लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

रविवार, 6 मई 2018

कोई भी कालखंड अपनी संवेदनशीलता अगले कालखंड मे नहीं पहुंचाता। वह बस अपनी संवेदना की बौद्धिकता को वहाँ पहुंचाता है। संवेदना के माध्यम से हम हम रहते हैं जबकि बौद्धिकता हमें कोई और बनाती है। बौद्धिकता हमें बिखेरती है और यह इसीलिए है कि जो हमें बिखेरता है, वही हमारे बाद बचता है। हर युग अपने उत्तराधिकारी को वह देता है जो उसके पास नहीं था।

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