लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

शनिवार, 9 जून 2018

हम प्रति क्षण दो समानान्तर जीवन जी रहे होते हैं – एक, जो हमारे बाहर दुनियावी कोलाहल बनकर तैर रहा है, दूसरा – जो हमारे भीतर कुलबुला रहा होता है। जब इन दोनों जीवनों के मध्य असमंजस की लहरें उफान लेने लगती हैं, तो सहन करने की एक निश्चित सीमा के उपरान्त विद्रोह का अंकुर फूटता है। इस अंकुर से फूटता है जीवन का वास्तविक अर्थ और स्वयं के अस्तित्व का कारण।---शोभा जैन
हम जिस 'चरित्र' की बात करते है वो हमारे ही व्यक्तित्व का एक हिस्सा है 'चरित्र' का निर्माण परिस्थितयाँ करती है, याद रहे-- परिस्थितियां सदैव परिवर्तनशील है किन्तु व्यक्तित्व का निर्माण स्वभाव एवं आदतें और मानसिकता |अक्सर समाज 'चरित्र' का डंका बजाता है किन्तु 'व्यक्तित्व विकास' की बात कोई नहीं करता ----- शोभा जैन
हम अतिआधुनिकता की आड़ में बहुत सी परम्पराओं की तिलांजली दे रहे है और भावी पीढ़ियों को सोंप रहे है सभ्यता संस्कृति औरसंस्कार रहित एक खंडित विरासत| शोभा जैन
स्त्री आग और मिट्टी से निर्मित होती है |
इस तरह की स्मृति जो हमारे आज को अधिक सार्थक, समृद्ध और संवेदनशील बना दे। अपने जहन में रखना चाहिए |हमारी स्मृति का एक सिरा हमारे वर्तमान से बंधा होता है, तो दूसरा अतीत से। अतीत और वर्तमान के समय सरिता के बीच एक पुल है, जो दोनों किनारों के बीच संवाद का माध्यम बनता है किन्तु अक्सर उस सम्वाद को विवादित रूप दे दिया जाता है ।अतीत और वर्तमान में से किसी एक के साथ चलना है और किसी एक को साथ ले के चलना|क्योकि अतीत विस्म्रत नहीं होता किन्तु देता बहुत कुछ है सुधार के साथ वर्तमान के स्रजन के लिए | ---शोभा जैन
ग़रीबी के हज़ार चेहरे हैं , लेकिन पहचाने कौन !--शोभा जैन 
कुछ शब्द कोरे पन्नो पर लावारिस भटकते रहे .....शोभा जैन
हम प्रति क्षण दो समानान्तर जीवन जी रहे होते हैं – एक, जो हमारे बाहर दुनियावी कोलाहल बनकर तैर रहा है, दूसरा – जो हमारे भीतर कुलबुला रहा होता है। जब इन दोनों जीवनों के मध्य असमंजस की लहरें उफान लेने लगती हैं, तो सहन करने की एक निश्चित सीमा के उपरान्त विद्रोह का अंकुर फूटता है। इस अंकुर से फूटता है जीवन का वास्तविक अर्थ और स्वयं के अस्तित्व का कारण।---शोभा जैन
महज निर्णय लेना आवश्यक नहीं,उसका सही समय पर लेना आवश्यक है सही या गलत परिणाम निर्धारित करते है परिणाम परिस्थितियां निर्धारित करती है परिस्थितियाँ आपके निर्णयों के पुनर्चक्र के द्वारा ही निर्मित होती है --- शोभा जैन
समय के साथ- साथ हमारी किन चीजों का विकास हो रहा है इसका पुनरावलोकन होते रहना चाहिए कभी- कभीं सिर्फ शरीर का विकास होता है बुद्धि का नहीं, उम्र का विकास होता है अनुभव का नहीं, डिग्रियों की लम्बी कतारे किन्तु ज्ञान का नाम नहीं, विचारों के आडम्बर बहुत किन्तु उनमे तर्क नहीं, जीवन बहुत जीने को पर अनुशासन नहीं, आधा अधूरा विकास नहीं कहलाता 'संतुलित विकास' का पुनरावलोकन अवश्य होना चाहिए| कहने का अर्थ समयानुसार स्वयं को अपडेट करते रहना | क्योकि मेरा ऐसा मानना है ---'समय- असमय अपने भीतर से कुछ घटाना कुछ बढ़ाना अति आवश्यक हो जाता है |' --शोभा जैन
अपनी पुरानी किताबों के लिए कोई योजना है ? नयी कक्षाओं में प्रवेश लेते विद्यार्थियों की पुरानी कॉपी एवं किताबे किसी के लिए बहुमूल्य धरोहर है |आप चाहे तो इतनी कम उम्र में विरासत सोंपने की परम्परा की नींव  रख सकते है ------शोभा जैन
स्त्री होने का अर्थ कई 'सवालों के जवाब' किन्तु अभी प्रश्न चिन्ह सी प्रतीत हो रही है -शोभा जैन
ज्यादतर लोग ओढ़ी हुई मानसिकता का शिकार होते हैं । क्या हमने अतिवाद को अनायास ही जन्म दे दिया -शोभा जैन 
आओ कुछ देर हम भी सपने देखे ,सपनों में कुछ अपने देखे - शोभा जैन
संमाज और दुनियाँ की जटिलताओं के मध्य आत्मनिर्माण और आत्मपरीक्षण दोनों अनिवार्य हो जाते है -शोभा जैन
स्त्री का आत्सम्मान क्या है प्रश्न का उत्तर स्वयं स्त्री को खोजना चाहिये अक्सर अपने 'ईगो' को आत्मसम्मान समझने लगती है, स्त्री के आत्मसम्मान में कई रिश्तों की भागीदारी होती है वह कभी भी उसे अकेले हासिल नहीं कर सकती जैसे पिता,पति,पुत्र,मित्र,भ्राता|-शोभा जैन
दुनिया में काम करने के लिए आदमी को अपने ही भीतर मरना पड़ता है. आदमी इस दुनिया में सिर्फ़ ख़ुश होने नहीं आया है. वह ऐसे ही ईमानदार बनने को भी नहीं आया है. वह पूरी मानवता के लिए महान चीज़ें बनाने के लिए आया है. वह उदारता प्राप्त करने को आया है. वह उस बेहूदगी को पार करने आया है जिस में ज़्यादातर लोगों का अस्तित्व घिसटता रहता है..
.- (विन्सेन्ट वान गॉग की जीवनी- 'लस्ट फ़ॉर लाइफ़' से)
वर्तमान पीढ़ी परिवर्तन के दौर से गुजर रही है। जीवनशैली, नैतिक मूल्यों एवं आदर्शों में बदलाव आ रहा है। आज की युवा पीढ़ी विकास एवं आर्थिक उन्नयन के बोझ तले इतनी अधिक दब गई है कि वह अपने पारम्परिक आधारभूत उच्च आदर्शों से समझौता तक करने में हिचक नहीं रही है।--शोभा जैन 
मैंने घरों के दरवाजे पर बैठी भूख लिखी 
चोराहे पर दुर्घटनाग्रस्त लिखी एक बेटी 
फसल पर डाका डालते, लिखे पटेल 
मैने सरकार की लाठी गोली लिखी 
लिखी गाँव की लुटती आबरू .....
तुमने क्या लिखा कवि----
जो आत्महत्या कर लेते हैं 
वे मर जाने की धमकी नहीं देते 
वह एक क्षण का घना सन्नाटा होता है 
जिस सन्नाटे में मरनेवाला सारे कर्तव्य अधिकार भय से परे होता है ....--
--शोभा जैन