लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2015

हम जो और जैसा सोचते हैं जिसके भी विषय में वास्तु या व्यक्ति हमारी सोच उसी दिशा में गतिशील प्रतीत होती हैं कभी कभी हमारी सोच उस बात के प्रति आस्था का रूप भी धारण कर लेती हैं फिर तथ्यों की वास्तविकता और महत्व फीके पढ़ जाते हैं सत्य तो ये हैं की किसी व्यक्ति के लिए अगर आपको सोच बेहद नकारात्मक बानी हुई हैं और इत्तफाक से उससे जुड़ा कोई काम आपको हानि पहुँचाता हैं या फिर मानसिक क्षति तो आपका पूरा ध्यान उसी पर जायेगा की शायद उसी ने किया होगा या यही हुआ होगा आपकी उसके प्रति सोच वास्तविकता का रूप लेने लगती हैं. आधुनिकीकरण के इस दौर में वर्तमान समय तथ्य – आधारित है परंतु यह भी सत्य है कि आस्था और तथ्य दो अलग – अलग बातें हैं. विज्ञान की भाषा में प्रकृति का आधार ऊर्जा है तो आस्था का आधार भाव है. भारतीय चिंतन के अनुसार व्यक्ति जिस भाव से भगवान के प्रति अपनी आस्था प्रकट करता है, उसी अनुरूप उसे भगवान का सान्निध्य मिलता है। सोच हमारे क्रियान्वयन को गति देती हैं अच्छी सोच उसे सकारात्मक बना देती हैं फिर तथ्य भी आपको अपने पक्ष में ही प्रतीत होते क्योकि आप उसके प्रति पॉजिटिव ऊर्जा लिए हो कहने का तात्पर्य हमारे कार्यों पर हमारी सोच अक्सर हावी रहती हैं इसलिए सोच में गहरा चिंतन होना अत्यंत आवश्यक हैं परिस्थितियां अच्छी या बुरी नहीं होती हमारा नजरियां उन्हें अच्छा या बुरा प्रतीत करता हैं जो हमारे पक्ष में नहीं वो बुरा जो पक्ष में वो अच्छा। जबकि उससे ऊपर भी कुछ हैं उस गणित को समझ लिया तो आप स्वयं को हर परिस्थिति के लिए तैयार पाएंगे। अपनी सोच में चिंतन प्रवृत्ति लाये जैसा आप चाहते हैं हमेशा वैसा नहीं हो सकता इसलिए कभी- कभी उस पहलु की कल्पना भी करे जो आप नहीं देखना चाहते। लेकिन अगर हो जाय तो पूरी तैयारी से आप उसका स्वागत करें क्योकि जब अच्छा हमेशा के लिए नहीं रहता तो बुरा भी स्थाई नहीं फिर उस कुछ समय के मेहमान के लिए पूरा जीवन क्यों निराशा और दुखी बना देना जबकि समय- समय पर होने वाले परिवर्तन ही आपके संतुलन का परीक्षण करता हैं जिनमे आपकी समझ और परिपक्वता का परीक्षण होता हैं इसलिए अपनी सोच को सकारात्मक आस्था का पर्याय बनाकर उस बात के लिए भी चिंतन रखे जिसे आप कभी नहीं देखना चाहते या जो आपके पक्ष की नहीं अक्सर हम उन्ही बातों के विषय में सोचते हैं जो हम चाहते हैं अगर आप दोनों ही चीजों के लिए तैयार हैं तो फिर जीवन में अच्छे और बुरे समय के प्रकोप, अकस्मात घटना से कभी विचलित या भ्रमित नहीं होंगे क्योकि आप पहले ही उसका चिंतन कर चुके थे।एक और बात अपना आत्मविश्लेषण समय समय पर करते रहना चाहिए स्वयं के साथ बातें करें अपने आप से भागे नहीं एक्सेप्ट करना सीखे। अपने द्वारा लिए गए निर्णयों में सही और गलत को खोजे और सुधारे और हर परिणाम के लिए पहले से तैयार रहे अपनी ऊर्जा का सदुपयोग होना बेहद जरुरी हैं बस यही सुनियोजित जीवन शैली और समझदारी भरा जीवन जीने का एक मार्ग हैं जिस पर चलना बहुत कठिन नहीं हैं बेहद सरल हैं उतना ही जितना अच्छे समय को आसानी से जीना। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें