लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

गुरुवार, 28 फ़रवरी 2019

केवल स्टडी सर्किल में रहना और अपने किये गए अध्ययन को लागू करने में बहुत फर्क होता है |(भले ही सार्वजानिक रूप में नहीं )जो हम पढ़ते है और समझते है बल्कि हम जो पढ़ाते भी है उसे भी लागू करने में संकोच ही बना रहता है |उसे बिना इस भय के की हमारी मौलिकता और अनन्यता का क्या होगा उसका विस्तार करने मे स्वतंत्र बुद्धि का आग्रह नहीं होता | कभी -कभी वह विषय केवल पाठ्यक्रम तक ही सिमित रहता है उसके सूक्ष्म बिन्दुओं को प्रायोगिक रूप से लागू करना त्वरित रूप से तो संभव नहीं हो पाता| कोई भी पुस्तक क्या केवल पढ़ने अथवा पढ़ाने तक ही सिमित रखी जाय ?या फिर स्टडी सर्किल में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने तक ?क्या उसे लागू करने और उस पर विमर्श करने पर विचार नहीं हो ?जिससे विचारों का आदान प्रदान भी होगा है और पुस्तक के कई ऐसे पहलू बन जाय जो विमर्श करते -करते स्वयं आत्मसात भी हो होने लगे |अक्सर हम 'विचारधारा' और 'पथ' में अपनी सीमाओं को बाँध देते है |जिसके चलते कभी -कभी कुछ अच्छे विषय और किताबें छूट जाती है |सुविख्यात भाषाविद साहित्यकार जय कुमार 'जलज' का शोध ग्रन्थ 'भाषा विज्ञान' पढ़ा तो यह विचार अधिक पुख्ता हुआ इसलिए आपके साथ साँझा किया |

मंगलवार, 12 फ़रवरी 2019

डॉ.मुहम्मद हारून रशीद खान की कृति सृजन पथ के पथिक पर मेरी समीक्षा राष्ट्रीय साहित्यिक पत्रिका वीणा के फरवरी २०१९ के अंक में 
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सांध्य समाचार पत्र में मेरा आलेख :प्रेम का मनोविज्ञान

रविवार, 13 जनवरी 2019


पृथ्वी के भूगोल और सूर्य की स्थिति के बदलाव का पर्व मकरसंक्रांति की सभी को सपरिवार शुभकामनायें माना जाता है आज से सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है और सूर्य के उत्तरायण की गति प्रारंभ होती है। बहुत सी मान्यताओं से जुड़ा यह पर्व बदलाव के लिए भी हमें मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार करता है | इससे जुड़ी पतंग उड़ाने की परम्परा जीवन को उत्सवी रूप में पूरी सकारात्मकता के साथ नई ऊँचाईयों पर ले जाने की प्रेरणा भी देती है | हमारे देश में आज के दिन गुड़ घी के साथ खिचड़ी खाने का रिवाज न सिर्फ पृथ्वी के भूगोल और सूर्य के बदलाव का एक होना है अपितु ह्रदय को भी मिठास के साथ एकसार करने का सन्देश है|