लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

गुरुवार, 5 जनवरी 2017


जो दिया तुमने .......
   -- शोभा जैन 

पाया तुममें, सार्थक जीवन, आत्मचेतना, गहन चिन्तन|
भीड़ से अलग खुद को, बौना पाया हर दुःख को |
व्यथा ‘उसकी’ स्वयं जीकर, दिया उसका स्वयं ‘मूल्य’
तुम्ही शिक्षक, तुम्ही प्रेरणा,साथी तुम अतुल्य|
करुणा तुम, संवेदन तुम, ‘उन्मुक्त’ रहो वो ‘बंधन’ तुम
सोच में इत्मिनान तुम, खुद में एक सायबान तुम,
छोड़ दुनियाँ से छाँव की उम्मीद,खुद अपनी पहचान तुम |
मेरे अन्तस् की ‘धूप’ मेरी पूरी दुनियाँ, मेरा गाँव ‘तुम’|
मेरे सृजन के शिखर ‘तुम’ मौन ‘मैं’ शब्द मुखर ‘तुम’
नेपथ्य में उजास ‘तुम’, मेरी धरती मेरा आकाश ‘तुम’ |
मेरे प्रतिबिम्ब का आकार तुम,एक अनोखा संसार ‘तुम’
तुम ही आलोक, मेरी देह, मेरा प्राण तुम,
मैं ‘जीवंत’ मेरा ‘निर्वाण’ ‘तुम’|
इस बात को कितने संकोच से स्वीकार करते हो,
बेपरवाह बाधाएं पार करते हो |
अब शेष नहीं कुछ भी,
जो टीस बने मन की|
ये शब्द आत्माभिव्यक्ति है ‘मेरे’ ह्रदय और मन की|
न कह सकूँ न रख सकूँ, है यही ‘निष्कर्ष’ अब,

जो दिया ‘तुमने’ बस उसे सार्थक कर सकूं | 

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