लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

बुधवार, 9 दिसंबर 2015

- जीवन दो हिस्सों में बटा हैं 
एक किसी के पास वक़्त नहीं
किसी के पास वक़्त गुजरने वाला नहीं 
हर कोई अपनी अपनी लीलायें रचे जा रहा हैं 
पर राम बनना किसी की बस में नहीं 
रावण कोई बनना नहीं चाहता 
सब अपनी पसंद से अपने 
जीवन के किरदार निभाना चाहते हैं 
जो मिला हैं उसमें सब व्यर्थता खोजते हैं 
सब हैं अंदर से अकेले, बिलकुल अकेले 
फिर भी सबको आकर्षित करते सिर्फ़ दुनिया के झमेले 
सबके पास दुःख हैं सबके कारण भी अलग अलग 
पर इंतजार सिर्फ किसी चमत्कार का 
जो उनका जीवन सर्वसम्पन्न बना दे 
उनके अधूरेपन को पूर्णता दे दे 
जो छिपा हैं उनके अपने ही भीतर
किसी का भी दुःख छोटा या बड़ा नहीं 
दुःख तो सिर्फ़ दुःख होता हैं 
महत्वपूर्ण हर दुखद क्षण होता हैं 
महसूस करते हैं हम अपने- अपने द्रष्टिकोण से 
अपनी- अपनी समझ और अनुभवों से 
एक दिन किसी दूसरे के भीतर का दुःख झाँक कर देखो 
शायद अपना दुःख स्वतः ही कम लगने लगे 
इसे सिर्फ़ अनुभवों से ही नहीं
कभी- कभी समझदारी से भी 
महसूस किया जा सकता हैं

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