लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन
बहुत ही खूबसूरत कहानी शोभाजी बिलकुल किशोर मन की तरह आपने उस उम्र की वास्तविकता पूरी गहराई से रच दी.समावर्तन में प्रकाशन के लिए ढेर सारी शुभकामनायें आगे भी आप अपने लेखन के माध्यम से हर उम्र को प्रेरित और सशक्त करती रहे।
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