लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

मंगलवार, 2 फ़रवरी 2016

क्या ये सत्य हैं -----संत्रास, व्यर्थता बोध, अवसाद, खालीपन और इस तरह की तमाम अनुभूतियों के बीच आज हम जी रहे हैं. ..... इसे अपने भीतर अक्सर महसूस करते हैं पर स्वीकारते नहीं। शोभा जैन 

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