लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन
गुरुवार, 19 अप्रैल 2018
स्त्री का आत्सम्मान क्या है प्रश्न का उत्तर स्वयं स्त्री को खोजना चाहिये अक्सर अपने 'ईगो' को आत्मसम्मान समझने लगती है, स्त्री के आत्मसम्मान में कई रिश्तों की भागीदारी होती है वह कभी भी उसे अकेले हासिल नहीं कर सकती जैसे पिता,पति,पुत्र |-शोभा जैन
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