लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन
सोमवार, 5 जून 2017
हमारे दादाजी ने नदी में पानी देखा/ पिताजी ने कुए में/ हमने नल में देखा / बच्चों ने बोतल में / अब उनके बच्चे कहाँ देखेंगे....???? सवाल चिंतन का है। व्यर्थ बर्बाद न करें पानी ! जल ही जीवन इसे स्वच्छ एवं संचित करे
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