लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2015

सबसे आसान हैं भावनात्मक होना किसी भी गलत काम को करने या ढाकने का सबसे सरल जरिया भावनाए हैं अक्सर भावनाओं का दुरूपयोग ही होता आया हैं जब जब वो हावी हुई हैं समझ दरकिनार हो गयी भावनाओं से भी कही ऊपर एक सबसे अहम् बात हैं वो हैं 'अनुभव' और अच्छे और बुरे अनुभवों का लाभ उठा कर उनसे प्रेरित होकर उठाये गए हर कदम जीवन को बहुत वजनदार और बेहद सफल और आत्मविश्वासी बना सकते हैं दुनियाँ का कोई भी रिश्ता सिर्फ भावनाओं पर नहीं चल सकता भावनात्मकता के साथ सबसे अहम समझदारी का होना आवशयक हैं हर उम्र में अलग -अलग भावना और अनुभव होते हैं हर परिस्थिति में भावनायें स्वतः ही विधमान होती हैं हमारी उम्र, अनुभव और भावनाओं के साथ साथ अगर समझदारी में भी पर्याप्त इजाफ़ा हो जाय तो दुनियाँ के किसी भी रिश्ते को निभाना और निभाने के योग्य बन पाना आसान होगा.. भावनायें हमारे लिए महत्वपूर्ण जरूर हैं पर यथार्थ से परे नहीं हो सकती न ही उनसे ऊपर इसलिए भावनाए भी तब तक पुरती हैं जब वो पूर्णतः वास्तविकता और समझ के साथ अभिव्यक्त की जाय 'अति भावुकता' सदैव नुकसान दायक ही रहती हैं किसी भी पहलु की वास्तविकता और समझदारी से लिया गया निर्णय कभी किसी भी प्रकार की क्षति नहीं पंहुचा सकता जो रिश्ता फलों के सामान कठोरता की उपरी परत से बना होता हैं निश्चित ही उसके भीतर भावना की नर्माहट और मिठास स्वतः ही मौजूद होती हैं लकिन जिस रिश्ते में ऊपर से जरुरत से ज्यादा भावनाए और अभिव्यक्ति की नर्माहट होगी वो जीवन की एक छोटे से कठोर झरोखे से ही टूट जायेगा इसलिए रिश्तो की परत यथार्थता के साथ अनुभवों की गहरी समझ की कठोर परत से बनायीं जाय जिसके भीतर गहरी भावनायें छिपी हो ...एक फिलॉसफर ने लिखा हैं ----१-पहले जो जरुरी हैं वो करे, 2-फिर जो आवशयक हैं वो करे, ३-उसके बाद आप वो कर जायेगे जो असंभव सा लगता हैं लेकिन भावनाओ को सर्वोपरि मानने वाला तीसरे नम्बर से अक्सर शुरुआत करता हैं जस्बाती होकर सिर्फ सेलाब ही उठाये जा सकते हैं अपनी समझ को हमेशा सबसे उपर रखे जीवन की हर परिस्थिति में...अक्सर भावनात्मक होकर बनाये रिश्तों से कही जयादा बेहतरीन जीवन वो रिश्ते जीते हैं जो आपसी समझ-[mutual understanding ], समान वैचारिक द्रष्टिकोण, सोचने का तरीका, और अनुशासित जीवन शैली से जिए जाते हैं उसके बाद उनमे भावनाये अपनी पैठ स्वतः ही बना लेती हैं जहाँ ये तीन चीजे हैं वहां शायद कोई रिश्ता न भी हो तो भी उस रिश्ते में बहुत बेहतर जीवन जिया जा सकता हैं ..

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