कितना सच बोलेंगे सब,पूछे जाने पर
सबकी आँखे गड़ी हुई हैं ,घर से अाने -जाने पर
हर रोज भले ही घर न पहुंचे
पर पहुंचे हर दिन मयखाने पर
खाली पेट राते भी सोती
नाम लिखा हैं, दाने-दाने पर
कौन करेगा मरहम पट्टी जब,
दर्द मिले दवा खानों पर
मजदूरों के पसीने उबलते
पूंजी के कारखानो पर
घर मैं मातम रोज मनाती
उत्सव मनते शराबखानो में
दाल -रोटी की अब घास में गिनती
गिना जाता हैं 'मांस' अब खाने में
घर उसका बन गया स्टेशन
ठहरा कोई नहीं, आने -जाने में
मुल्क के पहरेदार ही 'डर' थे
कल रात मैने भी देखा,
एक बेहोश जिस्म था थाने में ..........
सबकी आँखे गड़ी हुई हैं ,घर से अाने -जाने पर
हर रोज भले ही घर न पहुंचे
पर पहुंचे हर दिन मयखाने पर
खाली पेट राते भी सोती
नाम लिखा हैं, दाने-दाने पर
कौन करेगा मरहम पट्टी जब,
दर्द मिले दवा खानों पर
मजदूरों के पसीने उबलते
पूंजी के कारखानो पर
घर मैं मातम रोज मनाती
उत्सव मनते शराबखानो में
दाल -रोटी की अब घास में गिनती
गिना जाता हैं 'मांस' अब खाने में
घर उसका बन गया स्टेशन
ठहरा कोई नहीं, आने -जाने में
मुल्क के पहरेदार ही 'डर' थे
कल रात मैने भी देखा,
एक बेहोश जिस्म था थाने में ..........
शुभाशीष
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