लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

रविवार, 16 अगस्त 2015

मोबाईल कवरेज क्षेत्र में नहीं हैं .......
    ट्रिन ट्रिन ... ट्रिन ट्रिन ....हेलो हेलो अरे आवाज नहीं आ रही
रुको फिर से ट्राय करता हूँ ......शायद कवरेज की प्रोब्लम हैं ...........
ट्रिन ट्रिन ,ट्रिन ट्रिन.. हेलो ......... हाँ अब आवाज आ रही हैं,....
 हेलो... हाँ मेरी आवाज अभी साफ सुनाई दे रही हैं की नहीं .........
हाँ अब थोड़ी आ तो रही हैं पर कट कट के  
रुको थोडा और ऊपर जाकर बात करता हूँ.........
अब तो पहले जितनी भी नहीं आ रही ...............
अब तो बिलकुल भी नहीं आ रही ..............................
एक बार फिर से देखता हूँ लगा कर ...........
हाँ अब बोलो अब तो ठीक हैं [थोड़ी देर बात करते ही फ़ोन कट जाता हैं ]
अरे ये क्या हुआ मैं इतने उपर चला गया फिर भी कवरेज नहीं मिल रहा
कितना मंहगा मोबाईल लिया हैं पर काम पढने पर कभी लगता ही नहीं .................
  यही हैं आउट ऑफ़ कवरेज की तरह हमारा जीवन और जीवन शैली रिश्ते और जीवन दोनों ही आउट ऑफ़ कवरेज होता जा रहा हैं .....................
               
प्रस्तुत आलेख में इस बात को समझने का प्रयास किया हैं की अक्सर कवरेज नहीं मिल पाने की स्थिति में हमारी अपनों या अपने वालो से बहुत आवश्यक बातें भी या पूरी नहीं हो पाती,या फिर सही तरीके से नहीं हो पाती अक्सर फोन भी नहीं लग पाते कोई अति आवशयक काम हो तब... एसी स्थिति में किसी बेहद करीबी को सन्देश देना या उसका हाल जानना उससे बात करना बेहद जरुरी होने की परिस्थिति में बात न हो पाना बार बार फोने कट जाना हमें न सिर्फ़ फ्रस्टेट करता हैं बल्कि कभी- कभी सही वक़्त पर अपनी बात न कह पाने या न सुन पाने के कारण कोई घातक परिणाम भी भुगतने पढ़ सकते हैं ये परेशानी तब ज्यादा कुंठा में डाल देती हैं जब समय पर फ़ोन का बिल भरने और महंगे से महंगा मोबाईल लेने के बावजूद कुछ समस्याएँ उतनी ही महगी साबित हो रही हो ....ये उन कंपनियों की अनियमितता और अपने सेवाओं के प्रति उदासीनता के साथ साथ अपने कंजूमर के प्रति अनिष्ठा और गैर जिम्मेदारी भी जाहिर करता हैं
         लेकिन इन परेशानियों से भी उपर एक अहम बात जब उत्पादक या निर्माता या विक्रेता इस बात को भाप जाय या भली भाती समझ जाय की ये तो जीवन की अब एक अनिवार्य आवश्यकता बन चूका हैं सेवाए केसी भी हो भूख लगने पर रोटी केसी भी मिले अच्छी और जरुरी लगती हैं उसका उपभोग करना ही होता हैं वही स्थिति उपभोक्ता की होती जा रही हैं और वो किसी भी परिस्थिति में जीवन जीने को तैयार हैं उससे होने वाली परेशानियों को सुलझाने के लिये नहीं उसे लगता हैं हम नाह सभी इसका शिकार हैं हम ही क्यों अपना समय और उर्जा लगाये इन मसलों को सुलझाने में....  बस इसी दिशा में जा रहा रहा हैं वर्तमान ...इसे अब एक बार अब जीवन से जोड़ कर समझे जो इसका वास्तविक उद्देश्य हैं  इन्सान रिश्तों और उसकी समझ में हर तरह के कवरेज से बाहर होता जा रहा हैं मोबाईल इसका माध्यम मात्र हैं कुछ परिथितियों वश हो जाते हैं कुछ जानबूझ कर आउट ऑफ़ कवरेज कर लेते हैं दोनों ही बातें अप्रत्यक्ष रूप से हमारे जीवन से जुडी हैं .इसी बात को मोबाईल कवरेज के द्वारा समझने की कोशिश की हैं .....
    जो लोग हमें अच्छी सेवाए हमारे जीवन में दे रहे हैं उदहारण स्वरुप माता –पिता,बड़े भाई बहन,या फिर कोई अन्य क्या हम उनके कवरेज क्षेत्र में हैं कितनी दुरियाँ बना ली हैं हमने सबसे सिर्फ अपनी दुनियाँ में जीने के लिये ...क्या समय पर उन्हें फ़ोन कर पा रहे हैं उनके साथ निभा पा रहे हैं अपनी जिम्मेदारियां और वो अपनापन जो उन्होंने समय समय पर हर परिस्थिति में जितना भी हो सका हमारे लिये किया  ... या असमय हमारा फ़ोन उन्हें  कवरेज क्षेत्र के बाहर ही नजर आता आजकल  हैं या फिर मोबाईल छोड़ो हम स्वयं ही कवरेज के बाहर रहना पसंद करते हैं आजकल ....... या फिर दुसरे पहलु से देखे क्या हम अपनी सेवाए सही ढंग से दे पा रहे हैं घर परिवार और समाज तीनो की बात करे तो, जो हमें सम्पूर्ण कवरेज पाने का अधिकार रहे ... वस्तुए चाहे कितनी भी महंगी हो उनकी असल कीमत वक़्त आने पर वो कितना काम कर पाई उसी से परखी जाती हैं फिर चाहे वो मोबाईल के कवरेज को परखा जाय या रिश्तों की निकटता को रिश्ता कितना भी करीबी हो .केसा भी हो ... जब- जब समय आने पर रिश्ते आउट ऑफ़ कवरेज हुए हैं फिर कवरेज के साथ- साथ दूसरी समस्याएँ स्वतः ही जन्म लेने लगती हैं ठीक वेसे ही जेसे एक छोटी सी बीमारी का सही वक़्त पर इलाज ना होने पर वो अनेक बीमारियाँ अपने आप पैदा कर देती हैं .....जब तक आप रिश्तों के कवरेज में रहते हैं रिश्ते आपके करेज में रहते हैं फिर कभी भी डिसकनेक्ट होना असम्भव हैं आप महसूस करके देखे किसी को अपनी अंतरात्मा से कभी याद करे और कुछ ही दिनों में उसका फ़ोन आ जाय तो केसा महसूस केरेंगे अगर उसी वक़्त फोन आ जाय तो केसा महसूस करेंगे ......ऐसा हमेशा हो जरुरी नहीं कोई वैज्ञानिक कारण नहीं लेकिन अध्यात्म जुड़ा हैं इस छोटी सी बात में जिसे अनुभव भी की गयी हैं ये बात खासतौर पर इसमें अनुभवों के आधार पर कही हैं जो भी अधुरा भी नहीं पूर्ण सत्य हैं इसे हम टेलीपैथी भी कह सकते हैं टेलीपैथी दो व्यक्तियों के बीच विचारों और भावनाओं के उस तबादले को कहते हैं जिसमें हमारी पांच ज्ञानेंद्रियों का इस्तेमाल नहीं होता. ...इसे परामनोविज्ञान अवश्य कह सकते हैं हो सकता हैं आपके जीवन में भी ऐसा हुआ हो की आप किसी को बहुत ज्यादा याद कर रहे हो उससे बात करने या मिलने की इच्छा रख रहे हो और उसका फोन या वो स्वयं कभी- कभी आपके समक्ष उपस्थित हो जाय खैर ये हमारे विषय के बहुत अंदर का विषय हैं इस बात पर हम किसी दुसरे सन्दर्भ में चर्चा करेंगे
      हम जीवन में जब- जब जितने उपर जाते हैं कवरेज प्रोब्लम उतनी ही ज्यादा बढती जाती हैं उचाईयों पर पहुंचने पर भी कवरेज मिलेगा या नहीं इसकी क्या ग्यारंटी क्योकि हम उचाईयों पर तो हर रोज जा रहे हैं बड़े -बड़े मुकाम नेम फेम हासिल कर रहे हैं पर गहराईयों से कोसो दूर होते जा रहे हैं जिन्दगी में भी मोबाईल की तरह अपने संवेदनशीलता और भावनाओं के कवरेज को सदेव मिलाते रहे और इसको  कवरेज क्षेत्र में रखना या न रखना आप पर निर्भर करता हैं कट कट कर रिश्ते निभाना वैसा ही महसूस करवाता हैं जेसे कवरेज नहीं मिल पाने की स्थिति में  कट कट कर कोई जरुरी बात मोबाईल पर की जाती हैं और हम इरिटेशन या चिढ महसूस करते हैं  क्या आपने कभी किसी अपने का या सबसे करीबी इन्सान का अचानक से मोबाईल पूरा दिन कवरेज क्षेत्र के बाहर आते देखा हैं ....अगर आपका जवाब हाँ हैं तो उस वक़्त आपकी प्रतिक्रिया क्या रही होगी कितनी फिक्रमंद और चिंता के साथ आपकी नजरे आपके अपने मोबाईल पर टिकी होंगी इस उम्मीद के साथ कभी अचानक से फोन न आ जाये जो दिन भर से आउट ऑफ़ कवरेज आ रहा हैं.....बस यही फ़िक्र आपकी जिम्मेदारी और अपनेपन का सूचक हैं इसलिए मोबाईल और रिश्तों को जितना कवरेज में रखेगे उतना उनमे प्रगाड़ता आएगी, जिस तरह मोबाईल के साथ थोड़ी सी लापरवाही आपको महंगी साबित हो सकती हैं वेसे ही रिश्तों के साथ इतनी महंगी साबित हो जाएगी की आप चाह कर भी उसे बाज़ार से न तो दोबारा खरीद सकते न रिपयेर करवा सकते सीधे हाथ धो बैठते हैं ..इतनी भी देर न करें चीजों को समझने में, पहल करने में, की वो आउट ऑफ़ कवरेज ही हो जाय ....
       बस यही फर्क हैं रिश्तों और मोबाईल में लेकिन दोनों ही बिना कवरेज के चलना असंभव हैं ये सबसे बड़ी समानता हैं इसलिए रिश्ते भी कट कट कर न निभाए उनकी बैटरी भी फुल चार्ज रखे प्रेम सहयोग सहानुभूति और सम्मान के साथ ....... और उचाईयों के साथ रखे भावनाएं, गहरी संवेदनशीलता और अपनेपन का फुल कवरेज तब देखो न तो रिश्ते अनुपयोगी उबाऊ  और महंगे साबित होंगे न ही मोबाईल.....

     

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