लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

शनिवार, 2 जुलाई 2016

कहा गया है --संसार में औरत के मुकाबले कोई सख्तजान नहीं। बेटों को रोग-धोग व्यापे, इसे कभी छींक तक न आई। अरे... गाय मरे अभागे की, बेटी मरे सुभागे की। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें