लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016

भाषा में शिष्टता --  शोभा जैन
अपनी भाषा में शिष्टता को शामिल करे। बिना शब्दों के संवाद सम्भव नहीं पर शब्दों की अभियक्ति उसके अर्थ में जान डाल देती हैं अगर शिष्ट शब्दों का प्रयोग हो तो और भी अधिक सम्मानजनक बात हैं जिसका अभाव दिखाई दे रहा हैं हर कोई तेहश में हैं दैनिक भाषा में दिन-ब-दिन बढ़ती अश्लीलता, बौद्धिक दिवालियेपन का द्योतक है। पश्चिमी साहित्य तो इस गर्त में समा ही रहा है, भारतीय "आधुनिक समाज" की दैनिक भाषा में विदेशी गालियाँ इस तरह से घर कर रही हैं कि उनके बिना वाक्य पूरा होता ही नहीं ....मेने गत कुछ माह में अच्छे श्रेणी के उच्च वर्ग शिक्षित लोगो को इसका उदाहरण बनते देखा हैं गालियाँ अंग्रेजी में हो या हिंदी में अपशब्द की गिनती में ही आएगी। इसलिए कृपया अपने शब्दों के प्रति सतर्कता बरतें कभी कभी वो आपके व्यक्तित्व का परिचायक बन जाते हैं और कभी -कभी आपका व्यक्तित्व उन्ही के आधार पर बन जाता हैं जब नित प्रतिदिन ऐसे शब्दों का इस्तेमाल होने लगे।

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