लोग कहते हैं कि बचपन के दिन बड़े सुख के दिन थे। कैसी अजीब बात है, अगर जीवन विकसित हो रहा है तो बुढ़ापे के दिन सबसे ज्यादा सुख के दिन होना चाहिए। बचपन के दिन क्यों? बचपन तो थी शुरुआत, बुढ़ापा है पूर्णता, तो दिन होने चाहिए सुख के बुढ़ापे के। अगर जीवन बड़ा है तो आनंद बढ़ना चाहिए। लेकिन हम सारे लोग तो गीत गाते हैं बचपन के कि बड़े खुशी के दिन थे। और हमारे कवि-कविताएं लिखते हैं कि बड़े सुख थे बचपन में।
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