लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

बुधवार, 9 दिसंबर 2015

अधूरापन ज़रूरी है जीने के लिए …………

अधूरापन शब्द सुनते ही मन में एक negative thought आ जाती है. क्योंकि यह शब्द अपने आप में जीवन की किसी कमी को दर्शाता है. पर सोचिये कि अगर ये थोड़ी सी कमी जीवन में ना हो तो जीवन खत्म सा नहीं हो जायेगा?अगर आप ध्यान दीजिए तो आदमी को काम करने के लिए प्रेरित ही यह कमी करती है. कोई भी कदम, हम इस खालीपन को भरने की दिशा में ही उठाते हैं.मनुष्य के अंदर कुछ जन्मजात शक्तियां होती हैं जो उसे किसी भी नकारात्मक भाव से दूर जाने और available options में से best option चुनने के लिए प्रेरित करती हैं. कोई भी चीज़ जो life में असंतुलन लाती है , आदमी उसे संतुलन की दिशा में ले जाने की कोशिश करता है.
अगर कमी ना हो तो ज़रूरत नहीं होगी, ज़रूरत नहीं होगी तो आकर्षण नहीं होगा, और अगर आकर्षण नहीं होगा तो लक्ष्य भी नहीं होगा.अगर भूख ना लगे तो खाने की तरफ जाने का सवाल ही नहीं पैदा होता. इसलिए अपने जीवन की किसी भी कमी को negative ढंग से देखना सही नहीं है. असल बात तो ये है कि ये कमी या अधूरापन हमारे लिए एक प्रेरक का काम करता है.कमियां सबके जीवन में होती हैं बस उसके रूप और स्तर अलग -

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