लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

मंगलवार, 16 फ़रवरी 2016

आलेख -
 आप विवाह क्यों कर रहे है......
[ कम से कम आधुनिकता की दौड़ में विवाह को समझोते की परिभाषा और अनगिनत विकल्पों के रूप में न गिना जाय समझौते की इति विवाह-विच्छेद या तलाक में होती है.ऐसा मेरा मानना हैं ।  ]
लेखिका --शोभा जैन

क्या आपकी उम्र विवाह की हों  गयी हैं इसलिए या फिर माता-पिता परिवार का दबाव आप पर हैं क्योकि दोनों ही परिस्थिति में विवाह संतुष्टि प्रद सफल होने सम्भावनाये कम ही प्रतीत होंगी। या फिर आपको ऐसा प्रतीत होता हैं की आप अपने जीवन में अकेले हैं और उस अकेलेपन को दूर करने के लिए किसी इंसान के साथ जीवन बिताना चाहते हैं तब भी शायद आप इस पैरामीटर पर खरे न उत्तर पाओं क्योकि उस इंसान की भी अपनी कुछ जरूरते और कारण होंगे और उसकेम प्रति जिम्मेदारिया होंगी पर आपकी वजह शायद उनका निर्वहन न कर पाये इस वजह से सिर्फ  अकेलेपन को दूर करने का कारण भी विवाह के लिए उचित नही या मुझे  फिर आपको  ऐसा लगता हैं की मुझे किसी भी प्रकार के फाइनैंशली सुपोर्ट की आवश्यकता हैं इसलिए मुझे इस व्यक्ति से विवाह कर लेना चाहिए। या फिर माँ अकेली हैं बहु आ जाएगी तो उन्हें सहारा मिल जायेगा। भावनाओं का अपना अलग स्थान हैं पर भावनाओं में समझदारी ही भावनाओं को सही निर्णायक मोड़ दे सकती हैं। कही आप विवाह इसलिए तो नहीं करना चाहते की  आपने कुछ जाने- अनजाने में ऐसी गलतियां कर ली हैं जिनको छिपाने या फिर उन पर पर्दा डालने या फिर अपने आप को सही साबित करने के लिए विवाह ही एक मात्र विकल्प बनता हैं। इस वजह से आप विवाह करने पर विवश हैं। उपरोक्त सभी कारण विवाह करने के कारण बन जाय लेकिन सफल विवाहित जीवन जीने के लिए बहुत मुश्किल प्रतीत होते हैं।
    विवाह एक व्यक्ति के साथ जीवन भर का सुखमय सन्तुष्टिमय आनंदमय साथ होता हैं जिसके प्रति आप प्रेम, सहानुभूति,सहनशीलता  समझ और समझदारी , प्रगाढ़ मित्रता, के साथ निभाये जाने का चरम पाते   हैं। जिसमे वजह से ज्यादा जरुरी 'जरूरत' होती हैं वो जरुरत जो ता -उम्र बनी  रहने वाली हैं उसमे कभी उबाऊपन नहीं हैं हर दिन कुछ नया। ''उसकी पूर्ति न होने में ही उसका सुख हैं''.[इसे समझे कुछ चीजो की जरूरतें ही जीवन भर साथ रहने का कारण बनती हैं ]...   जरूरत हर दिन उस इंसान की उस रिश्ते की बानी रहे। अक्सर ऐसे इंसान से विवाह करे या तो दोनों की जरूरते एक जैसी हो या फिर दोनों की अलग- अलग जरूरतों की पूर्ति दोनों के पास हो लेकिन जीवन भर के लिए। क्योकि जीवन तो आपको जीना हैं उसके साथ हर अच्छे बुरे समय के साथ लेकिन उसके सुखों और दुखो का लाभ- हानि आपके साथ -साथ आपसे जुड़े लोगो को भी प्रभावित करता हैं  इसलिए विवाह करवाने वाले से ज्यादा आवश्यक जिसे विवाह करना हैं ये निर्णय उसे अपने स्वांकलन के आधार पर करना चाहिए की मैं विवाह क्यों करना चाहता हूँ और मैं इसे निभाने में कितना कहाँ  तक सक्षम हूँ खुशियाँ पाने के लिए [जिम्मेदारियों के रूप में ] कीमत तय कर ले  ।  दरअसल विवाह करना कोई नियम  या प्रावधान नहीं हैं...  लकिन जब इसमे आपको संतुष्टि मिलती हैं तो आपका धर्म कहता हैं की आप दूसरों को भी खुशियाँ दे जो आपके पास होगा वही आप दूसरों को दे पायंगे जो आपने महसूस किया वही आप दूसरों में महसूस करने की ताकत रख पाएंगे इसलिए पहले स्वयं अपने विवाह में संतुष्टि खोजें फिर दूसरों को सलाह दे समझाइश दें। इसके साथ- साथ सलाह पाने वाला भी स्वयं का परीक्षण अवश्य करे सवालों के कटघरे में खड़े होकर की विवाह क्यों।  सिर्फ सामाजिक और पारिवारिक दबाव और उम्र  में इजाफा या फिर एक -दूसरे का उपभोग करने की लालसा विवाह करने का कारण तो बन सकती हैं किन्तु सन्तुष्टिप्रद विवाहित जीवन को  जीवित रखने का कारण नहीं बन सकती। विवाह जीवन की किसी एक वजह को पूरा करने के लिए उठाया जाने वाला इतना बड़ा कदम कदापि नहीं हो सकता। उसके पीछे  बहुत बडे  और अहम  कारण होने चाहिए जिनका सामाजिक  तौर पर आवश्यकता द्वितीयक हो पर व्यक्तिगत स्तर पर प्राथमिकताओं में कारण प्रथम हो  कम से कम आधुनिकता की दौड़ में विवाह को समझोते की परिभाषा और अनगिनत विकल्पों के रूप में न गिना जाय  हो ऐसा मेरा मानना हैं  समझौते की इति विवाह-विच्छेद या तलाक में होती है.। लेखिका --शोभा जैन  

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