लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016

दु:ख झेलकर, संघर्ष से निकल कर "मुक्त" हो जाना और अपनी मुक्ति में सबको सहभागी बनाने की चेष्टा ही संभवत: साहित्य की शाश्वता का रहस्य है - हरेक से जुड़ने और हर जीवन के भीतर से "तिर" आने की अदम्य इच्छा ही साहित्य का उद्देश्य है।साहित्य से जुड़े साहित्य को जीवन से जोड़े --शोभा जैन

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