लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन
शनिवार, 18 फ़रवरी 2017
मैं दीवार से सर टकरा के उसे तोड़ तो नहीं सकता लेकिन सिर्फ़ इसलिए संतोष करके बैठ नहीं सकता कि वह दीवार पत्थर की है और मेरे पास ताक़त नहीं है. - दास्तेव्य्सकी (नोट्स फॉर्म द अंडरग्राउंड)
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