हम 'जरूरतों' से अधिक इच्छाओं में जीते है और सबसे अधिक दुखी भी 'इच्छाओं' की वजह से होते है| इस स्रष्टि में ऐसे इंसान बिरले ही होते है जिनकी जरूरतें बहुत सिमित होती है औरसुविधाओं के होने के बावजूद वह अपनी महज सिमित जरूरतों में सदैव संतुष्ट रहते है यही संतुष्टि उनकी स्थाई ख़ुशी का कारण बन जाती है |संक्षेप में--- सुख सुविधाये होने के बावजूद उनका उपभोग न करके स्वयं को संतुष्ट रखना एक बहुत बड़ी उपलब्धि होने के साथ किसी के उत्कृष्ट व्यक्तित्व होने का परिचायक भी है इसे थोडा गहराई से समझे 'इच्छा' और 'जरूरतों' के फर्क को समझना बेहद आवश्यक है | ---शोभा जैन
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