स्त्री ने जब कभी इतना बलिदान किया है, नितांत परवश होकर ही और यह परवशता प्रायः अर्थ से संबंध रखती रही है। जब तक स्त्री के सामने ऐसी समस्या नहीं आती, जिसमें उसे बिना कोई विशेष मार्ग स्वीकार किए जीवन असंभव दिखाई देने लगता है, तब तक वह अपनी मनुष्यता को जीवन की सबसे बहुमूल्य वस्तु के समान ही सुरक्षित रखती है।
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