लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

मंगलवार, 19 जनवरी 2016

कितना सच बोलेंगे सब,पूछे जाने पर
सबकी आँखे गड़ी हुई हैं ,घर से अाने -जाने पर
हर रोज भले ही घर न पहुंचे
पर पहुंचे हर दिन मयखाने पर
खाली पेट राते भी सोती 
नाम लिखा हैं, दाने-दाने पर
कौन करेगा मरहम पट्टी जब,
दर्द मिले दवा खानों पर
मजदूरों के पसीने उबलते
पूंजी के कारखानो पर
घर मैं मातम रोज मनाती
उत्सव मनते शराबखानो में
दाल -रोटी की अब घास में गिनती
गिना जाता हैं 'मांस' अब खाने में
घर उसका बन गया स्टेशन
ठहरा कोई नहीं, आने -जाने में
मुल्क के पहरेदार ही 'डर' थे
कल रात मैने भी देखा,
एक बेहोश जिस्म था थाने में ..........
शुभाशीष

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