लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

सोमवार, 17 अप्रैल 2017

नीतिशतक में हमें यह जानने को मिलता है कि ‘इस जगत में निम्न (नीच) प्रकृति के लोग विघ्न-बाधाओं के भय से कोई कार्य आरम्भ ही नहीं करते हैं; मध्यम श्रेणी के लोग किसी कार्य को आरम्भ तो करते हैं, किन्तु विघ्न (या परेशानी) के आ जाने पर, वे उस कार्य को अधूरा ही छोड़ देते हैं; तथा श्रेष्ठ पुरुष बार-बार विघ्न के आने पर भी अपने कार्य को अधूरा छोड़ते नहीं; वे उसे पूर्ण (करके ही विश्राम ग्रहण) करते हैं |’
प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचै: प्रारभ्य विरमन्ति मध्या: |
विघ्नै: पुनः पुनरपि प्रतिहन्यमाना: प्रारब्धमुत्तमजना न परित्यजन्ति ||
|| भर्तृहरि, नीतिशतक २७||

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