लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

रविवार, 24 जनवरी 2016

लघु कहानी
लेखिका--- शोभा
'किशोर मन का प्रेम'


                  बात उन दिनों की हैं जब शुभांगी कक्षा ग्यारहवीं मैं पढ़ती थी । आयु ‘किशोरावस्था’ जिसे मनुष्य के जीवन का बसन्तकाल माना जाता हैं किशोरावस्था याने तीव्र शारीरिक भावनात्मक और व्यवहार सम्बन्धी परिवर्तनों का काल ।
शुभांगी भी अपने जीवन के उसी समय में जी रही थी जिसमे मानसिक शक्तियों का न सिर्फ़ विकास होता हैं बल्कि मन के भावों के विकास के साथ -साथ कल्पना का खूबसूरती के साथ जन्म होता हैं । शुभांगी भी अपने जीवन की उसी उम्र में जी रही थी जिसमे उसके मनोवेग में ऊँचे- ऊँचे आदर्श को अपनाने की सोच जन्म ले रही थी और भविष्य की रुपरेखा का एक सांचा भीतर ही भीतर तैयार हो रहा था। शुभांगी बचपन से ही प्रतिभाशाली लड़की थी उसका लिखने का शोक कब लेखन और साहित्य का रूप लेने लगा उसे स्वयं पता नहीं चला छोटी -छोटी कवितायेँ और निबंध लिखकर उन्ही में महानता हासिल करने की चेष्टा उसे इस और निरंतर प्रेरित करने लगी शुभांगी की किशोरावस्था उसे अब असाधारण काम करने के लिये प्रेरित करती उसकी कोशिश रहती की वो दूसरों का ध्यान विशेषकर विद्यालय में सबका ध्यान अपनी और आकर्षित कर सके चूकी ये उम्र मानसिक के साथ- साथ शारीरिक परिपक्वता की भी अवस्था होती हैं किशोर मन के भावोद्वेग बहुत तीव्र होते हैं। वह अपने प्रेम अथवा श्रद्धा की वस्तु के लिए सभी कुछ त्याग करने को तैयार हो जाता है। शुभांगी भी इस परिपक्वता के सहज परिणाम स्वरुप अपनी इस उम्र में उसी जीवन को जीने लगती हैं जेसा वो सोचती हैं । शुभांगी के जीवन का परिवर्तनकाल शुरू होता हैं जब उसी की कक्षा में एक नए शिक्षक ‘सर हुसैन’ का प्रवेश होता हैं जिनके प्रति जन्मे भावोद्वेग को शुभांगी रोक नहीं पाती ये महज़ एक इत्तफ़ाक ही था की वो शिक्षक भी साहित्य से बहुत गहराई से जुड़े थे एक शिक्षक होने के साथ- साथ वह एक प्रतिष्ठित लेखक भी थे और विद्यार्थियों के लिये पूर्णतः समर्पित एक समाजसेवी भी शायद इसलिए हजारों विद्यार्थी उन्हें अपना आदर्श भी मानते थे और गुरु भी । और उनकी इन्ही सब खूबियों ने शुभांगी का ध्यान पवन वेग की तरह निरंतर उनकी और उसे आकर्षित किया उसे अपनी तरह की रुचियाँ और पसंद उस शिक्षक में प्रतीत होने लगी बल्कि इस आवेग में उस शिक्षक की शारीरिक अक्षमता और अक्सर अस्वस्थ रहने की कमी भी शुभांगी के असहज प्रेम या किशोर मन के उस आकर्षण में आड़े नहीं आई । एक व्हील चेयर से चलने वाला ऊँचा पूरा गौरे रंग का 48 वर्षीय शिक्षक जो विकलांगता के साथ अनेक प्रकार की दूसरी शारीरिक समस्याओं से जूझ रहा था फिर भी उनके लेखन और साहित्य में जीवन के प्रति सकारात्मकता का सन्देश, गलत का प्रत्यक्ष विरोध और अपने अध्यापन कार्य में पूर्ण समर्पण शुभांगी को उनकी तरफ खिचता चला गया उनके विचारों और समझ की गहराई से शुभांगी को यह महसूस होने लगा जेसे वो शिक्षक सिर्फ उसी के लिये बने हैं वो जाने अनजाने उन पर अपना अधिकार जताने लगी ये भी इत्तफ़ाक ही था की शालेय साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के प्रभारी भी उन्हें ही बनाया गया चूकि शुभांगी इनमे सक्रीय होकर हिस्सा लेती थी हर प्रतियोगिता में उसकी सहभागिता सर्वोपरि थी जैसे वादविवाद प्रतियोगिता, निबंध लेखन,कविता भाषण इन सभी में वो हिस्सा लेती और विद्यालय का नाम रोशन करती लेकिन अब हिस्सा लेने के कुछ और कारण भी बन गए थे । शुभांगी का उनसे संपर्क न सिर्फ कक्षा में अध्ययन के दौरान होता बल्कि उसके बाद साहित्यिक गतिविधियों के सिलसिले में भी अब वो अक्सर उनके घर आया जाया करती उनका व्यक्तित्व भी निः संदेह बेहद प्रभावशाली था उनके पढ़ाने का तरीका समझाने का तरीका और कालखण्ड के दौरान विधार्थियों से उनके द्वारा की जाने वाली बातें,सवाल और उनके जवाब शुभांगी को बेहद आकर्षित करने लगे । उसे महसूस होता वो दुनियाँ के सबसे बुद्धिमान और कर्मशील,कर्मठ शिक्षक हैं उनकी हर बात उन्हें खास महसूस होती चूकि वो शिक्षक साहित्य से भी जुड़े हुए थे उनके आलेख आये दिन अखबारों में छपते थे शुभांगी भी साहित्य के प्रति रुझान रखती थी अब वो उन शिक्षक से बात करने के बहाने ढूंढने लगी विद्यालय में जिस भी कार्य का प्रभारी उन्हें बनाया जाता वो उसमे जरूर हिस्सा लेती इतना ही नहीं बल्कि अब वो उन पर कवितायेँ भी लिखने लगी थी । शिक्षक के व्यक्तित्व से उनके सहकर्मी भी प्रेरित और प्रभावित थे ।अपनी अस्वस्थता के दिनों में भी कभी न अवकाश लेने वाले वो विलक्षण शिक्षक बेहद कम समय में अधिकतर विधार्थियों के पसंदीदा शिक्षक बन गए थे इधर शुभांगी उनसे न सिर्फ प्रभावित थी बल्कि उनके प्रति आकर्षित होती चली गयी उसे स्वयं बोध नहीं था उसकी कल्पना किस दिशा में जा रही हैं बस वो इतना जानती थी उसे वो शिक्षक अत्यंत प्रिय हैं अब वो सिर्फ उन्ही के साथ समय व्यतीत करना चाहती थी इस कारण पढ़ाई से कही अधिक वो साहित्य की और अपना रुझान बढ़ाने लगी और इसी सिलसिले में उसे सर हुसैन के घर आने जाने का अक्सर अवसर मिल जाता । वो अपनी हर कविता या कहानी को सबस पहले उन्हें ही पढ़ाती चुकी वो विधालय की बहुत होनहार विद्यार्थी थी कई बार साहित्यिक क्षेत्र में अपने विधयालय का नाम राज्य स्तर तक रोशन कर चुकी थी पढ़ने में भी बहुत बुद्धिमान थी और उसकी इसी प्रतिभा को निखारने के लिए सर हुसैन ने भी शुभांगी का मार्गदर्शन किया ।समय -असमय उससे साहित्यिक विषयों पर चर्चा कर उसका ज्ञान बढ़ाते साथ ही उसकी कविताओं को स्थानीय अखबार में प्रकाशित भी करना शुरू कर दिया शुभांगी अपनी कविताओं को अख़बारों के पन्ने पर देख बेहद खुश हो गयी जेसे उसकी महान कल्पना साकार हो रही हो शिक्षक के इस प्रयास और मार्गदर्शन को वो बेहद व्यक्तिगत तौर पर महसूस करने लगी शुभांगी अब उनके घर के सदस्य जैसा हो गयी थी उस शिक्षक का घर उसका अपना घर हो गया था । उनकी पत्नी और बच्चो के साथ भी वो पूरी तरह से घुल मिल गयी थी अब उसे पूछकर उनके घर आने की आवश्यकता नहीं होती थी चुकी सर हुसैन के लिये कुछ भी नया नहीं था उनके घर अक्सर विधार्थियों का इसी तरह आना -जाना रहता था उनका घर भी एक विधायलय ही था और जिस तरह से वो शुभांगी का मार्गदर्शन कर रहे थे वेसे कई सेकड़ों विद्यार्थी उनके सानिध्य में आगे बढ़ अपना मार्ग प्रशस्त कर रहे थे ।लेकिन शुभांगी की मनोदशा किसी और दिशा में ही जा रही थी शुभांगी जो लेख लिखती उन्हें पढ़ाती जो परोक्ष रूप से उन्ही केंद्रित होते ।अब वो जीवन से जुड़े सवाल और जिंदगी जैसे विषयों पर वो कवितायेँ लिखकर उनके प्रतिउत्तर का इन्तजार करती इसी तरह वो ग्यारहवीं से बारहवीं में आ गयी इन दो वर्षो में उन शिक्षक का प्रभाव शुभांगी के मन में इस तरह जगह बना चूका था की वो प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी उस शिक्षक के प्रति जो आकर्षण था वो प्रेम में परिवर्तित हो चूका था लेकिन उम्र और ओहदे के डर से शुभांगी ने कभी अपने शिक्षक को ये बात जाहिर नहीं होने दी क्योकि उसे डर था की वो कहीं उससे नाराज न हो जाय या फिर उसे गलत लड़की न समझने लगे या फिर परिवार वालों को पता न चल जाय इसलिए उसने अपने इस एहसास को अपने तक ही रखा लेकिन उसकी कक्षा के कुछ मित्रों को उसके इस किशोरी मन में जन्मे प्रेम की महक का अंदाजा था उसके हावभाव और उस शिक्षक के विषय में कुछ भी गलत न सुन पाना पुरे दिन सिर्फ उन्ही के बारे में सोचना ही अब उसका काम रह गया था जिसे उसके सहपाठी मित्र समझने लगे थे । सर हुसैन थोड़े अस्वस्थ तो रहते ही थे एक बार कई दिनों तक उनका विद्यालय आना नहीं हुआ शुभांगी उदास रहने लगी उसकी सेहत और पढ़ाई दोनों पर उस शिक्षक की कमी झलकने लगी दो वर्षों में उसका किशोर मन पूरी तरह से उस शिक्षक के प्रति अपने प्रेम में परिपक्व हो चूका था जिसकी वजह से इतने लम्बे समय का उनका अवकाश उसके लिये असहनीय बन गया था वो न सिर्फ चिढ- चिढ़ी हो गयी बल्कि अब अपनी पढाई पर भी ध्यान नहीं देती चुपचाप एक कोने में बैठी रहती उसकी समस्या एक एसी समस्या थी जिसे वो किसी के साथ बाट भी नहीं सकती थी तबी एक दिन वो उस शिक्षक के घर जाती हैं तब उसे पता चलता हैं की उस शिक्षक की दोनों किडनियां ख़राब हो चुकी हैं वो कोमा में मुंबई में भर्ती हैं शुभांगी जेसे ही ये सुनती हैं उसे गहरा आघात पहुचता हैं एक तरह से वो सदमे में आ जाती हैं मन ही मन वो ये निश्चय भी कर लेती हैं की अगर सर को कुछ हो गया तो मैं भी जीवित नहीं रहूंगी । उसके परिवार के सदस्य उसकी इस मनोदशा से पूरी तरह से अनभिज्ञ थे उन्हें लगता की १२ की पढाई हैं शायद बोर्ड परीक्षा हैं इस वजह से परेशान होगी वो उसे एक आम बात समझकर छोड़ देते हैं लेकिन एक माह बाद अचानक शुभांगी के घर वही अखबार आता हैं जिसमे उसकी कवितायेँ छपती थी जिसकी शुरुआत उसी शिक्षक ने की थी उसी अखबार के प्रथम प्रष्ठ पर लिखा होता हैं हुसैन नहीं रहे .......’लम्बी बीमारी से जूझ रहे सर हुसैन का निधन’ । शुभांगी जेसे ही ये खबर पढ़ती हैं स्तब्ध रह जाती हैं उसके जीवन का ये वो गहरा दुःख जिसे वो किसी के सामने व्यक्त नहीं कर सकती थी न वो स्वयं को संभाल सकती न उसे कोई संभाल सकता इसलिए वो अपने आप को एक कमरे में बंद कर लेती हैं और आंसुओं से भरी लबालब आँखों से अपने हाथ की नस काट आत्म हत्या कर अपने किशोर मन के अपरिपक्व प्रेम के साथ हमेशा- हमेशा के लिये अपने जीवन के किशोर को विराम देना चाहती थी की तभी दरवाजे पर खट-खट होती हैं और उसकी क्लास के एक सहपाठी की आवाज आती हैं .शुभांगी ....चार दिन पहले यह चिठ्ठी मुझे सर हुसैन ने तुम्हे देने को कहा था ..शुभांगी ने चिठ्ठी पढ़ी जिसमें उन्होंने लिखा था --- ‘’शुभांगी तुम मुझे शुरू से प्रिय हो,मेरी कोई छोटी बहन नहीं थी,मैं तुम्हे ही अपनी बहन के रूप में देखता था ...मेरी हालत अब एसी नहीं हैं की मैं ज्यादा दिन जी सकूं मेरी प्रार्थना हैं की मेरे बाद भी मेरे घर आती रहना और अपने इस भैया को याद करना .....शुभांगी का मारे दुःख के बुरा हाल था आँखों से पछतावे और प्रेम की धाराए बह रही थी ।

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