभीरता से लेते हैं? क्योकि मुद्दे हमारे आसपास के ही होते हैं.।ओर कई बार हमारे अपने जीवन से भी जुड़े होते हैं ओर  हम हमारे जीवन में उन्ही मुद्दों से या परेशानियों से जूझ रहे होते हैं पर फेस बुक पर बड़ी बुद्धिमानी से उन पर न सिर्फ़  विचारविमर्श करते हैं बल्कि एक निर्णायक मोड़ पर ले आते हैं जबकि हम वास्तविक जीवन में बड़े -बड़े ओर अहम् फेसले अधूरे ही अधर में छोड़ देते हैं क्योकि वो एक जोखिम भरा साहसिक कार्य हैं मेरे पास ऐसे कुछ उदाहरण भी हैं जिन पर फेस बुक ओर या अन्य सोशल वेबसाइड पर लोग घंटो बिता देते हैं सामाजिक मुद्दों को लेकर जेसे तलाकशुदा ओरत ओर उसके जीवन से सम्बन्धित परेशानिया ओर समाधान, बाल मजदूरी, भ्रूण हत्या, आत्महत्या, नशाखोरी, गुन्डागर्दी, भ्रष्टाचार, मानव तस्कर,बेरोजगारी, अशिक्षा, गरीबी, बलात्कार ये सारे मुद्दे अब आम विषय ओर चर्चित हो गए हैं कोई भी ओसतन शिक्षित व्यक्ति भी अब इन विषयोंपर घंटो भाषण दे सकता हैं बेहद उच्च शब्दों का प्रयोग कर भले ही उसके अपने घर में उपरोक्त परेशानियों में से कोई एक से भी वो पीड़ित होकर रोज घर में कलह करता होगा, पर विमर्श नहीं होता जेसा की वो फेस बुक मित्रों के साथ करता हैं ...
                             हर दूसरा आदमी उपरोक्त में से किसी न किसी परेशानी से जूझ रहा हैं पर अपनों के बीच जहाँ से ये समस्याए उपजती ओर जिनके बीच रहकर वो जीवन जीता हैं अगर उनके साथ इतना ही हार्दिक, आत्मीय. सहयोग व्यावहारिक  ओर आदरणीयता के साथ बातचीत की जाय तो कम से कम इन समस्याओ के चलते भी परिवारों में मानसिक शांति तो बरक़रार रहेगी ये महसूस भी होगा की सब एक दूसरे की परेशानियों को न सिर्फ़ समझते हैं बल्कि महसूस भी करते हैं एक दूसरे के साथ हैं.... किसी बड़ी समस्या का समाधान हो न हो पर उपरोक्त लिखी सामाजिक समस्याओ में ‘आत्महत्या’ की समस्या जरुर कम की जा सकती हैं क्योकि आदमी जब स्वयं को अकेला जूझता पाता हैं मानसिक रूप से वो प्रताड़ित होकर या किसी से सहयोग प्राप्ति की नाउम्मीदी ही उसे ऐसे कदम उठाने पर विवश कर देती हैं... 
                       मुझे लगता हैं इन विषयों पर हम फेस बुक मित्रों से अगर घंटो बात कर सकते हैं हर आदमी के कमेन्ट्स को पढकर अपनी उदार प्रातक्रिया दे सकते हैं तो अपने परिवार या आसपास के लोगो के साथ वास्तविक जीवन में भी ऐसे ही आत्मीय शब्दों का प्रयोग कर उनके दिल में जगह बनाये उनके साथ बेरुखी ओर उबाऊपन से न पेश आये उन्हें ये न अहसास करवाए के वे घर के हैं या आसपास ही रहते हैं  इसलिए ज्यादा गहरेशब्दों की आवश्यकता नहीं.. .कभी एक प्रयोग करके देखे घर में रहकर या घर के बाहर रहकर घर के किसी सदस्य बच्चे या माता- पिता अगर संभव हो सके तो पत्नी के साथ भी या पत्नी हैं तो पति के साथ आपस में घंटो फेस बुक पर बाते करे उनको सुने, जरुरत होने पर सलाह भी दे ..ठीक वेसे ही विचार -विमर्श या परिचर्चा करे जेसे आप फेस बुक मित्रों के साथ करते हैं बच्चो के साथ ये प्रयोग काफी कारगर साबित हो सकता हैं कितना आनंद महसूस होगा शायद एक दूसरे के साथ ... न सिर्फ़ एक दूसरे के प्रति आदर बढेगा बल्कि आपसी समझ ओर प्रेम भी प्रगाड़ होगा ....
                          ये सत्य हैं वास्तविक जीवन में परेशानियों पर बात करते वक़्त हमारे शब्द ओर बातचीत करने का तरीका ओर हमारा व्यवहार उस विषय को महत्वपूर्ण ओर गंभीरता से लेने पर विवश कर सकता हैं हमारी प्रतिक्रिया ही हमें इस योग्य बनाती हैं की लोग हमसे सलाह से अपनी परेशानिया हमसे बाटे... हमारा balanced ओर supporting nature, गहरी सोच ही हमें किसी परिचर्चा का हिस्सा बना सकती हैं ओर
कभी -कभी किसी समस्या के समाधान का एक महत्वपूर्ण अंग भी... परन्तु ये प्रतिभा कौशल फेस बुक पर लोकव्यवहार करते समय ओर वास्तविक जीवन में व्यवहार दोनों ही पर लागू होना चाहिए तभी आपकी प्रोफाइल वास्तविक हैं अन्यथा शब्दों की जादूगरी से लोगो को जोड़ना या उनसे जुड़ना हमारे नेता ओर मंत्रीगण कर आज उच्च पदों पर आसीन हो कर ही रहे हैं  
              इस बारे में विचार करना भी उतना ही जरुरी हैं जिंतना किसी को फ्रेंड लिस्ट में ऐड करना किसी के स्टेटस को लाइक करना ,किसी को unfriend करना या किसी के स्टेटस पर प्रतिक्रिया का व्यक्त करना। क्योकि हम अपने जीवन का अनमोल समय कहाँ और क्यों दे रहे हैं ये बहुत महत्व रखता हैं समय बेशकीमती हैं सिर्फ़ टाइम पास के लिये तो बिलकुल भी नहीं हैं फेसबुक एक बहुत ही सशक्त माध्यम हैं समय का सदुपयोग कर ऎसे लोगों के बीच अपने विचारों का आदान प्रदान करने का जिनसे हम अक्सर मिल नहीं पाते या अगर मिल भी लेते हैं तो अपने दूसरे महत्वपूर्ण उद्देश्यों की पूर्ति के लिए लेकिन जिनसे सिखने के लिए बहुत कुछ होता हैं या जो हमारे पास हैं उसे बांटने के साथ- साथ उसमें पॉलिशिंग या सुधार करने को बहुत कुछ होता हैं। ये लोग कोई भी हो सकते हैं दोस्त शिक्षक रिलेटिव्स या कोई बड़ा अधिकारी वर्ग या कभी -कभी फ्रेंड्स ऑफ़ फ्रेंड भी सबसे महत्पूर्ण ये हमारे घर के सदस्य भी हो सकतें हैं.. इसलिए अपनाये वास्तविकता से जुड़े शब्दों को जिन्हें हम अपनी नित्य प्रति की जीवन शेली से भी जोड़ सके... अगर आप श्रेष्ठ हैं तो बाहर लाये उसे यथार्थ के धरातल पर , उतना ही आत्मीय,व्यावहारिक होकर, सिर्फ़ लोगो को प्रभावित करने के लिए तो कतई न करे, जबकि आप अपने वास्तविक जीवन में उन परेशानियों ओर मुद्दों से स्वयं जूझ रहे हो... जमीन की लड़ाई लड़े सिर्फ़ शब्दों की नहीं । 

 - शोभा चौहान 26 /मई /2015




मोबाईल कवरेज क्षेत्र में नहीं हैं .......
    ट्रिन ट्रिन ... ट्रिन ट्रिन ....हेलो हेलो अरे आवाज नहीं आ रही
रुको फिर से ट्राय करता हूँ ......शायद कवरेज की प्रोब्लम हैं ...........
ट्रिन ट्रिन ,ट्रिन ट्रिन.. हेलो ......... हाँ अब आवाज आ रही हैं,....
 हेलो... हाँ मेरी आवाज अभी साफ सुनाई दे रही हैं की नहीं .........
हाँ अब थोड़ी आ तो रही हैं पर कट कट के  
रुको थोडा और ऊपर जाकर बात करता हूँ.........
अब तो पहले जितनी भी नहीं आ रही ...............
अब तो बिलकुल भी नहीं आ रही ..............................
एक बार फिर से देखता हूँ लगा कर ...........
हाँ अब बोलो अब तो ठीक हैं [थोड़ी देर बात करते ही फ़ोन कट जाता हैं ]
अरे ये क्या हुआ मैं इतने उपर चला गया फिर भी कवरेज नहीं मिल रहा
कितना मंहगा मोबाईल लिया हैं पर काम पढने पर कभी लगता ही नहीं .................
  यही हैं आउट ऑफ़ कवरेज की तरह हमारा जीवन और जीवन शैली रिश्ते और जीवन दोनों ही आउट ऑफ़ कवरेज होता जा रहा हैं .....................
               
प्रस्तुत आलेख में इस बात को समझने का प्रयास किया हैं की अक्सर कवरेज नहीं मिल पाने की स्थिति में हमारी अपनों या अपने वालो से बहुत आवश्यक बातें भी या पूरी नहीं हो पाती,या फिर सही तरीके से नहीं हो पाती अक्सर फोन भी नहीं लग पाते कोई अति आवशयक काम हो तब... एसी स्थिति में किसी बेहद करीबी को सन्देश देना या उसका हाल जानना उससे बात करना बेहद जरुरी होने की परिस्थिति में बात न हो पाना बार बार फोने कट जाना हमें न सिर्फ़ फ्रस्टेट करता हैं बल्कि कभी- कभी सही वक़्त पर अपनी बात न कह पाने या न सुन पाने के कारण कोई घातक परिणाम भी भुगतने पढ़ सकते हैं ये परेशानी तब ज्यादा कुंठा में डाल देती हैं जब समय पर फ़ोन का बिल भरने और महंगे से महंगा मोबाईल लेने के बावजूद कुछ समस्याएँ उतनी ही महगी साबित हो रही हो ....ये उन कंपनियों की अनियमितता और अपने सेवाओं के प्रति उदासीनता के साथ साथ अपने कंजूमर के प्रति अनिष्ठा और गैर जिम्मेदारी भी जाहिर करता हैं
         लेकिन इन परेशानियों से भी उपर एक अहम बात जब उत्पादक या निर्माता या विक्रेता इस बात को भाप जाय या भली भाती समझ जाय की ये तो जीवन की अब एक अनिवार्य आवश्यकता बन चूका हैं सेवाए केसी भी हो भूख लगने पर रोटी केसी भी मिले अच्छी और जरुरी लगती हैं उसका उपभोग करना ही होता हैं वही स्थिति उपभोक्ता की होती जा रही हैं और वो किसी भी परिस्थिति में जीवन जीने को तैयार हैं उससे होने वाली परेशानियों को सुलझाने के लिये नहीं उसे लगता हैं हम नाह सभी इसका शिकार हैं हम ही क्यों अपना समय और उर्जा लगाये इन मसलों को सुलझाने में....  बस इसी दिशा में जा रहा रहा हैं वर्तमान ...इसे अब एक बार अब जीवन से जोड़ कर समझे जो इसका वास्तविक उद्देश्य हैं  इन्सान रिश्तों और उसकी समझ में हर तरह के कवरेज से बाहर होता जा रहा हैं मोबाईल इसका माध्यम मात्र हैं कुछ परिथितियों वश हो जाते हैं कुछ जानबूझ कर आउट ऑफ़ कवरेज कर लेते हैं दोनों ही बातें अप्रत्यक्ष रूप से हमारे जीवन से जुडी हैं .इसी बात को मोबाईल कवरेज के द्वारा समझने की कोशिश की हैं .....
    जो लोग हमें अच्छी सेवाए हमारे जीवन में दे रहे हैं उदहारण स्वरुप माता –पिता,बड़े भाई बहन,या फिर कोई अन्य क्या हम उनके कवरेज क्षेत्र में हैं कितनी दुरियाँ बना ली हैं हमने सबसे सिर्फ अपनी दुनियाँ में जीने के लिये ...क्या समय पर उन्हें फ़ोन कर पा रहे हैं उनके साथ निभा पा रहे हैं अपनी जिम्मेदारियां और वो अपनापन जो उन्होंने समय समय पर हर परिस्थिति में जितना भी हो सका हमारे लिये किया  ... या असमय हमारा फ़ोन उन्हें  कवरेज क्षेत्र के बाहर ही नजर आता आजकल  हैं या फिर मोबाईल छोड़ो हम स्वयं ही कवरेज के बाहर रहना पसंद करते हैं आजकल ....... या फिर दुसरे पहलु से देखे क्या हम अपनी सेवाए सही ढंग से दे पा रहे हैं घर परिवार और समाज तीनो की बात करे तो, जो हमें सम्पूर्ण कवरेज पाने का अधिकार रहे ... वस्तुए चाहे कितनी भी महंगी हो उनकी असल कीमत वक़्त आने पर वो कितना काम कर पाई उसी से परखी जाती हैं फिर चाहे वो मोबाईल के कवरेज को परखा जाय या रिश्तों की निकटता को रिश्ता कितना भी करीबी हो .केसा भी हो ... जब- जब समय आने पर रिश्ते आउट ऑफ़ कवरेज हुए हैं फिर कवरेज के साथ- साथ दूसरी समस्याएँ स्वतः ही जन्म लेने लगती हैं ठीक वेसे ही जेसे एक छोटी सी बीमारी का सही वक़्त पर इलाज ना होने पर वो अनेक बीमारियाँ अपने आप पैदा कर देती हैं .....जब तक आप रिश्तों के कवरेज में रहते हैं रिश्ते आपके करेज में रहते हैं फिर कभी भी डिसकनेक्ट होना असम्भव हैं आप महसूस करके देखे किसी को अपनी अंतरात्मा से कभी याद करे और कुछ ही दिनों में उसका फ़ोन आ जाय तो केसा महसूस केरेंगे अगर उसी वक़्त फोन आ जाय तो केसा महसूस करेंगे ......ऐसा हमेशा हो जरुरी नहीं कोई वैज्ञानिक कारण नहीं लेकिन अध्यात्म जुड़ा हैं इस छोटी सी बात में जिसे अनुभव भी की गयी हैं ये बात खासतौर पर इसमें अनुभवों के आधार पर कही हैं जो भी अधुरा भी नहीं पूर्ण सत्य हैं इसे हम टेलीपैथी भी कह सकते हैं टेलीपैथी दो व्यक्तियों के बीच विचारों और भावनाओं के उस तबादले को कहते हैं जिसमें हमारी पांच ज्ञानेंद्रियों का इस्तेमाल नहीं होता. ...इसे परामनोविज्ञान अवश्य कह सकते हैं हो सकता हैं आपके जीवन में भी ऐसा हुआ हो की आप किसी को बहुत ज्यादा याद कर रहे हो उससे बात करने या मिलने की इच्छा रख रहे हो और उसका फोन या वो स्वयं कभी- कभी आपके समक्ष उपस्थित हो जाय खैर ये हमारे विषय के बहुत अंदर का विषय हैं इस बात पर हम किसी दुसरे सन्दर्भ में चर्चा करेंगे
      हम जीवन में जब- जब जितने उपर जाते हैं कवरेज प्रोब्लम उतनी ही ज्यादा बढती जाती हैं उचाईयों पर पहुंचने पर भी कवरेज मिलेगा या नहीं इसकी क्या ग्यारंटी क्योकि हम उचाईयों पर तो हर रोज जा रहे हैं बड़े -बड़े मुकाम नेम फेम हासिल कर रहे हैं पर गहराईयों से कोसो दूर होते जा रहे हैं जिन्दगी में भी मोबाईल की तरह अपने संवेदनशीलता और भावनाओं के कवरेज को सदेव मिलाते रहे और इसको  कवरेज क्षेत्र में रखना या न रखना आप पर निर्भर करता हैं कट कट कर रिश्ते निभाना वैसा ही महसूस करवाता हैं जेसे कवरेज नहीं मिल पाने की स्थिति में  कट कट कर कोई जरुरी बात मोबाईल पर की जाती हैं और हम इरिटेशन या चिढ महसूस करते हैं  क्या आपने कभी किसी अपने का या सबसे करीबी इन्सान का अचानक से मोबाईल पूरा दिन कवरेज क्षेत्र के बाहर आते देखा हैं ....अगर आपका जवाब हाँ हैं तो उस वक़्त आपकी प्रतिक्रिया क्या रही होगी कितनी फिक्रमंद और चिंता के साथ आपकी नजरे आपके अपने मोबाईल पर टिकी होंगी इस उम्मीद के साथ कभी अचानक से फोन न आ जाये जो दिन भर से आउट ऑफ़ कवरेज आ रहा हैं.....बस यही फ़िक्र आपकी जिम्मेदारी और अपनेपन का सूचक हैं इसलिए मोबाईल और रिश्तों को जितना कवरेज में रखेगे उतना उनमे प्रगाड़ता आएगी, जिस तरह मोबाईल के साथ थोड़ी सी लापरवाही आपको महंगी साबित हो सकती हैं वेसे ही रिश्तों के साथ इतनी महंगी साबित हो जाएगी की आप चाह कर भी उसे बाज़ार से न तो दोबारा खरीद सकते न रिपयेर करवा सकते सीधे हाथ धो बैठते हैं ..इतनी भी देर न करें चीजों को समझने में, पहल करने में, की वो आउट ऑफ़ कवरेज ही हो जाय ....
       बस यही फर्क हैं रिश्तों और मोबाईल में लेकिन दोनों ही बिना कवरेज के चलना असंभव हैं ये सबसे बड़ी समानता हैं इसलिए रिश्ते भी कट कट कर न निभाए उनकी बैटरी भी फुल चार्ज रखे प्रेम सहयोग सहानुभूति और सम्मान के साथ ....... और उचाईयों के साथ रखे भावनाएं, गहरी संवेदनशीलता और अपनेपन का फुल कवरेज तब देखो न तो रिश्ते अनुपयोगी उबाऊ  और महंगे साबित होंगे न ही मोबाईल.....