प्रौढ़ व्यक्ति में प्रेम ....
साधारणतया किसी से प्रेम पाने की ज़रूरत महसूस होती है। यह एक बचकानी ज़रूरत है, तुम प्रौढ़ नहीं हुए, यह एक बच्चे का भाव है।
एक बच्चा पैदा होता है। स्वभाविकत: बच्चा मां को प्रेम नहीं कर सकता, उसे नहीं मालूम कि प्रेम क्या होता है, न ही उसे पता है कि कौन मां है कौन पिता। वह पूर्णतया असहाय है। उसका अभी स्वयं के साथ एकीकरण होना है। अभी उसका स्वयं से एकात्म नहीं हुआ, अभी वह स्वयं में स्थित नहीं हुआ। वह बस एक संभावना है। मां को उसे प्रेम करना है, बाप को उसे प्रेम करना है, परिवार को उस पर प्रेम की बौछार करनी है। उसे एक ही बात समझ आती है कि सबको उसे प्रेम करना है। वह यह कभी सीखता ही नहीं कि उसे भी किसी को प्रेम करना है। अब वह बड़ा होगा, और यदि वह इस भाव से ही जुड़ा रहा कि सबने उसे ही प्रेम करना है तो वह पूरा जीवन दु:ख से पीड़ित रहेगा। उसकी देह तो बड़ी हो गई लेकिन उसका मन अप्रौढ़ रह गया है।
एक प्रौढ़ व्यक्ति वह है जिसे अपनी दूसरी ज़रूरत समझ में आ जाती है: कि अब उसे दूसरे को प्रेम करना है।
साधारणतया किसी से प्रेम पाने की ज़रूरत महसूस होती है। यह एक बचकानी ज़रूरत है, तुम प्रौढ़ नहीं हुए, यह एक बच्चे का भाव है।
एक बच्चा पैदा होता है। स्वभाविकत: बच्चा मां को प्रेम नहीं कर सकता, उसे नहीं मालूम कि प्रेम क्या होता है, न ही उसे पता है कि कौन मां है कौन पिता। वह पूर्णतया असहाय है। उसका अभी स्वयं के साथ एकीकरण होना है। अभी उसका स्वयं से एकात्म नहीं हुआ, अभी वह स्वयं में स्थित नहीं हुआ। वह बस एक संभावना है। मां को उसे प्रेम करना है, बाप को उसे प्रेम करना है, परिवार को उस पर प्रेम की बौछार करनी है। उसे एक ही बात समझ आती है कि सबको उसे प्रेम करना है। वह यह कभी सीखता ही नहीं कि उसे भी किसी को प्रेम करना है। अब वह बड़ा होगा, और यदि वह इस भाव से ही जुड़ा रहा कि सबने उसे ही प्रेम करना है तो वह पूरा जीवन दु:ख से पीड़ित रहेगा। उसकी देह तो बड़ी हो गई लेकिन उसका मन अप्रौढ़ रह गया है।
एक प्रौढ़ व्यक्ति वह है जिसे अपनी दूसरी ज़रूरत समझ में आ जाती है: कि अब उसे दूसरे को प्रेम करना है।
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