लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

मंगलवार, 19 जनवरी 2016

तालीम का शोर इतना,
तहज़ीब का गुल इतना ,
बरकत जो नहीं होती
तहज़ीब की खराबी हैं
Comments
Shyam Sakalley लगातार लिख रहीं हैं
खूब लिख रहीं हैं और
अच्छा लिख रहीं हैं । बधाई ।

Shobha Jain Chouhan बहुत -बहुत शुक्रिया सर, आपकी सराहना के साथ आपके साथ विमर्श,सुझाव और सुधार पर प्रतिक्रिया भी मेरे लिए उतने ही मह्रत्वपूर्ण और अमूल्य हैं इसे निरंतर रखकर मुझे गहराई से सोचने और उपयोगी लिखने के लिए इसी तरह प्रेरित करे।

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