लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2015



मेरा सभी मित्रों से अनुरोध हैं की हिन्दी को अपनाने में उसका उपयोग करने में शर्म महसूस न करे क्योकि हम कितने भी बड़े अंग्रेज बन जाये या अंग्रेजी बोल ले संवेदनशीलता और भावनाओं के बगैर हम सिर्फ हाड़ मॉस का एक हाइली एजुकेटेड पुतला ही कहलायेगे अगर शिक्षा का सम्बन्ध जीवन से हैं तो जीवन का सम्बन्ध ज़मीन से क्योकि फसलें जमींन पर ही उगती हैं आसमानों पर नहीं इसलिए चाहे कितनी भी तरक्की करे अपनी जमीन से सदा जुड़े रहे और माँ और मात्र भाषा दोनों हमारी जमीन हैं जिनमेँ बसी हैं हमारी संवेदनशीलता जिसे हम अपनों के साथ बिना हिंदी के अभिव्यक्त नहीं कर सकते कर भी दिया तो वे उन गहराइयों तक नहीं पहुँच पाएंगे जिन तक हम हिन्दी के माध्यम से जा सकते हैं.। अंग्रेजी या किसी भी अन्य भाषा का नॉलेज होना आपकी इंटेलिजेंसी बताता हैं. लेकिन अपनी भाषा का सही तरीके से सही जगह उपयोग करना और दूसरों को करने के लिए प्रेरित करना आपकी बुद्धिमानी और संस्कार बताता हैं हिंदी के जैसी भावुक मर्मस्पर्शी भाषा अन्यत्र नहीं और जीवन में भावना और मर्म दोनों का होना अत्यंत आवश्यक हैं इसलिए हिंदी को प्राथमिकता दें । किसी दूसरी भाषा का उपयोग करना गलत नहीं हैं पर अपनी भाषा को छोड़कर उसे अपनाना अपनों के साथ नाइंसाफी के बराबर हैं हमने सदेव दूसरों की भाषा और संस्कृति का सम्मान करना सीखा हैं फिर हम अपनों के मामले में और अपनी भाषा के लिए वो सम्मान क्यों नहीं ला पाते हैं अगर हम ही अपनी भाषा और अपनों के साथ परायों जैसा बर्ताव करेंगे तो हममें और एक बुद्धिहीन प्राणी में कोई फर्क नहीं रह जायेगा एक बार जो बात आप अंग्रेजी में कह कर जताते हो वही हिंदी में बोलकर दोनों के फर्क को महसूस करने की कोशिश करे फिर चाहे वो किसी से माफ़ी मांगना हो या फिर अपने प्रेम का इजहार या फिर अपनी कोई गलती स्वीकारना। जितनी गहराई आप हिन्दी भाषा के शब्दों में महसूस करेंगे अंग्रेजी में कतई नहीं। [चूँकि हम हिंदुस्तानीहैं भारतीय हैं ] शिक्षित होना आवश्यक हैं पर बुद्धिमान होना उससे भी ज्यादा आवश्यक हैं। और बुद्धि ईश्वर ने दी तो सबको हैं पर उसका उपयोग कितने कर पा रहे हैं ये देखना बाकि हैं। 

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