स्वतंत्रता का अर्थ -
सिर्फ आजादी रह गया हैं या हम पूर्ण शिक्षित हैं अपनी वास्तविक स्वतंत्रता से। अभी बहुत दूर न जाय तो अपने स्वयं के घर परिवार में ही शोषण और अपराधों का शिकार हैं जिनके विरोध में आवाज उठाने की स्वतंत्रता नहीं हैं हमें आज भी। .उदाहरणों की कोई कमी नहीं । अब हम अंग्रेजो के गुलाम तो नहीं रहे पर अपने अधिकारों का पूर्ण तः सही इस्तेमाल करने जैसी स्थिति में भी नहीं हैं और गुलाम हैं हमारे अपनों के या हमे अधिकारों का संरक्षण देने वाली संस्थाओं या उन में उच्च पदो पर आसीन अधिकारीयों के। जिनके पास भरपूर अधिकार हैं एक आम इंसान को ड्राइव करने के.। लेकिन एक आम इंसान के पास न तो अधिकार हैं न उनकी शिक्षा देने वाली कोई सहज संस्था.। उन्हें जानने के लिए भी उससे कई ऎसे रास्तों से होकर गुजरना पड़ेगा की वो आधे रास्ते में ही हार मान लेगा ये सोच कर की क्या करूँगा, चलो छोड़ो इस माथापच्ची को, अपने अधिकारों का ज्ञान लेकर भी सभी तो शोषित हैं.। सब संरक्षण अधिकारियों के जी हजुरी के मुताबित ही चलता हैं कौन सुनेगा, किसको सुनाये , दरअसल हमारे यहाँ की नियम और कानून व्यवस्था इतनी ज्यादा लचीली और औपचारिक हैंकि एक आम इन्सांन को वास्तविक नियमों का बोध होते होते उन तक पहुँचते पहुँचते ही वह दम तोड़ देता हैं एक छोटा सा उदाहरण से और स्पष्ट हो जाएगी क्या आप जानते हैं ट्रैफिक पुलिस का वास्तविक काम क्या हैं शायद हमें नियमों को तोड़ने से रोकना या समझाइश देना, उनके पालन हो इस और ध्यान देना। जो चालान आप कभी ट्रैफिक नियम उल्लंघनों के तहत भरते हैं उन्हें वो लेने का वास्तविक अधिकार हैं भी या नहीं,कहने का तात्पर्य अगर हमारा ट्रैफिक नियम को तोडना गलत हैं तो उनका चालान बनानां कितना तक सही हैं मैं नहीं जानती ये कितना सच हैं वास्तव में नियम क्या हैं लेकिन अगर आपने कभी ट्रैफिक नियमों के चलते चालान भरा हैं तो इसकी जानकारी अवश्य निकाले इस दंड को भोगने की वास्तविक प्रक्रिया क्या हैं.। दंड देने का अधिकार मेरे विचार में न्यायधीश या जज महोदय को होना चाहिए कितना और कैसे और कब देना हैं ये समस्त अधिकार हमारे आदरणीय न्यायधीश महोदय के पास होते हैं। बिना किसीलिखित कार्यवाही या कोर्ट के आदेश के किसी भी अधिकारी को न तो दंड देने का अधिकार होना चाहिए न इंसान को भुगतने की विवशता। जब तक कानून उसे साबित कर अपना न्याय न सुना दे की आपको चालान भरना हैं या नहीं तब तक रुकना सही होगा बजाय उसी वक़्त अपने पर्स से पैसे निकल कर देने के। थोड़ा हास्यप्रद लगेगा की चालान भरने के लिए कोर्ट के नोटिस का इंतजार करना पर इस हास्य में कहीं कहीं थोड़ी सत्यता हमारे अधिकारों और उनके हनन सम्बन्धी भी हैं जिसे समझना सभी को चाहिए मेरे कहने का अर्थ ये कदापि नहीं हैं की आपका चालान गलत बनता हैं और ये प्रक्रिया गलत हैं पर ये जानना सही होगा की क्या सही हैं और कितना सही हैं। और आप स्वयं भी अगर एक स्वतंत्र भारत में शिक्षित वर्ग होने की पहचान रखते हैं तो इसे पूरी तरह समझने का अधिकार आपको हैं इस तरह के और भी कई उदाहरण हैं जहाँ हम पैसे देकर समय बचा लेते हैं लकिन वास्तव में हम स्वयं अपने अधिकारों को जानना ही नहीं चाहते कब कौन सा अधिकार किस तरह से लागू किया जाता हैं ।एक आम आदमी के लिए बस यही एक तकनिकी ज्ञान हमारी वास्तविक स्वतंत्रता हैं। आपको अपने नियम और कानून व्यवस्था की पूर्ण और सही जानकारी होनी चाहिए और उनका सही वक़्त पर उपयोग करने की स्वतंत्रता ही वास्तविक स्वतंत्रता हैं स्वतंत्रता का अर्थ ही अपने अधिकारों का न सिर्फ ज्ञान होना बल्कि उनका सही वक़्त पर सही उपयोग करना भी होता हैं
सिर्फ आजादी रह गया हैं या हम पूर्ण शिक्षित हैं अपनी वास्तविक स्वतंत्रता से। अभी बहुत दूर न जाय तो अपने स्वयं के घर परिवार में ही शोषण और अपराधों का शिकार हैं जिनके विरोध में आवाज उठाने की स्वतंत्रता नहीं हैं हमें आज भी। .उदाहरणों की कोई कमी नहीं । अब हम अंग्रेजो के गुलाम तो नहीं रहे पर अपने अधिकारों का पूर्ण तः सही इस्तेमाल करने जैसी स्थिति में भी नहीं हैं और गुलाम हैं हमारे अपनों के या हमे अधिकारों का संरक्षण देने वाली संस्थाओं या उन में उच्च पदो पर आसीन अधिकारीयों के। जिनके पास भरपूर अधिकार हैं एक आम इंसान को ड्राइव करने के.। लेकिन एक आम इंसान के पास न तो अधिकार हैं न उनकी शिक्षा देने वाली कोई सहज संस्था.। उन्हें जानने के लिए भी उससे कई ऎसे रास्तों से होकर गुजरना पड़ेगा की वो आधे रास्ते में ही हार मान लेगा ये सोच कर की क्या करूँगा, चलो छोड़ो इस माथापच्ची को, अपने अधिकारों का ज्ञान लेकर भी सभी तो शोषित हैं.। सब संरक्षण अधिकारियों के जी हजुरी के मुताबित ही चलता हैं कौन सुनेगा, किसको सुनाये , दरअसल हमारे यहाँ की नियम और कानून व्यवस्था इतनी ज्यादा लचीली और औपचारिक हैंकि एक आम इन्सांन को वास्तविक नियमों का बोध होते होते उन तक पहुँचते पहुँचते ही वह दम तोड़ देता हैं एक छोटा सा उदाहरण से और स्पष्ट हो जाएगी क्या आप जानते हैं ट्रैफिक पुलिस का वास्तविक काम क्या हैं शायद हमें नियमों को तोड़ने से रोकना या समझाइश देना, उनके पालन हो इस और ध्यान देना। जो चालान आप कभी ट्रैफिक नियम उल्लंघनों के तहत भरते हैं उन्हें वो लेने का वास्तविक अधिकार हैं भी या नहीं,कहने का तात्पर्य अगर हमारा ट्रैफिक नियम को तोडना गलत हैं तो उनका चालान बनानां कितना तक सही हैं मैं नहीं जानती ये कितना सच हैं वास्तव में नियम क्या हैं लेकिन अगर आपने कभी ट्रैफिक नियमों के चलते चालान भरा हैं तो इसकी जानकारी अवश्य निकाले इस दंड को भोगने की वास्तविक प्रक्रिया क्या हैं.। दंड देने का अधिकार मेरे विचार में न्यायधीश या जज महोदय को होना चाहिए कितना और कैसे और कब देना हैं ये समस्त अधिकार हमारे आदरणीय न्यायधीश महोदय के पास होते हैं। बिना किसीलिखित कार्यवाही या कोर्ट के आदेश के किसी भी अधिकारी को न तो दंड देने का अधिकार होना चाहिए न इंसान को भुगतने की विवशता। जब तक कानून उसे साबित कर अपना न्याय न सुना दे की आपको चालान भरना हैं या नहीं तब तक रुकना सही होगा बजाय उसी वक़्त अपने पर्स से पैसे निकल कर देने के। थोड़ा हास्यप्रद लगेगा की चालान भरने के लिए कोर्ट के नोटिस का इंतजार करना पर इस हास्य में कहीं कहीं थोड़ी सत्यता हमारे अधिकारों और उनके हनन सम्बन्धी भी हैं जिसे समझना सभी को चाहिए मेरे कहने का अर्थ ये कदापि नहीं हैं की आपका चालान गलत बनता हैं और ये प्रक्रिया गलत हैं पर ये जानना सही होगा की क्या सही हैं और कितना सही हैं। और आप स्वयं भी अगर एक स्वतंत्र भारत में शिक्षित वर्ग होने की पहचान रखते हैं तो इसे पूरी तरह समझने का अधिकार आपको हैं इस तरह के और भी कई उदाहरण हैं जहाँ हम पैसे देकर समय बचा लेते हैं लकिन वास्तव में हम स्वयं अपने अधिकारों को जानना ही नहीं चाहते कब कौन सा अधिकार किस तरह से लागू किया जाता हैं ।एक आम आदमी के लिए बस यही एक तकनिकी ज्ञान हमारी वास्तविक स्वतंत्रता हैं। आपको अपने नियम और कानून व्यवस्था की पूर्ण और सही जानकारी होनी चाहिए और उनका सही वक़्त पर उपयोग करने की स्वतंत्रता ही वास्तविक स्वतंत्रता हैं स्वतंत्रता का अर्थ ही अपने अधिकारों का न सिर्फ ज्ञान होना बल्कि उनका सही वक़्त पर सही उपयोग करना भी होता हैं
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