हिंदी साहित्य में स्त्री आत्मकथाएँ सिर्फ व्यथा कथाएँ नहीं हैं बल्कि तमाम तरह की पितृसत्तात्मक चुनौतियों को स्वीकार करते हुए स्त्री के बनने की कथाएँ हैं। इस बनने के क्रम में बहुत कुछ जर्जर मान्यताएँ टूटती हैं लेकिन जो बनती है उसे या उसके अस्तित्व को पूरी दुनिया स्वीकार करती है।
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