जो दिया तुमने .......
-- शोभा जैन
पाया तुममें, सार्थक जीवन, आत्मचेतना,
गहन चिन्तन|
भीड़ से अलग खुद को, बौना पाया हर
दुःख को |
व्यथा ‘उसकी’ स्वयं जीकर, दिया उसका
स्वयं ‘मूल्य’
तुम्ही शिक्षक, तुम्ही प्रेरणा,साथी
तुम अतुल्य|
करुणा तुम, संवेदन तुम, ‘उन्मुक्त’
रहो वो ‘बंधन’ ‘तुम’
सोच में इत्मिनान तुम, खुद में एक
सायबान तुम,
छोड़ दुनियाँ से छाँव की उम्मीद,खुद
अपनी पहचान तुम |
मेरे अन्तस् की ‘धूप’ मेरी पूरी
दुनियाँ, मेरा गाँव ‘तुम’|
मेरे सृजन के शिखर ‘तुम’ मौन ‘मैं’
शब्द मुखर ‘तुम’
नेपथ्य में उजास ‘तुम’, मेरी धरती
मेरा आकाश ‘तुम’ |
मेरे प्रतिबिम्ब का आकार तुम,एक
अनोखा संसार ‘तुम’
तुम ही आलोक, मेरी देह, मेरा प्राण
तुम,
मैं ‘जीवंत’ मेरा ‘निर्वाण’ ‘तुम’|
इस बात को कितने संकोच से स्वीकार
करते हो,
बेपरवाह बाधाएं पार करते हो |
अब शेष नहीं कुछ भी,
जो टीस बने मन की|
ये शब्द आत्माभिव्यक्ति है ‘मेरे’
ह्रदय और मन की|
न कह सकूँ न रख सकूँ, है यही
‘निष्कर्ष’ अब,
जो दिया ‘तुमने’ बस उसे सार्थक कर
सकूं |
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