लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

मंगलवार, 19 जनवरी 2016


कचरे में धूँढते नन्हे हाथ किस्मत के टुकड़े
खो गया कमाई में पत्थर घिसने वाला छोटे
किसी तिराहे चौराहे पर बनाता सिलता सबके टूटे चप्पल जूते।
दीवार की ओट से खड़ी वो उदासी
है बेबस, है लाचार इन मासूमों की मायूसी
दिनरात की मजदूरी है मजबूरी
फिर भी है भूखा वह, भूखे माँ-बाप और बहन उसकी।
कुछ ऐसा था आलम उस पुताई वाले का
पोतता था घर भूख से बिलखता।
कुछ माँगने पर फूफा से मिलती थी मार लताड़।
इसी तरह बेबस शोषित हो रहे हैं
कितने ही बच्चे बार-बार।
न इनकी चीखें सुन रहा, न नम आँखें देख रहा
वक्त, समाज, सरकार!!!
होना था छात्र, होता बस्ता हाथ में,
इनका बचपन भी खेलता,
साथियों व खिलौनों के साथ में।
पर जकड़ा !!
गरीबी,मजदूरी,भुखमरी और बेबसी ने इनके बचपन को!
शर्मिंदा कर रही इनकी मासूमियत समाज की मानवता को।
दी सरकार ने...
जो स्कूलों में निशुल्क भोजन पढाई की व्यवस्था
पेट भरते है उससे अधिकारि ही ज्यादा।
फिर क्या मिला ?
इन्हें इस समाज से
बना दिया सरकार ने..
बस एक " बाल श्रमिक दिवस"इनके नाम से।
Comments
Yogesh Malviya शोभा जी अब शोभा जी बनी हे जिनके विचारो के कारण हरदा में जानी जाती थी। अब आप नही कलम व विचार बोल रहे है
Shobha Jain Chouhan बहुत-बहुत धन्यवाद योगेशजी कॉलेज लाइफ के बाद जीवन में कुछ बड़े बदलावों और जीवन के अहम फैसलों ने लेखन को कुछ समय के लिए अर्ध विराम दे दिया था जो की बेहद जरुरी थे। अब उन फैसलों ने सही निर्णायक मोड़ देकर अपनी सकारात्मकता के साथ उस अर्ध विराम को हटा पुनःलेखन...See More

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