लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

मंगलवार, 19 जनवरी 2016

रिश्तों कि एक्सपाइरी ………………………

हम सभी  कि जिंदगी मुश्किलों, समझौतों, और समाधान से होकर गुजरती हैं कुछ रिश्तें जीवन के पहले पड़ाव में मुश्किलों से सिमट कर ख़त्म हो जाते। शायद वहाँ आपसी समझ,या किसी एक के बड़प्पन कि कुछ ज्यादा कमी हो जाती हैं या फिर दोनों का ही मैन ईगो अपनी ओर से पहल करने में आड़े जाता हैँ इसलिये ये एक्सपाइरी मुश्किलों से शुरू होकर रिश्तों को अनुपयोगी बना देती हैं और फिर रिश्तें बोझ के सामान लगने लगते हैं उनमें नीरसता जाती हैं। लेकिन ये सब एक दिन में नहीं होता चीज़े और उनको देखने का नजरिया एक दिन में नहीं बदलता धीरे- धीरे बिगड़ती हैं चीजे बिगड़ने के धीमेपन को ही सही समय पर समझना जरुरी हैं कभी -कभी परिस्थितियाँ इतना वृहद विकट रूप ले लेती हैँ कि रिश्ते सिर्फ़ समझोते बनकर रह जाते हैं हालांकि एक तरह से सकारात्मक भी हैं क्योकि पति -पत्नी के रिश्ते में जब ऐसी परिस्थितियॉ बनती हैं और जब दोनों में से कोई एक इस परिस्थिति के साथ समझोता कर लेता हैं और जीवन के इस माहोल को ही अपना भविष्य मान लेता हैं अन्तरमन के इस फैसले से बच्चों के भविष्य के हिसाब  से पूरी चीजे बिगड़ने कि हानि से बचा जा सकता हैं घर परिवार कि इज्जत और समाज, बच्चों का भविष्य सुरक्षित रखने कि द्रष्टि से समझोते भरी जिंदगी को आजीवन कारावास समझकर स्वीकारा जाता हैं जिसमें बाहर से देखने वालों को सब ठीक नजर आता हैं पर इस रिश्ते कि वास्तविकता कुछ और होती हैं। ऐसे समय में पति -पत्नी का अलग हो जाना इस समस्या का समाधान अवश्य हो सकता हैं,रोज रोज कि किच -किच से अलग रहकर जिंदगी बिताना जो कहने में जितना मुश्किल हैं प्रायोगिक रूप से एक आदमी और एक औरत दोनों के लिये बेहद तकलीफदेह हैं, क्योकि परिवार का टूटना किसी भी परिस्थिति में सुखदायी नहीं होता अलग हो जाने से एक होने के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं दो अलग- अलग लक्ष्य दो अलग- अलग जीवन ही जीते हैं. साथ रहकर किसी एक का समझोता करने से भविष्य में रिश्तों में सुधार होने कि आशा और फिर से एक होने का विकल्प सदैव जीवित रहता हैं ये बात अलग हैं कि बेमन से समझोते भरी जिंदगी वास्तव में परिवार रिश्तों समाज और स्वयं के बच्चों के लिये एक स्मोक स्क्रीन के सामान होती हैं जिसमें समाज को पति पत्नी और बच्चों को माता पिता एक नजर आयेगे पर पर वास्तव में दो अलग।बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए लिया गया ये फैसला निश्चित ही उनका भविष्य तो ख़राब नहीं करेगा परन्तु जिस तरह से उनकी परवरिश और ध्यान पूरे मन से दोनों के सामंजस्य से होता उससे तो वे सदैव वंचित रहेंगे। या यू कहें भविष्य बनाने के लिये किया समझोता महज़ भविष्य को बिगड़ने से बचाने के लिये किया गया हैं।
                  वर्तमान समय में रिश्तों के इस रूप को अक्सर देखा जा रहा हैं .   आपसी सामंजस्य और समझ में कमी के चलते या तो पति पत्नी में सम्बन्ध विच्छेद हो रहा हैं या फिर एक ही घर में रहकर अलग अलग मन से सिर्फ़ अपनी अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने का प्रयास किया जा रहा हैं जिससे समाज को लगे की ये पूर्ण परिवार हैं परन्तु न तो समाज बेवकूफ न बच्चे जिनको ये स्मोक स्क्रीन दिखाई जा रही ह५न बच्चे हमेशा ही बच्चे नहीं रहने वाले जो बात अभी सँभालने की कोशिश की जा रही हैं वो कभी न कभी किसी न किसी रूप में सामने आ ही जाएगी अपनी भावनायेओर दुःख आप ज्यादा दिनों तक छिपा नहीं सकते
             तीसरा रास्ता समाधान का जो सबसे मुश्किल भरा होता हैं इसमें या तो पुरानी चीजो को ख़त्म करके नई शुरुआत हो या चीजे जिन वजहों से बिगड़ी हैं उसकी जड़ तक जाकर उस पर पूरी आस्था से अगर मनन चिन्तन कर बजाय एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाये दोनों ही अपनी - अपनी गलतियों को स्वीकार कर ये माने की इन वजहों से हमारे जीवन में दरारे आई ओर दूरियाबनी हैं क्या ये वजहें हमारे रिश्ते से भी उपर हो सकती हैं बिना किसी ईगो के अपने रिश्ते को जोड़ने की तत्परता के आगे वो वजहें बहुत बोनी ओर हास्यप्रद प्रतीत होंगी उन्हें जीवन में न दोहराने का संकल्प स्वयं से लेकर उसी जिन्दगी को अपडेट ओर बेहतर किया जा सकता हैं क्योकि पुरानी वस्तुए ओर पुराने रिश्ते समय के साथ -साथ निखरते हैं समय की मार बार -बार उन पर पॉलिशिंग करती हैं ओर शायद इसी का नाम जीवन हैं ये सब रचा ही हमारी सेल्फ टेस्टिंग के लिए जाता हैं हम अपने रिश्ते के प्रति कितने समर्पित ओर उदार हैं इस बात का भी परिक्षण हो जाता हैं नया जीवन नई चीजो ओर नए रिश्तों के साथ जीना सबसे आसान तरीका हैं पर पुराने के साथ निभाना,उसकी कमियों के साथ उसे जीना ओर सही बनाकर न सिर्फ़ उसमे खुशियां खोजना बल्कि जो मिले उसे सहेज कर उसे उसके मुकाम तक ले जाना सबसे कठिन काम काम हैं .. शायद इसीलिए रिश्ते बीच मझधार में ही दम तोड़ देते हैं एक ओरत की इसमें सबसे अहम् भूमिका रहती हैं और उसके इसी प्रबंधन से सबसे ज्यादा उम्मीदे रखी जाती हैं ...गलतियाँ हर इन्सान से होती हैं कुछ परिस्थितियोवश कुछ अन्य कारणों से लेकिन कभी कभी एक पत्नी को पति के जीवन में माँ का किरदार भी अदा करना होता हैं शायद इसलिए माँ का स्थान कोई ओर कभी नहीं ले पाया उसका ह्रदय सबसे विशाल माना गया हैं क्या उसे ठेस नहीं पहुचती फिर भी वो समय देती हैं ओर हमेशा अवसर देती अपनी त्रुटियों न सिर्फ़ सुधारने बल्कि उनको महसूस करने का भी.. माँ भी एक ओरत हैं ओर पत्नी भी एक ओरत फिर माँ हमेशा इसे सहेजने में सफ़ल रहती हैं पत्नी क्यों जल्दी हार मान लेती हैं गलती किसी की भी हो परिस्थिति जो भी हो एक ओरत से बेहतर ओर श्रेष्ठ इसे कोई नहीं संभाल सकता ये गुण,प्रतिभा ओर इस कार्य में दक्षता ईश्वर ने दुनिया की हर ओरत को नेमत के रूप में दिया हैं बस उसे पहचानने ओर जीवन में अपनाने की देर हैं ओर जो समय रहते इसे स्वीकार कर इसमें यथोचित सुधार कर लेता हैं उसकी जिन्दगी अपने आप आम से बेहद खास बन जाती हैं क्योकि हमारे कुछ समय की विपरीत परिस्थति में लिया गया एक गलत निर्णय जाने कितने रिश्तों की जिन्दगी को न सिर्फ़ जीवन के प्रति अपितु उस रिश्ते के प्रति भी उदासीन कर देगा

             इसलिए रिश्तों के एक्सपायर होने का इंतजार न करे जरा भी संशय होने की स्थिति में अपडेट करे पुनःस्थापित करे उसी रिश्ते को नए स्वरुप में... अगर सही वक़्त पर उन्हें रिनोवेट कर लिया तो वही रिश्ते जीवन की ओषधि बन जायेगे जो कभी एक्सपायर नहीं होती रिश्ते जीवन जीने के लिए होते हैं उनसे दूर भागने के लिए नहीं इसलिए समय- -समय पर स्वयं का परीक्षण  कठोर और विपरीत परिस्थितियों  बीच विश्वास,धैर्य,और प्रेम की खाद से सदेव उन्हें पोषित कर पुनः रोपित करने का प्रयास ही सफ़ल जीवन का मूल मंत्र हैं 
....  शोभा जैन अक्टूबर  २०१४

1 टिप्पणी:

  1. बेहद अनुभवजनित और यथार्थपरक आर्टिकल शोभाजी इसे पाठकों तक जरूर पहुँचना चाहिये।

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