लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2015

माँ कभी बूढी नहीं होती ……
माँ तू कैसे समझ जाती हैं मेरी तन्हाइयों को
बहुत याद आती हैं तेरी इन निराशा भरे पलों में
तू कितनी हरी भरी रहती हैं 
जीवन के हर मौसम में हर क्षण में
क्योकि- माँ कभी बूढी नहीं होती
तू बात करने से कैसे समझ जाती हैं
की मैं ठीक नहीं हूँ, जी रही परेशानियों में
तू पहला सवाल ही ये पूछती हैं
मेने खाना खाया की नहीं,
आज भी उसी सहजता से, उसी चिंता से,
जब में 33 की हो चली हूँ तू 60 की
तुझे मेरी फिक्र वैसी ही हैं जैसी जन्मते वक़्त थी
तू कभी थकती नहीं, तेरे काम का कोई छोह ही नहीं
तू कभी बूढी नहीं होती माँ
जब भी तेरा फ़ोन आता मेरी आँखे भर आती
मुझे लगा फिर से तुझे पता चला, की में ठीक नहीं हूँ। …
कहाँ से लाती हैं तू इतनी ऊर्जा जो हम सबको देती हैं
फिर भी तुझमे बढ़ती ही जाती हर दिन हर पल में
मेरी निराशा ने मुझे कमजोर बना दिया हैं
पर एक तू हैं जो हर दिन मजबूत होती
क्योकि माँ कभी बूढी नहीं होती
क्यों माँ नहीं थकती कभी बच्चो के काम से
जैसे नहीं थकती 'धूप' कभी जीवन के नाम से 

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