परिवर्तन को न सिर्फ पहचाने बल्कि स्वीकार करे।
क्या हमने कभी हमारी बुनयादी दिक्कतों को समझने की कोशिश की हैं आधुनिक समाज में हम वास्तविक खुशियों से दूर होते जा रहे हैं। आधुनिकता का सही मतलब हम नहीं समझते हैं। जीवन के लिए क्या और कितना जरूरी है। क्या गैर-जरूरी है। आंख मूंद कर, तर्क किए बगैर हम चीजों का अनुसरण करने लग जाते हैं। जीवन का लुत्फ उठाना और पीड़ा की उपेक्षा करना ही केवल मनुष्य को प्रेरित नहीं करती है।हमारे दिमाग मैं उठने वाले विचार ही हमारी जीवन शैली निर्धारित कर देते हैं और हमारे सोचने का नजरिया काफी हद तक हमारे आस पास के वातावरण व्यवहार पर निर्भर करता हैं हमारे जीवन मैं दो तरह की परिस्थितिया होती हैं पहली वो जब हम हमारे पूर्व निर्धारित मूल्यों सिद्धांतो और नियमो के आधार पर जीवन जीते हैं ऐसे लोगो पर परिस्थितियों के अकस्मात परिवर्तन का विशेष असर देखने को नहीं मिलता न सकारात्मक न नकारात्मक उन्हें ऐसा प्रतीत होता हैं जेसे उन्हें पहले से सब पता था पर दुसरे किस्म के जिन्दगी जीने वाले व्यक्ति समय और परिस्थितियों के बदलने से बहुत जल्दी प्रभावित हो जाते हैं उन्हें लगता हैं ये तो वो हो गया जो मेने कभी सोचा ही न था सकारात्मक और नकारात्मक दोनों द्रष्टि से आमतोर पर महिलाओ मैं ये समस्या ज्यादा होती हैं आचानक से हुए परिवर्तन को वो सहजता से स्वीकार नहीं कर पाती हैं यही उनके असंतोष घुटन और पीड़ा और दुःख का कारण बन जाता हैं अगर हम अपनी बुनियादी दिक्कतों और जीवन की छोटी छोटी कमियों को सहजता से स्वीकार कर ले तो हम महसूस करेंगे की हमारी जिन्दगी पहले से काफी बेहतर हो गयी हैं जीवन में समस्याए कभी पूरी तरह ख़त्म नहीं होती लेकिन जो समस्याए कम हो जाती हैं उसकी अनुभूति होना भी जरुरी हैं
क्या हमने कभी हमारी बुनयादी दिक्कतों को समझने की कोशिश की हैं आधुनिक समाज में हम वास्तविक खुशियों से दूर होते जा रहे हैं। आधुनिकता का सही मतलब हम नहीं समझते हैं। जीवन के लिए क्या और कितना जरूरी है। क्या गैर-जरूरी है। आंख मूंद कर, तर्क किए बगैर हम चीजों का अनुसरण करने लग जाते हैं। जीवन का लुत्फ उठाना और पीड़ा की उपेक्षा करना ही केवल मनुष्य को प्रेरित नहीं करती है।हमारे दिमाग मैं उठने वाले विचार ही हमारी जीवन शैली निर्धारित कर देते हैं और हमारे सोचने का नजरिया काफी हद तक हमारे आस पास के वातावरण व्यवहार पर निर्भर करता हैं हमारे जीवन मैं दो तरह की परिस्थितिया होती हैं पहली वो जब हम हमारे पूर्व निर्धारित मूल्यों सिद्धांतो और नियमो के आधार पर जीवन जीते हैं ऐसे लोगो पर परिस्थितियों के अकस्मात परिवर्तन का विशेष असर देखने को नहीं मिलता न सकारात्मक न नकारात्मक उन्हें ऐसा प्रतीत होता हैं जेसे उन्हें पहले से सब पता था पर दुसरे किस्म के जिन्दगी जीने वाले व्यक्ति समय और परिस्थितियों के बदलने से बहुत जल्दी प्रभावित हो जाते हैं उन्हें लगता हैं ये तो वो हो गया जो मेने कभी सोचा ही न था सकारात्मक और नकारात्मक दोनों द्रष्टि से आमतोर पर महिलाओ मैं ये समस्या ज्यादा होती हैं आचानक से हुए परिवर्तन को वो सहजता से स्वीकार नहीं कर पाती हैं यही उनके असंतोष घुटन और पीड़ा और दुःख का कारण बन जाता हैं अगर हम अपनी बुनियादी दिक्कतों और जीवन की छोटी छोटी कमियों को सहजता से स्वीकार कर ले तो हम महसूस करेंगे की हमारी जिन्दगी पहले से काफी बेहतर हो गयी हैं जीवन में समस्याए कभी पूरी तरह ख़त्म नहीं होती लेकिन जो समस्याए कम हो जाती हैं उसकी अनुभूति होना भी जरुरी हैं
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