लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2015

हम अक्सर उन चीज़ो को ज्यादा गंभीरता से ले लेते हैं जो हैं जो हमारे पास नहीं होती। बजाय उनके जो हमारे पास होती भी हैं और बड़ी सहजता से हमें मिल भी जाती हैं.। भटकना शायद मनुष्य का ही स्वभाव बन गया हैं इसलिए उसके पास जो होता हैं उसे वो कभी- ख़ुशी इत्मीनान और संतुष्टि के साथ जी ही नहीं पाता या समय रहते उसकी क़द्र नहीं कर पाता हैं.। एक उदाहरण से समझ सकते हैं कहने का अर्थ क्या हैं - माँ का प्रेम,परिवार वालो का सपोर्ट ,पिता की केयर,भाई के साथ हसी मजाक, बहनों के साथ गुजरा वक़्त हम अपने घर में कभी इन लोगों से ये नहीं कहते की माँ तुम मुझे कितना प्यार करती हो,या क्यों करती हूँ,या गुस्से के समय में क्यों नहीं करती हो, पिता से कभी भावनात्मक होकर बात नहीं करते अपवाद को छोड़ दे तो.। क्योकि ये हमें बिना मांगे मिला हैं हम बाहरी रिश्तों में या हमारे द्वारा बनाये रिश्तों में इस प्रकार की अपेक्षाओं न सिर्फ गंभीरता से लेते हैं बल्कि पूरी गहराई से डूब जाते हैं पूरी न होने पर अवसाद में चले जाते हैं खुद को अकेला बना लेते हैं। हमारे पास जो हैं हमें वो दिखाई ही देता क्योकि उसे पाने के लिए न तो हमने कोई प्रयास किये न परिश्रम। पर जो मुफ्त में मिला उसकी कीमत हम जीवन भर नहीं समझ पाते फिर अकेला होने का डंका बजाते हैं डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं दुःखी रहते हैं.कहने का तात्पर्य अगर हम बिना मांगे मिले इस प्रेम की क़द्र करना सीख जायेगे तो जो बीज हमारे द्वारा बोये जाते हैं जो रिश्ते हमारे द्वारा बनाये जाते हैं उनके साथ शायद ऐसी परिस्थितियाँ ही न बने अगर बने भी तो उनसे उबरने के लिए हमारे पास संसाधन के रूप में पूरा परिवार हैं। इसलिए समय -समय पर परिवार वालो से भी अपनापन,प्रेम, एक्सप्रेस करे सिर्फ बाह्य प्रेम में ऐसा हो जरुरी नहीं। कभी -कभी समय की डिमांड होती हैं अपनों को भी अपनापन जाताना कहना की की हमें उनकी जरुरत हैं इससे पहले की कुछ ग़लतफहमियाँ एक दूसरे के प्रति करुणा स्नेह को दीमक की तरह खाना शुरू कर दे जो वास्तव में हमारे अंदर हैं पर हम कह नहीं पाते इसलिए अपने प्रेम को परिवार के साथ भी कभी कभी एक्सप्रेस करे ठीक उसी अंदाज में जैसे हम दूसरों को महत्व देकर करते हैं या उससे बेहतर भी । 

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