नीतिशतक में हमें यह जानने को मिलता है कि ‘इस जगत में निम्न (नीच) प्रकृति के लोग विघ्न-बाधाओं के भय से कोई कार्य आरम्भ ही नहीं करते हैं; मध्यम श्रेणी के लोग किसी कार्य को आरम्भ तो करते हैं, किन्तु विघ्न (या परेशानी) के आ जाने पर, वे उस कार्य को अधूरा ही छोड़ देते हैं; तथा श्रेष्ठ पुरुष बार-बार विघ्न के आने पर भी अपने कार्य को अधूरा छोड़ते नहीं; वे उसे पूर्ण (करके ही विश्राम ग्रहण) करते हैं |’
प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचै: प्रारभ्य विरमन्ति मध्या: |
विघ्नै: पुनः पुनरपि प्रतिहन्यमाना: प्रारब्धमुत्तमजना न परित्यजन्ति ||
|| भर्तृहरि, नीतिशतक २७||
प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचै: प्रारभ्य विरमन्ति मध्या: |
विघ्नै: पुनः पुनरपि प्रतिहन्यमाना: प्रारब्धमुत्तमजना न परित्यजन्ति ||
|| भर्तृहरि, नीतिशतक २७||
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