लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

गुरुवार, 10 दिसंबर 2015

आलेख ---
जीवन में कुछ रिश्ते बिना authenticity के पूर्ण होते हैं उनके लिए किसी designation की आवश्यकता नहीं होती वे जीवित रहते ही आपसी समझ,एक दूसरे के प्रति प्रगाढ़ विश्वास और वैचारिक समानता पर.......... अक्सर इन रिश्तों को सामाजिक दृष्टि से सकारात्मकता के साथ समझना मुश्किल होता हैं पर बिना रिश्तों का बना रिश्ता किसी बंधन में नहीं 'स्वतंत्र बंधन' में बंधा कहने का अर्थ जहाँ स्वतंत्रता नहीं वहां बंधना मुश्किल होता हैं। इसलिए जीवन में कभी कभी कुछ लोग बिना रिश्ते के मिलते हैं और रिश्तों की परिभाषा बन जाते हैं......... . ऐसे लोग अगर आपके जीवन में हैं तो उन्हें पहचाने सहेज कर रखे ये वक़्त बेवक़्त के सबसे अच्छे और मजबूत साथी होते हैं चूँकि इनके साथ आपकी कोई ऑथेन्टिसिटी नहीं जुडी होती इसलिए इनके द्वारा दी जाने वाली सलाह और सहयोग पूर्ण निश्छलता और निः स्वार्थ भाव से होता हैं उसमे सिर्फ एक दूसरे की ख़ुशी का भाव होता हैं और वो जिम्मेदारी जो मिली नहीं हैं पर निभाना मन को सुकून देता हैं कभी- कभी ये एक मिसाल भी बन जाते हैं और वास्तविक रिश्तों का आकार और स्वरुप भी ले लेते हैं। पर इसका अर्थ ये कदापि नहीं की जिनके साथ आपका रिश्ता वास्तव में हैं[पति -पत्नी/बच्चे/भाई -बहन/माता -पिता, रिश्तेदार उनसे दूरियाँ बना ले या उन्हें अपने जीवन से बाहर कर दे। ये चुनाव आपको करना हैं ये रिश्ता इन सब ईश्वर द्वारा प्रदत्त रिश्तों के बीच कौन सी भूमिका निभाएगा और कितनी। संतुलन का होना आवश्यक हैं कुछ लोग अधिकार लेकर साथ रहते हैं कुछ बिना अधिकारों के...... अक्सर जिनके पास अधिकार होते हैं योग्यता का अभाव होता हैं कभी कभी रिश्ते उसी तर्ज पर बन जाते हैं जिनमे योग्यता होती हैं पर अधिकार होता हैं। कोई भी इंसान अकेला नहीं रह सकता परिवार की भीड़ होने का अर्थ ये भी नहीं की परिवार आपके साथ हैं उस वक़्त के संघर्ष में कुछ ऐसे लोग आपके जीवन में या संपर्क में आ जाते हैं जो आपको अपने परिवार के तरह प्रतीत होते हैं लकिन भीड़ की तरह नही बल्कि भीड़ का नेतृत्व करते हैं और आपको अपने जीवन से जुडी समस्या से बहार लाते हैं ये सब एक दो दिन में नहीं होता समय के साथ एक दूसरी की समझ जितनी गहरी और परिपक्व होती हैं उतना सहज आप एक दूसरे के साथ हो जाते हैं। जो कभी -कभी हम अपनों के साथ भी नहीं हो पाते क्योकि उनसे अपेक्षित समझ का निराशाजनक परिणाम न सिर्फ आपको डिमोटीवेट करता हैं बल्कि कभी- कभी उनके प्रति नकारात्मक भी बना देता हैं जिससे आपसी मतभेद जन्म ले लेते हैं फिर संबंध विच्छेद या फिर पारिवारिक मतभेद शुरू होने लगते हैं सही गलत के आरोप प्रत्यारोप में ही समय बीतता जाता हैं कोई सिर्फ एक दूसरे का साथ पाने के लिए खुद को छोटा या उदार बनाने के लिए पहल करता ही नहीं। सबके आड़े उसका अभिमान आ जाता हैं। स्त्री के आड़े उसका परिवार, पुरुष के आड़े उसका मेन ईगो इसलिए कहानी सुधरने के बजाय अक्सर बिगड़ती हैं जब आप अपनी बात किसी से नहीं कह पाते हैं तो बहुत ज्यादा हारा हुआ और अकेला महसूस करते हैं आप चाहते हैं की कोई आपको सुने, समझे। आपके निर्णयों को सही कहे बिना किसी विरोधाभास के। पर अक्सर ऐसा हो नहीं पाता और फिर तलाश शुरू होती हैं जो पूरी होती हैं बेनाम रिश्तों पर जो वाकई में कभी -कभी मिसाल भी बन जाते हैं फिर वो दोस्ती का ही क्यों न हो या फिर उससे ऊपर । पर एक पुरुष के लिए शायद ये थोड़ा सरल कार्य हो पर स्त्री के लिए ऐसे रिश्तों को स्वीकारा नहीं जाता विवाहोपरांत एक पुरुष के साथ मित्रता स्त्री के लिए अक्सर प्रश्न चिन्ह बन जाती हैं भले ही उसका पति सिर्फ नाम का हो गैर जिम्मेदार पर authenticity रहती हैं उसके पास ठीक वैसे ही पत्नी भी सिर्फ नाम की नहीं अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी समझे । इसलिए जीवन में रिश्तों की भीड़ का होना आवश्यक नहीं हैं पर जो रिश्ते हैं उनमे जीवन का होना आवश्यक हैं अन्यथा बिना रिश्तों के निभाए जाने वाले स्वतंत्र बंधन अक्सर रिश्तों से बेहतर परिणाम दे जाते हैं। 

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