लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

मंगलवार, 19 जनवरी 2016

कल मैने एक अपाहिज बूढे भिखारी को खाने के लिए गरमा गर्म बेक समोसा और एक कप चाय पास की दुकान से दी और मेने भी वही एक बैक समोसा लिया उसे पैक करवा लिया आगे खड़े एक गरीब बच्चे के लिए मेरे पास कुछ और सामान भी था जैसे पुराना अचार, बिस्किट के पैकेट कुछ चाकलेट और पेंसिल का एक पैकेट रबर और शापनर और पुरानी चादरे जिसे देने के लिए मैं रोड पर घूम रही थी किसी बेहद जरूरतमंद को देने के लिए और ऐसे बच्चे जो स्कूल जाते हैं पर पेंसिल के बेहद छोटे छोटे टुकड़ो से अपना काम चलाते हैं मेने जिस व्यकति को बेक समोसा खिलाया था और चाय पिलवाई वो कुछ समय बाद मुझसे पैसे मांगने लगा जिस बच्चे को मैने एक और ख़रीदा हुआ समोसा और चाकलेट दी वो भी ये लेने के बाद दोनों हाथो से मुझे इशारा करते हुए पांच रूपए मांगने लगा जैसे उन्हें भूख खाने की नहीं लग रही थी सिर्फ पैसों की जरुरत थी जो मेने किया वो व्यर्थ गया आप सोचियेगा अगर ऐसा कुछ आपके साथ हुआ हो मुझे बहुत दुःख हुआ । लकिन जिन बच्चो को मेने पेंसिल दी उन्होंने बहुत खुश होकर उसे ली मेने उनसे चाकलेट और पेन्सिल में से कोई एक चीज लेने को कही तो चार में से तीन बच्चे पेन्सिल लेना चाहते थे और उनमे से एक ने मेरे ही सामने एक बड़ी पेन्सिल के दो टुकड़े कर अपने साथ वाले को दूसरा टुकड़ा दिया और शॉपनर भी दी। ये बच्चे भूरि टेकरी [इंदौर ]के आसपास के इलाके के थे आप भी वहा जाकर उनकी मदद कर सकते हैं.. पर पैसो का काम लगता हैं सिर्फ पैसा ही करेगा उसकी जगह कोई नहीं ले सकता। शुभाशीष

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