लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2016

साहित्य  शिल्पी    २७  अप्रेल २०१६  में  मेरी कविता-- 'मैं जो हूँ' को पढ़ने के लिए क्लिक  करें  ----http://www.sahityashilpi.com/2016/04/mainjohu-poem-sobhajain.html

गुरुवार, 14 अप्रैल 2016

मैं रूठा, तुम भी रूठ गए
फिर मनाएगा कौन ?
आज दरार है, कल खाई होगी
फिर भरेगा कौन ?
मैं चुप, तुम भी चुप
इस चुप्पी को फिर तोडेगा कौन ?
बात छोटी को लगा लोगे दिल से,
तो रिश्ता फिर निभाएगा कौन ?
दुखी मैं भी और तुम भी बिछड़कर,
सोचो हाथ फिर बढ़ाएगा कौन ?
न मैं राजी, न तुम राजी,
फिर माफ़ करने का बड़प्पन दिखाएगा कौन ?
डूब जाएगा यादों में दिल कभी,
तो फिर धैर्य बंधायेगा कौन ?
एक अहम् मेरे, एक तेरे भीतर भी,
इस अहम् को फिर हराएगा कौन ?
ज़िंदगी किसको मिली है सदा के लिए ?
फिर इन लम्हों में अकेला रह जाएगा कौन ?
मूंद ली दोनों में से गर किसी दिन एक ने आँखें....
तो कल इस बात पर फिर
पछतायेगा कौन ?

अज्ञात --
जिसकी कीमत होती है वही तो बिक सकता है। जिसकी कीमत हो वह कीमती भी हो ये जरुरी नहीं ....

आदमी की कीमत ----भगवान बुद्ध की प्रेरक कथा

एक बार एक आदमी महात्मा बुद्ध के पास पहुंचा। उसने पुछा- ''प्रभू, मुझे यह जीवन क्यों मिला? इतनी बड़ी दुनिया में मेरी क्या कीमत है?'' बुद्ध उसकी बात सुनकर मुस्कराए और उसे एक चमकीला पत्थर देते हुए बोले, ''जाओ, पहले इस पत्थर का मूल्य पता करके आओ। पर ध्यान रहे, इसे बेचना नहीं, सिर्फ मूल्य पता करना है।''
वह आदमी उस पत्थर को लेकर एक आम वाले के पास पहुंचा और उसे पत्थर दिखाते हुए बोला, ''इसकी कीमत क्या होगी?'' आम वाला पत्थर की चमक देखकर समझ गया कि अवश्य ही यह कोई कीमती पत्थर है। लेकिन वह बनावटी आवाज में बोला, "देखने में तो कुछ खास नहीं लगता, पर मैं इसके बदले 10 आम दे सकता हूं।''
वह आदमी आगे बढ़ गया। सामने एक सब्जीवाला था। उसने उससे पत्थर का दाम पूछा। सब्जी वाला बोला, ''मैं इस पत्थर के बदले एक बोरी आलू दे सकता हूं।''
आदमी आगे चल पड़ा। उसे लगा पत्थर कीमती है, किसी जौहरी से इसकी कीमत पता करनी चाहिए। वह एक जौहरी की दुकार पर पहुंचा और उसकी कीमती पूछी। जौहरी उसे देखते ही पहचान गया कि यह बेशकीमती रूबी पत्थर है, जो किस्मत वाले को मिलता है। वह बोला, ''पत्थर मुझे दे दो और मुझसे 01 लाख रू. ले लो।''
उस आदमी को अब तक पत्थर की कीमत का अंदाजा हो गया था। वह बुद्ध के पास लौटने के लिए मुड़ा। जौहरी उसे रोकते हुए बोला, ''अरे रूको तो भाई, मैं इसके 50 लाख दे सकता हूं।'' लेकिन वह आदमी फिरभी नहीं रूका। जौहरी किसी कीमत पर उस पत्थर को अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहता थाा वह उछल कर उसके आगे आ गया और हाथ जोड़ कर बोला, ''तुम यह पत्थर मुझे दे दो, मैं 01 करोड़ रूपये देने को तैयार हूं।''
वह आदमी जौहरी से पीछा छुडा कर जाने लगा। जौहरी ने पीछे से आवाज लगाई, ''ये बेशकीमती पत्थर है, अनमोल है। तुम जितने पैसे कहोगे, मैं दे दूंगा।'' यह सुनकर वह आदमी हैरान-परेशान हो गया। वह सीधा बुद्ध के पास पहुंचा और उन्हें पत्थर वापस करते हुए सारी बात कह सुनाई।
बुद्ध मुस्करा कर बोले, ''आम वाले ने इसकी कीमत '10 आम' लगाई, आलू वाले ने 'एक बोरी आलू' और जौहरी ने बताया कि 'अनमोल' है। इस पत्थर के गुण जिसने जितने समझे, उसने उसकी उतनी कीमत लगाई। ऐसे ही यह जीवन है। हर आदमी एक हीरे के समान है। दुनिया उसे जितना पहचान पाती है, उसे उतनी महत्ता देती है। ...लेकिन आदमी और हीरे में एक फर्क यह है कि हीरे को कोई दूसरा तराशता है, और आदमी को खुद अपने आपको तराशना पड़ता है। ...तुम भी अपने आपको तराश कर अपनी चमक बिखेरो, तुम्हें भी तुम्हारी कीमत बताने वाले मिल ही जाएंगे।''
दुनियां  में काम करने के लिए आदमी को अपने ही भीतर मरना पड़ता है.. आदमी इस दुनिया में सिर्फ़ ख़ुश होने नहीं आया है. वह ऐसे ही ईमानदार बनने को भी नहीं आया है. वह पूरी मानवता के लिए महान चीज़ें बनाने के लिए आया है. वह उदारता प्राप्त करने को आया है. वह उस बेहूदगी को पार करने आया है जिस में ज़्यादातर लोगों का अस्तित्व घिसटता रहता है.

- (
विन्सेन्ट वान गॉग की जीवनी 'लस्ट फ़ॉर लाइफ़' से)

मंगलवार, 12 अप्रैल 2016

कुछ मुक्तक -----

जीवन के दो रूप
कभी छाँव कभी धूप |
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आओ मिलकर सपने देखे
सपनों में कुछ अपने देखे|
.............................................

कहने में कुछ और कहानी सुनने में  कुछ और
लोग यहाँ कुछ और है,घर में रस्ते में कुछ और|
................................................................

जरा सी धूप उठा और अपनी आँखों में भर,
न मेरे साथ बहुत जुड़, न मेरे साथ बिखर|
यहाँ बसे नहीं कई गाँव, बनके शहर ,
'अकेला' मैं नहीं जिसका बसा नहीं कोई घर
मुद्दतों हुई यहाँ देखी नहीं सहर,
हर शख्स घूमता है बस, उधर से इधर    
कवितायेँ लिखना इतना आसान तो नहीं
जितना बचपन के किलकार भरे हाथों से
बरसती पोखर में,
कागज की नाव को तैरा देना,
कविता तो कोशिश है
मोम से पत्थर पर लकीर
को उकेरने की,
जिसमें पत्थर का तो रंग -रूप
बनता -बिगड़ता नहीं
बस मोम है जो घिसता है ... ... 

कुछ पंक्तियाँ --
    शोभा जैन 
घबराने की वैसे कोई बात नहीं है,
बस मेरे सिवा कोई मेरे साथ नहीं है|
सत्य भी अब प्रमाण का मोहताज है
ये सत्य के लिए कोई नई बात नहीं है|
बेमोसम बादल भी घिरते है,
सिर्फ मोसम में अब बरसात नहीं है|
जीवन की हर बाजी जीत लेंगे,
बस मौत के हिस्से में कोई मात नहीं है |
मानव का अस्तित्व ---
  --शोभा जैन

जीवन का अंतिम छोर कहाँ
खोज न पाया कोई यहाँ
मानव की अभिलाषाएं कितनी
हो नहीं सकती इनकी गिनती
मानव ने पाया कितना कम है
जो पाया वह उसका भ्रम है
मानव का अस्तित्व कुछ ऐसा
समुद्र में घुलती बूंदों जैसा 

सोमवार, 11 अप्रैल 2016

कविता – ‘एक गाँव’

       लेखिका –शोभा जैन


गाँव के भीतर ‘एक गाँव’
शहर के भीतर ‘एक गाँव’
   महानगर के भीतर ‘एक गाँव’
   
मेरे भीतर ‘एक गाँव’
तेरे भीतर ‘एक गाँव’
   खोदी थी जमीन इमारत के लिए
   मिला,मिट्टी के भीतर ‘एक गाँव’
   जहाँ थकते नहीं पाँव
ऐसे पीपल के नीचे ‘एक गाँव’
    वो रहता दूर विदेश में भले
    उसके मन में बसता है ‘एक गाँव’
 भाग कर जीता है वहां,  
हर रोज एक पाँव, 
शहर के, एक घर से भी
अच्छा है ‘एक गाँव’
    जब छप्पर पर कौआ,
    बोले  काँव- काँव
अतिथि आगमन में जुटे ‘एक गाँव’
यहाँ गेहूं की बाली, जामुन की छाँव
     शहर में मकान 'नम्बर प्लेट' पर नाम  
     यहाँ,पुरखों के नाम से जीता ‘एक गाँव’
मखमली गद्दों पर नीद भी हराम
टूटी खटिया पर चैन लेता ‘एक गाँव’  
    ये गुरुर है झूठा, झूठा हर दाव
    शहर में बाजार लाया ‘एक गाँव’
जहाँ बाजरे की रोटी में भाजी का चाव
बहती एक नदी और सिर्फ एक नाव
     धुएं से दूर,  बैलगाड़ी से काम
     मुफ्त में मिलते यहाँ इमली औरआम
मेरे शहर से बहुत दूर बसा ‘एक गाँव’
शहर के एक घर से, कही अच्छा है ‘एक गाँव’
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शुक्रवार, 8 अप्रैल 2016


कुछ शब्द कोरे पन्नो पर लावारिस भटकते रहे .....शोभा जैन

हम प्रति क्षण दो समानान्तर जीवन जी रहे होते हैं – एक, जो हमारे बाहर दुनियावी कोलाहल बनकर तैर रहा है, दूसरा – जो हमारे भीतर कुलबुला रहा होता है। जब इन दोनों जीवनों के मध्य असमंजस की लहरें उफान लेने लगती हैं, तो सहन करने की एक निश्चित सीमा के उपरान्त विद्रोह का अंकुर फूटता है। इस अंकुर से फूटता है जीवन का वास्तविक अर्थ और स्वयं के अस्तित्व का कारण।---शोभा जैन

गुरुवार, 7 अप्रैल 2016

भारतीय नव वर्ष की आत्मीय आनंत शुभकामनाओं के साथ ......
ये कविता आप सब के लिए... एक उम्मीद लिए......
----शोभा जैन
हर दिन नया ,
गर, हर दिन कोई उम्मीद हो,
कभी लगे दिवाली,
कभी बैसाखी कभी ईद हो
संशय,भ्रम,संदेह से परे
बने,ऐसा कोई मीत हो
जिसमें हार भी लगे,
जैसे कोई जीत हो
मुट्ठियों के प्रहार,जीवन के पहाड़
जब तक है रक्त संचार
और ये संसार ।
तो क्यों न इसे अम्रत बन पी ले
अपने जीवन को बस जी ले
महज एक उम्मीद है,
हर किसी के जीवन को पढ़ ले
ऐसा पारदर्शी हर मन हो
सबके जीवन में संतुष्टि,सुखी हर मन हो
इन्सान सिर्फ नदियों से नहीं
पहाड़ों से भी प्रेम करे
सिर्फ संयोग नहीं, वियोग भी वहन करे
क्यों हम भ्रमित इच्छाओं में उदास है
जो आस वो 'नियति' के हाथ है
'कर्म' करते रहना सिर्फ हमारे पास है
आदमी प्रक्रति का दास है ।
जीवन की हर चुभन को सहन करें
सिर्फ अपने नहीं,
दूसरों के दुःख को भी वहन करें
नहीं दे सके जीवन अपना,
कम से कम निश्छल तो अपना मन करें ।

रविवार, 3 अप्रैल 2016

जीवन के उद्देश्य को गहराई से समझे ........
 - शोभा जैन
आज के समय में गहरा सम्बन्ध टूटने से हताशा में डूब जाने काअंतिम विकल्प हर उम्र दिखाई दे रहा है| किसी से मित्रता, प्रेम या विवाहित जीवन केटूटने पर निः संदेह गहरी भावनात्मक क्षति पहुँचती है जिससे उबरना कठिन जरुर होसकता है किन्तु आसानी से मुम्किन भी है क्योकि जीवन आपको वे सारे अनुभव देता है जो आपकी चेतना के विकास में मददगार होते है अनुभवों से ही पककर आदमी मजबूत बनता है पकने के लिए विभिन्न प्रकार की घटनाएँ हमारे जीवन में होती है जैसे किसी अपने की अकस्मात म्रत्यु, या फिर सम्बन्ध विच्छेद इसी तरह के अनुभवों के चलते अलग-अलग लोग हमारे जीवन मेंआते है| ये सब हमें और हमारे अनुभवों को समृद्ध बनाते है| संबंधो का टूटना गलती नहीं , ना ही आपकी असफलता कासूचक बल्कि वो कई बार घटना केरूप में आपको आपके जीवन के सही उद्देश्य तक पहुचाने के मकसद से घटित होता है| हजारों उदाहरण मौजूद है कुछ एक अपवादों को छोड़ दे तो, जो लोग आज दूसरों के आदर्श या मिसाल बने है उनके जीवन में किसी न किसी तरह की घटना ने ही उनके जीवन का मकसद उन्हें दिया फिर चाहे वो विवाह विच्छेद हो, प्रेम विच्छेद हो,या फिर किसी कीअकस्मात म्रत्यु या फिर कोई भारी आर्थिक अथवा मानसिक क्षति कुछ उदहारण में हिंदी के कई बल्कि अधिकतर ऐसे साहित्यकार मिलेंगे जो विवाह या प्रेम विच्छेद से गुजरकर ही संवेदनशील या मार्मिक साहित्य रच पाये | मुंशी प्रेमचन्द , जयशंकर प्रसाद, मोहन राकेश, मन्नू भंडारी, कृष्णा अग्निहोत्री, महादेवी वर्मा ये सारे जीवन के उसी दौर से गुजरे है जहाँ से आज आप हम जैसे लोग गुजरते है किन्तु हताश होकर गुजरते है किन्तु हम नया नहीं रचते आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते है| इन सबकी जीवनी मैने बहुत करीब से पढ़ी और अनुभव किया संमाज के लोग आदमी को हताश करते है 'वो गलत है' ये कह -कह कर| वरना आदमी स्वयं भीतर से कभी इतन हताश नहीं होता| टीवी ऐक्ट्रेस प्रत्युषा के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ |अपने ब्लागर पर उपरोक्त साहित्यकारों के जीवन के कुछ सारांश अपडेट भी किये है आप देख सकते है | सत्य यही है 'लाइफ का यू टर्न' इसी तरह की घटनाओं से मिलता है अक्सर|इसलिए घटना को अंत नहीं आरम्भ समझे |टूटे नहीं, इसे कुछ नया जुड़ने की कड़ी समझे क्योकि विध्वंस की स्रजन का कारण बनता है|
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