लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2015

स्त्री ने जब कभी इतना बलिदान किया है, नितांत परवश होकर ही और यह परवशता प्रायः अर्थ से संबंध रखती रही है। जब तक स्त्री के सामने ऐसी समस्या नहीं आती, जिसमें उसे बिना कोई विशेष मार्ग स्वीकार किए जीवन असंभव दिखाई देने लगता है, तब तक वह अपनी मनुष्यता को जीवन की सबसे बहुमूल्य वस्तु के समान ही सुरक्षित रखती है। 

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