लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

बुधवार, 9 दिसंबर 2015


स्त्री की असंतुष्टि या (Inferiority complex) ........ 
एक औरत को संतुष्ट करना एक पुरुष के जीवन की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक हैं हो सकता हैं मेरी यह बात मेरे कुछ मित्रों को विरोधी प्रतित हो पर ये मेरा अपना व्यक्तिगत अनुभव रहा हैं स्त्री की अधीरता और जीवन से सदा असंतुष्ट रहना ही उसके पतन का कारण बन सकता हैं ऊंचाइयों को छूने की लालसा और कभी न ठहर पाने की प्रवृत्ति ने स्त्री को न सिर्फ उसके वजूद से बल्कि उसके अपने अस्तित्व से भी दूर कर दिया हैं अब वो अपनी एक अलग दुनियाँ रचने के लिए ललायित रहती हैं जीवन की थोड़ी सी कमी भी उसे निर्णय लेने के लिए विवश कर देती हैं वो समर्पण और वो और त्याग का भाव उसे गृहस्थ जीवन से स्वयं को अधूरा महसूस करवा रहा हैं शायद इसलिए अक्सर घर का प्रबंधन देखने वाली महिलाओं में बाहर नौकरी करने वाली या सेल्फ रहने वाली महिलाओं के प्रति एक आदर भाव मैने महसूस किया वो स्वयं को छोटा और सीमाओं में बंधा महसूस करने लगी हैं उनके लिए जॉब करना एक स्त्री के गर्व का विषय बन गया हैं उसके बिना औरत सिर्फ घरेलु समझकर खुद को हर दिन कुंठित कर रही हैं वो अपने घर के कार्यों के प्रति नीरसता दिखा रही हैं अति महत्वकांशी बन जो कुछ भी उनके पास हैं उसे भी धीरे धीरे खोती चली जा रही हैं सच तो ये हैं एक स्त्री सदा से ही एक पुरुष के बिना अधूरी हैं ईश्वर ने कुछ रचनाएँ कुछ विशेष कार्यों या सामर्थ के मुताबित की हैं उसके बाहर जाना थोड़े समय के लिए जरूर ख़ुशी देगा पर संतुष्टि उन्ही कार्यों से मिलेगी जिनके लिए वास्तव में आप बने हैं इसलिए दूसरों से अपनी तुलना न करें आपमें जो हैं उसे पहचाने उसी सर्वश्रेष्ठ बनाये हमारे देश में 75 प्रतिशत महिलायें नौकरी सिर्फ इसलिए कर रही हैं क्योकि घर की emi में पैसा कम न पड़ जाय बच्चो की शिक्षा और पति को आर्थिक सहयोग मिल जाय कहने का अर्थ नौकरी उनकी विवशता हैं ख़ुशी नहीं इसलिए वो सुबह ९ बजे घर से निकलती हैं रात आठ बजे घर आती हैं बॉस का प्रेशर काम का प्रेशर सुबह से शाम घर के बाहर गुजर जाती हैं इसलिए मेरा उन महिलाओं से अनुरोध हैं जो पूरी तरह सेआर्थिक रूप से पूरी तरह अपने पति पर आश्रित हैं और घर के कार्यों में अपनी जिम्मेदारी को पूरी निपुणता से निभा रही हैं उन्हें गर्व होना चाहिए ऐसे जीवन से जिसमे विवशता नहीं उन्हें बाहर की कोई फ़िक्र नहीं। वो अपने भीतर कॉम्प्लेक्स पैदा न करें उनके प्रति जो नौकरीशुदा हैं। ... ख़ुशी से किया गया कोई भी कार्य व्यवस्थापन का एक उदाहरण हैं आप खुश किस्मत हैं जो पैसा कमाने की विवशता और घर चलाने की चिंता से मुक्त हैं पति का सहयोग करना अच्छी बात हैं पर अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाकर। औरत का बाहर जाना गलत नहीं पर प्राथमिकता निर्धारित हो। या फिर अपनी आवश्यकताओं में कमी करके भी इस अस्तव्यस्तता को दूर किया जा सकता हैं सिर्फ नौकरी करना अंतिम विकल्प नहीं मैं रचनात्मकता की विरोधी नहीं हूँ औरत के सदा आगे बढ़ने के पक्ष में हूँ पर अपनी आधारभूत जिम्मेदारियों को छोड़कर कदम बढ़ाने से मुझे एतराज है पुरुष भी अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाएं अपने परिवार की सुरक्षा सम्मान और आर्थिकता को सर्वोपरी रखे और स्त्री उसके किये गए कार्य का प्रबंधन[ मैनेजमेंट ]. स्त्री का सृजन और सौंदर्य से गहरा सम्बन्ध हैं पर सृजन सर्वप्रथम उसके अपने जीवन में हो और सौंदर्य उसके भीतर हो यही बात शायद आज दाम्पत्य जीवन में कम देखने को मिल रही हैं जिसकी वजह से विवाहित में असंतुष्टि और हीन भावना का पोषण निरंतर हो रहा है। 
ये पूरा आर्टिकल मेरे अपने व्यक्तिगत विचारों से परिपूरित हैं इससे किसी की भावनाओं को आहात करना मेरा उद्देश्य बिलकुल भी नहीं अतः इसे पढ़कर परोक्ष रूप से किसी को कोई हृदयाघात पंहुचा हो तो कृपया क्षमा प्रार्थी हूँ। 

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