ये हमारे समाज की दुर्भाग्यपूर्ण प्रवृत्ति हैं की ये ''जो आप आज हैं उस पर विचार नहीं करता ,किन्तु आप कल क्या थे ये उनकी चर्चा का विषय रहता हैं'' अक्सर वो किसी के सफलतम बदलाव को उसके असफल बीते कल के साथ अपने नीरस,अचल वर्तमान के साथ बैठा नहीं पाते . उन्हें शायद इस बात का आभास हो जाता हैं वो जो कल था वो आज नहीं हैं.... पर हम तो जहाँ से चले थे आज भी वहीँ हैं और यही बात उनकी कुंठा का कारण बनकर किसी सफल व्यक्ति के जीवन के बदलाव को सहजता से स्वीकार्य होने से रोकती हैं जिसके चलते सफल व्यक्ति को आलोचनाएँ ज्यादा मिलती हैं शुभकामनाये कम या फिर देर से.... बहुत कम लोग होते हैं जो आपके बीते कल के निराशाजनक प्रदर्शन साथ आपके आश्चर्य में डाल देने वाले सफल, आशावादी 'वर्तमान' में आपके साथ खुश हो अक्सर ऐसे लोगो को शुभचिंतक कहा जाता हैं जिनका सदा अभाव पाया जाता हैं। ।
शोभा जैन
शोभा जैन
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